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उत्तर प्रदेश सरकार ने सड़क से पोस्टर हटाने के हाईकोर्ट के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में दी चुनौती

नई दिल्ली। सीएए के खिलाफ प्रदर्शन के दौरान लखनऊ में हिंसा फैलाने वालों के पोस्टर लगाने का मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया है। उत्तर प्रदेश सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर तत्काल प्रभाव से पोस्टर हटाने के हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती दी है। प्रदेश सरकार की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट की अवकाश कालीन पीठ गुरुवार को सुनवाई करेगी। सुप्रीम कोर्ट में होली की छुट्टियों के दौरान अवकाश कालीन पीठ अर्जेन्ट (तत्काल) मामलों की सुनवाई के लिए बैठ रही है।

यह पहला मौका है जबकि सुप्रीम कोर्ट में होली की एक सप्ताह की छुट्टियों को दौरान भी अवकाश कालीन पीठ बैठ रही है। अन्यथा अवकाश कालीन पीठ सिर्फ गर्मी की छुट्टियों के दौरान ही बैठती थी। गुरुवार को न्यायमूर्ति यूयू ललित और अनिरुद्ध बोस की अवकाश कालीन पीठ उत्तर प्रदेश सरकार की याचिका पर सुनवाई करेगी। उत्तर प्रदेश के एडवोकेट जनरल राघवेन्द्र सिंह ने बताया कि प्रदेश सरकार ने हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील दाखिल की है जिस पर गुरुवार को सुनवाई होनी है। सिंह ने अपील में दिए गए आधारों का जिक्र करते हुए कहा कि पोस्टर में नाम और फोटो छापने को हाईकोर्ट द्वारा निजता के अधिकार का हनन बताया जाना ठीक नहीं है क्योंकि यह मामला निजता के अधिकार के तहत नहीं आता। सिंह ने कहा कि जो चीजें पहले से सार्वजनिक हैं उन पर निजता का अधिकार नहीं लागू होता। इस मामले में पहले से सारी चीजें सार्वजनिक हैं। दूसरा आधार अपील में मामले को जनहित याचिका बनाए जाने को लेकर है। सिंह ने बताया कि यह मामला जनहित याचिका का नहीं माना जा सकता क्योंकि जनहित याचिका की अवधारणा उन लोगों के लिए लाई गई है जो किसी कारणवश कोर्ट आने में असमर्थ हैं उनकी ओर से जनहित याचिका दाखिल की जा सकती है। या फिर जिन मामलों में आबादी का बड़ा हिस्सा प्रभावित हो रहा हो जैसे पर्यावरण संरक्षण आदि मामलों में जनहित याचिका हो सकती है लेकिन मौजूदा मामला ऐसा नहीं है। सिंह कहते हैं कि मौजूदा मामले में प्रभावित लोग कोर्ट जा सकते हैं और रिकवरी नोटिस के खिलाफ कुछ लोग कोर्ट गए भी हैं ऐसे में इस मामले को जनहित याचिका के तहत नहीं सुना जाना चाहिए। हालांकि सिंह ने याचिका का और ब्योरा व आधार साझा नहीं किये। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने गत 9 मार्च को उत्तर प्रदेश सरकार को तत्काल प्रभाव से पोस्टर हटाने का आदेश दिया था। हाईकोर्ट ने आदेश में कहा था कि प्रदेश सरकार को ऐसे पोस्टर लगाने का कोई कानूनी अधिकार नहीं है। हाईकोर्ट ने पोस्टर लगाने को निजता के अधिकार का भी हनन कहा था।

57 लोगों का लगाया गया पोस्टर पिछले साल दिसंबर महीने में लखनऊ में सीएए विरोधी प्रदर्शनों के दौरान हुई हिंसा में कथित रूप से शामिल रहे 57 लोगों के नाम और पते के साथ शहर के सभी प्रमुख चौराहों पर कुल 100 होर्डिग्स लगाए गए हैं। ये सभी लोग राज्य की राजधानी लखनऊ के हसनगंज, हजरतगंज, कैसरबाग और ठाकुरगंज थाना क्षेत्र के हैं। प्रशासन ने पहले ही 1.55 करोड़ रुपये की सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाने के लिए इन सभी लोगों को वसूली के लिए नोटिस जारी किया है।

संपत्तियां होंगी जब्त लखनऊ के जिलाधिकारी अभिषेक प्रकाश ने कहा था कि प्रशासन ने इनकी फोटो लगी हुई होर्डिग्स उन इलाकों में लगवाई, जहां इन्होंने तोड़फोड़ की थी। आगे अगर पुलिस साक्ष्य उपलब्ध कराएगी तो बाकियों से भी वसूली होगी। सभी को नोटिस जारी होने की तिथि से 30 दिन का समय दिया गया है। वसूली राशि जमा करने में असफल रहने की स्थिति में आरोपियों की संपत्तियां जब्त कर ली जाएंगी।

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