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शास्त्रों से जानें क्यों मनाई जाती है होली

धार्मिक ग्रंथ श्रीमद् भागवत पुराण के अतिरिक्त भारतीय साहित्य में भी होली का विस्तृत वर्णन प्राप्त होता है। कालिदास की रचनाओं तथा सूरदास, मीराबाई ने अपने पदों में होली और फाल्गुन मास को विशेष महत्व दिया है। देश के सभी भागों में किसी न किसी रूप में रंगों का त्यौहार होली मनाया जाता है। मानवीय जीवन में आनंद और उल्लास मंगल एवं सौभाग्य के प्रतीक माने गए हैं। खेत में नया अन्न पक कर तैयार हो जाता है। आत्मविभोर हुआ किसान अग्नि देवता को इस दिन नवान्न की आहुति देता है।

वैदिक काल में होली पर्व को नवान्नेष्टि यज्ञ कहा जाता था। खेत से उपजे नए अन्न से यज्ञ में आहुति दी जाती है।

युगों-युगों से होली पर्व सत्य की असत्य पर तथा धर्म की अधर्म पर विजय के रूप में मनाया जाता है। बलशाली दैत्य हिरण्यकश्यप द्वारा अपने पुत्र प्रह्लाद को भगवान विष्णु जी की भक्ति न करने हेतु अनेक प्रयत्न किए गए। जब प्रह्लाद ईश्वर भक्ति करने के अपने निर्णय पर अटल रहे, तब हिरण्यकश्यप ने अपनी बहन होलिका जिसे अग्नि में न जलने का वरदान प्राप्त था, को अपने पुत्र को लेकर अग्नि में बैठने के लिए कहा।

होलिका जल गई परंतु ईश्वर भक्ति के प्रभाव से प्रह्लाद का बाल भी बांका न हुआ। तब लोगों ने प्रसन्नतापूर्वक होलिका दहन किया तथा एक-दूसरे को रंग लगाकर प्रसन्नता व्यक्त की है। यह सनातन सत्य है कि अच्छाई की सदा बुराई पर विजय ही हुई है।
फाल्गुन मास हिन्दू सनातन पंचांग के अनुसार वर्ष का अंतिम मास होता है। होली से आठ दिन पूर्व तक होलाष्टक होता है। होलाष्टक में कोई भी शुभ कार्य करना वर्जित बताया गया है। इसके पीछे कारण यह है कि हिरण्यकश्यप ने शुक्ल पक्ष की अष्टमी को भक्त प्रह्लाद को बंदी बनाकर यातनाएं दीं तथा होलिका के साथ उसे जलाने का प्रयास किया। इन आठ दिनों में प्रह्लाद को यातनाएं देने के कारण ही यह समय होलाष्टक कहा जाता है।

वृंदावन में एकादशी के दिन से ही होली पर्व प्रारंभ हो जाता है, मथुरा वृंदावन की होली भगवान श्री राधा कृष्ण जी के प्रेम रंग में डूबी होती है। मंदिरों में फूलों की होली खेली जाती है तथा लट्ठमार होली भी खेली जाती है।

गोवर्धन के समीप गांठोली गांव भगवान श्री राधाकृष्ण जी की होली लीला से जुड़ा हुआ है। यहां होली के दौरान भगवान राधा-माधव, सिंहासन पर विराजमान थे। श्याम-श्यामा ने यहां अपनी सखियों के संग होली खेली।

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