अंधकार को दूर भगाना है तो यही एक उपाय है, इसी ओर बढ़ रहा है भारत
अक्षय ऊर्जा सस्ती होने के साथ ही पर्यावरण हितैषी भी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रयासों के कारण 11 मार्च को दिल्ली में अंतरराष्ट्रीय सौर संगठन (आइएसए) का सम्मेलन आयोजित किया गया। आइएसए कर्क और मकर रेखा के बीच आने वाले 121 देशों का समूह है, जिसका उद्देश्य सभी देशों को सस्ती ऊर्जा मुहैया कराना है। दरअसल हमारे जीवन में ऊर्जा का महत्व अतुलनीय है। इसके बिना मानव जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती है। ऊर्जा की कमी की वजह से ही हमारा देश कई दूसरे देशों से पिछड़ा हुआ है। इसकी बदौलत ही औद्योगिक विकास में बढ़ोतरी, रोजगार में इजाफा, ग्रामीण पिछड़ेपन को दूर करने में मदद, अर्थव्यवस्था में मजबूती, विकास दर में तेजी संभव हो सकती है।
ऊर्जा के स्नोत को दो भागों में विभाजित किया गया है। पहले वर्ग में वैसे स्नोत आते हैं, जो कभी खत्म नहीं होंगे। इस वर्ग में सौर व वायु ऊर्जा, जल ऊर्जा, जैव ईंधन ऊर्जा आदि को रखा जाता है। दूसरे वर्ग में वैसे स्नोत आते हैं, जिनके भंडार सीमित हैं। प्राकृतिक गैस, कोयला, पेट्रोलियम आदि ऊर्जा के स्रोतों को इस श्रेणी में रखा जाता है। चूंकि इस श्रेणी के ऊर्जा के भंडार तेजी से समाप्त हो रहे हैं, इसलिए जरूरत इस बात की है कि अक्षय ऊर्जा के विविध विकल्पों का इस्तेमाल किया जाए। अक्षय का अर्थ होता है असीमित। अर्थात जिसका उत्पादन हमेशा किया जा सके।
भारत में अक्षय ऊर्जा के उत्पादन की अपार संभावनाएं हैं। खास करके रेगिस्तानी इलाकों में। लिहाजा इस क्षेत्र को व्यापक और प्रभावी बनाने के लिए नवीन एवं अक्षय ऊर्जा नाम से एक स्वतंत्र मंत्रालय बनाया गया है। भारत विश्व का पहला देश है, जहां अक्षय ऊर्जा के विकास के लिए एक अलग मंत्रालय है। केंद्र सरकार ने अक्षय ऊर्जा की क्षमता को 2022 तक 175000 मेगावाट बढ़ाने का लक्ष्य रखा है। 175000 मेगावाट में सौर ऊर्जा का हिस्सा 100000 मेगावाट, पवन ऊर्जा का हिस्सा 60000 मेगावाट, जैव ईंधन का हिस्सा 10000 मेगावाट और जल ऊर्जा का हिस्सा 5000 मेगावाट है।
हालांकि अक्षय ऊर्जा का सबसे अधिक उत्पादन पवन एवं सौर ऊर्जा के जरिये ही होता है। भारत में पवन ऊर्जा की शुरुआत 1990 में हुई थी, लेकिन हाल के वर्षों में इस क्षेत्र में बहुत तेजी से प्रगति हुई है। आज भारत के पवन ऊर्जा उद्योग की तुलना विश्व के प्रमुख पवन ऊर्जा उत्पादक अमेरिका और डेनमार्क से की जाती है। पवन ऊर्जा के मुकाबले सौर ऊर्जा का उत्पादन भारत में अब भी शैशवावस्था में है, जबकि इस क्षेत्र में विकास की संभावना पवन ऊर्जा से अधिक है। तकनीक की कमी एवं जानकारी के अभाव में भारत अभी ज्यादा मात्रा में सौर ऊर्जा नहीं उत्पादित कर पा रहा है। सौर ऊर्जा के क्षेत्र में भारत साल 2000 के बाद से ज्यादा सक्रिय हुआ है। भारत के सौर ऊर्जा कार्यक्रम को संयुक्त राष्ट्र का भी समर्थन मिला हुआ है। भारत के इस कार्यक्रम को ‘एनर्जी ग्लोब वर्ल्ड’ पुरस्कार मिल चुका है।
