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पेशावर कांड के महानायक वीर चंद्र सिंह गढ़वाली को श्रद्धांजलि देने के साथ साथ विचार गोष्ठी का किया गया आयोजन

देहरादून। पेशावर विद्रोह की वर्षगांठ के अवसर पर उत्तराखंड प्रदेश कांग्रेस कमेटी कार्यालय में, पेशावर विद्रोह के महानायक, महान स्वतंत्रता सैनानी, उत्तराखंड के सपूत स्वर्गीय वीर चन्द्रसिंह गढ़वाली और उनके साथी रॉयल गढ़वाल राइफल के सभी योद्धाओं को श्रद्धांजलि दी गई।
इस अवसर पर प्रदेश मुख्यालय में श्रद्धांजलि सभा और विचार गोष्ठी आयोजित की। विचार गोष्ठी में वरिष्ठ पत्रकार, इतिहासकार और राज्य आंदोलनकारियों जय प्रकाश उत्तराखंडी ने पेशावर विद्रोह पर विस्तार से विचार व्यक्त किये।
विदित हो कि आज ही के दिन 23 अप्रैल 1930 को हवलदार चन्द्रसिंह गढ़वाली के नेतृत्व में रॉयल गढ़वाल राइफल के सैनिको ने देश की आजादी के लिए लड़ने वाले, निहत्ते देशभक्त स्वतत्रता सेनानी  पठानों पर गोली चलाने से इंकार कर दिया था। यह वह समय था जब देश में, स्वतंत्रता और स्वराज की आवाज तेज हो रही थी, कांग्रेस पार्टी  ने पंडित जवाहरलाल नेहरू की अध्यक्षता में, पूर्ण स्वराज्य की मांग का प्रस्ताव पास किया था।
पूरे भारत में स्वतंत्रता संग्राम अपने चरम पर था, और अंग्रेज इसे कुचलने की पूरी कोशिश कर रहे थे। अंग्रेजों ने अपनी श्फूट डालो और राज करोश् की नीति के तहत,  23 अप्रैल 1930 को (हिन्दु) गढ़वाली सैनिकों, को आदेश दिया कि वे पठानों (मुसलमान) के जुलुस पर  हमला कर दें। वीर चंद्र सिंह गढ़वाली के नेतृत्व में, गढ़वाली सैनिकों ने निहत्थे राष्ट्रवादी आंदोलनकारियों पर गोली चलाने से साफ मना कर दिया। 1857 के बाद यह पहला मौका था जब भारतीय सैनिकों ने अंग्रेज अफसर का आदेश मानने से इंकार कर दिया था, जो कि एक तरह का खुला विद्रोह था।  इस घटना ने स्वतत्रता आंदोलन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। इस विद्रोह जिसे पेशावर कांड कहते हैं, ने गढ़वाली बटेलियन को एक ऊँचा दर्जा दिलाया।  इस घटना के पश्चात, चन्द्र सिंह को चन्द्रसिंह गढ़वाली का नाम मिला।
पेशावर काण्ड सिर्फ एक सैनिक विद्रोह नहीं था बल्कि इसने सामाजिक सद्भाव का अनुपम उदाहरण पेश किया। इस घटना के बाद, चन्द्रसिंह गढ़वाली को 14 साल के कारावास की सजा हुई, हालाँकि बाद में यह सज़ा थोड़ा कम हो गई। 11 साल के कारावास के बाद इन्हें 26 सितम्बर 1941 को चंद्र सिंह गढ़वाली जेल से आजाद हुए।  वीर चंद्र सिंह गढ़वाली ने, गाँधी जी के नेतृत्व में  भारत छोड़ों आंदोलन में सक्रिय  भूमिका निभाई जिस कारण उन्हें तीन साल की कैद हुई, 1945 में इन्हें जेल से आजाद कर दिया गया। आज देश एक बार फिर वैचारिक संकट से गुजर रहा है, देश की स्वतत्रता और सामाजिक सद्भाव खतरे में हैं, जिस विचारधारा के लोगों ने कभी स्वतंत्रता आंदोलन में हिस्सा भी नहीं लिया था, बल्कि अक्सर अंग्रेजों का साथ दिया, स्वतत्रता सैनानियों की मुखबरी की, वो लोग आज देश के महान स्वतत्रता सैनानियों के देश प्रेम और सत्यनिष्ठा पर प्रश्न खड़े कर रहे हैं।  इतिहास गवाह है कि जिस वक्त देश गाँधी जी के नेतृत्व में, अंग्रेजो भारत छोडो आंदोलन चला रहा था, उस वक्त, आरएसएस के लोग अंग्रेज महारानी को सलामी दे रहे थे, लेकिन व्हाट्सप यूनिवर्सिटी के चौम्पियन लोग आज देश में, अपने कुकृत को छुपाने के लिए, महात्मा गाँधी और जवाहरलाल नेहरू जैसे राष्ट्रवादी महान स्वतंत्रता सैनानियों को कठघरे में खड़ा करने का कुत्सित प्रयास कर रहे हैं। परिचर्चा में अपने विचार रखते हुए उत्तराखंड प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष करण मेहरा ने कांग्रेस के नेताओं और कार्यकर्ताओं के साथ साथ राज्य की प्रबुद्ध जनता विशेषकर शिक्षकों, पत्रकारों, लेखकों, शोधार्थियों से निवेदन और आह्वान किया कि वे इस पुनीत कार्य में सहयोग करें।

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