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‘उन्होंने अल्लाह-हू-अकबर कहा और सारे भारतीयों को एक-एक करके गोली मार दी’

इराक के मोसुल में अगवा किए गए 40 भारतीयों में जिंदा बचे 27 साल के हरजीत मसीह ने उस खौफनाक दिन को याद करते हुए बताया है कि किस तरह आतंकियों ने भारतीयों की जान ली। हरजीत ने यह सारी बातें फाउंटेनइंक नाम की एक पत्रिका को बताईं। हरजीत ने उस दिन को याद करते हुए कहा, ’15 जून की सुबह अलग थी। नाश्ता लाने वाला शख्स दूसरा था। बाहर 30-35 और आतंकवादी थे, जो काफी सख्ती से बात कर रहे थे। उस दिन लंच के समय वे एक की बजाय दो प्लेटों में खाना लेकर आए। पिछले दो दिनों में उन्होंने पहले ऐसा नहीं किया था। उस वक्त मोसुल में दोपहर के साढ़े बारह बज रहे थे।’
भारतीयों और बांग्लादेशियों को अलग-अलग ग्रुप्स में बांटा गया
हरजीत ने कहा कि शाम को लगभग 4 बजे आतंकियों ने बांग्लादेशियों और भारतीयों को दो अलग ग्रुप्स में बांट दिया सारे भारतीयों को अपने साथ आने के लिए कहा। साथ ही आतंकियों ने यह भी कहा कि चूंकि अभी बांग्लादेशियों के पासपोर्ट नहीं आए हैं इसलिए वे साथ नहीं जाएंगे। बाहर एक बड़े से कंटेनर के साथ ट्रक खड़ा था। हरजीत जब उसमें सवार हुए तो उन्होंने देखा कि एक आदमी के आंखों पर पट्टी बंधी हुई है और उसके हाथ पीछे की तरफ बंधे हैं। इसके बाद कंटेनर का दरवाजा बंद हो गया। वहां काफी घुटन हो रही थी। वहां जरा भी हवा नहीं थी और ट्रक हिचकोले खाता हुआ उबड़-खाबड़ रास्ते पर जा रहा था।

‘हमें छोड़ दो, हम मुसलमान बन जाएंगे’
इस्लामिक स्टेट की यूनिफॉर्म पहने एक व्यक्ति ने चिल्लाते हुए पूछा कि तुम सब इराक में क्या करने आए हो। किसी ने कोई जवाब नहीं दिया। अब हरजीत को समझ में आ गया था कि क्या होने वाला है और इसी समय सभी आदमी रोने लगे थे। उनमें से किसी एक ने कहा, ‘प्लीज हमें छोड़ दें। हम मुसलमान बन जाएंगे।’ लेकिन उन्हें फिर से झुकने के लिए कहा गया। हरजीत उस लाइन की बीच में था, उसके बाईं तरफ पश्चिम बंगाल का रहने वाले समल और दाईं तरफ ग्रुप का सबसे भारी भरकम शख्स पंजाब के बलवंत राय सिंह खड़े थे। आतंकियों ने नीचे झुके भारतीयों के पीछे खड़े होकर कुछ बात की। दो शख्स आगे खड़े थे, एक शख्स जो कंटेनर में था उसकी आंखों की पट्टियां खोल दी गई थीं और दूसरा इस्लामिक स्टेट का आतंकी था जो कैमरा लिए हुए था।
‘अल्लाह-हू-अकबर, तड़-तड़-तड़’
फिर आवाज आई, अल्लाह-हू-अकबर, तड़-तड़-तड़। जैसे ही पहली गोली चली, समल जमीन पर गिर पड़े, जबकि फायरिंग दाईं तरफ से शुरू हुई थी। हरजीत भी गिर पड़े और रेत में अपना चेहरा धंसाकर पड़े रहे। कुछ सेकंड बाद बलवंत उनके ऊपर गिर पड़े, और हरजीत रेत में थोड़ा और अंदर धंस गए। एक मृत शरीर के भार से हरजीत हिल भी नहीं पा रहे थे। एक गोली हरजीत को छूकर निकल गई, लेकिन वह हिले नहीं, सिर्फ वहीं लेटे रहे। गोलियां तकरीबन एक मिनट तक चलीं और उसके बाद सब शांत हो गया। 20 मिनट के बाद हरजीत किसी तरह खड़े हुए और देखा कि चारों तरफ लाशें ही बिखरी पड़ी थीं। आतंकी चले गए थे।

हरजीत ने इसके बाद कुछ बांग्लादेशियों ने बचकर निकलने की योजना बनाई। हरजीत ने उनसे पूछा कि क्या वह भी उनके साथ भाग सकता है, लेकिन वे उन्हें एक बोझ के तौर पर देख रहे थे। इसलिए हरजीत अकेले ही भागे जब तक कि एक आर्मी वैन ने उन्हें घेर नहीं लिया। इस बात से डरकर कि वैध दस्तावेज न होने की वजह से उन्हें जेल में डाल दिया जाएगा, उन्होंने बहाना बनाया कि वह पानी लेने जा रहा है और एक टैक्सी लेने के लिए निकल पड़े। बाद में उन्हें एक मददगार मिल गया और उसकी कोशिशों के चलते हरजीत वापस हिंदुस्तान आ गए।

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