भारत चाहता है कि सौर ऊर्जा मौजूदा बिजली से सस्ती हो। इस लक्ष्य को अनुसंधान एवं नवोन्मेषी उपायों की मदद से हासिल किया जा सकता है। बैंक और गैर वित्तीय संस्थानों ने 21 मार्च, 2016 तक अक्षय ऊर्जा के विकास के लिए 71200 करोड़ रुपये का कर्ज अक्षय ऊर्जा से जुड़ी कंपनियों को स्वीकृत किए थे। विश्व बैंक ने भी भारत में सौर ऊर्जा कार्यक्रम को बढ़ावा देने के लिए 4,170 करोड़ रुपये की सहायता राशि मंजूर की है। ग्रामीण क्षेत्र में सौर ऊर्जा को बढ़ावा देने के लिए सरकार ने सोलर फोटोवॉल्टिक लाइटिंग प्रणाली की स्थापना के लिए कैपिटल सब्सिडी स्कीम एमएनआरई एलईडी आधारित योजना को शुरू किया है।
पेरिस समझौते के बाद समूचे विश्व ने स्वीकार किया है कि जलवायु परिवर्तन एक गंभीर मसला है और दुनियाभर में इस समस्या का समाधान प्राथमिकता के आधार पर किया जाना चाहिए। भारत इस चुनौती से निपटने के लिए वैश्विक मंच पर अनेक अनुबंधों की अगुआई कर रहा है, जिनमें अंतरराष्ट्रीय सौर गठबंधन (आइएसए), मिशन इनोवेशन, ऊर्जा क्षेत्र के त्वरित डी-कार्बनिजेशन के संबंध में वैश्विक अनुबंध, अफ्रीकी अक्षय ऊर्जा आदि पहल शामिल हैं।
मोदी सरकार का लक्ष्य सबका साथ सबका विकास को साकार करने के लिए ग्रामीण इलाकों में अक्षय ऊर्जा की मदद से माइक्रो ग्रिड स्थापित करने का है। माना जा रहा है कि गैर पारंपरिक तरीके से बिजली उत्पादन करने से कार्बन उत्सर्जन में कमी आएगी। इस क्षेत्र में बेहतर एवं तेजी से काम करके ही विकास के उच्चतम स्तर पर पहुंचा जा सकता है। हमारे पास प्रकृति प्रदत्त बहुत सारी सौगातें हैं। तालाब में सौर पैनल लगाया जा सकता है। नदी के पानी से ऊर्जा उत्पादित की जा सकती है। हवा से भी ऊर्जा बनाई जा सकती है। हम नदी को मां मानते हैं। पवन को देवता मानते हैं। प्रकृति से जुड़ाव हमारे स्वभाव में है। सौर और पवन ऊर्जा के जरिये हाइब्रिड बिजली उत्पादित की जा सकती है। ऊर्जा संरक्षण आज समय की जरूरत है। जितनी ऊर्जा हम बचाएंगे, वह हमारी अगली पीढ़ी के काम आएगी।
साल 2015 के दौरान विकासशील देशों में अक्षय ऊर्जा के क्षेत्र में निवेश करने में भारत और चीन सबसे आगे रहे। संयुक्त राष्ट्र द्वारा ग्लोबल ट्रेंड इन रिन्यूएबल एनर्जी इन्वेस्टमेंट शीर्षक से प्रकाशित रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत, चीन और ब्राजील समेत अन्य विकासशील देशों ने अक्षय ऊर्जा की नई क्षमता खड़ी करने के लिए वर्ष 2014 में 156 अरब डॉलर निवेश किया, जो वर्ष 2013 के मुकाबले 19 प्रतिशत अधिक है। समान अवधि में विकसित देशों का योगदान इस क्षेत्र में आठ प्रतिशत घटकर 130 अरब डॉलर रहा। भारत अक्षय ऊर्जा के क्षेत्र में निवेश करने वाले शीर्ष दस देशों में शामिल है।
जाहिर है अक्षय ऊर्जा से इंसान की दैनिक जरूरतें, कृषि, लघु, मध्यम एवं बड़े उद्योगों के लिए आवश्यक ऊर्जा की जरूरतों को आसानी से पूरा किया जा सकता है। कहा जा सकता है कि अक्षय ऊर्जा के माध्यम से हम अंधेरे को दूर भगा सकते हैं।