भारतवासियों को गौ माँ के संरक्षण एवं संवर्धन के लिए कटिबद्ध होना होगाः साध्वी आस्था भारती
देहरादून। दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान की ओर से दिल्ली में ‘श्रीमद्भागवत कथा ज्ञान यज्ञ’ का भव्य आयोजन किया जा रहा है। श्रीमद्भागवत कथा ज्ञान यज्ञ के तृतीय दिवस भागवताचार्य महामनस्विनी साध्वी आस्था भारती ने भगवान परशुराम का चरित्र सुनाते हुए कहा कि उन्होंने अपने परशु से 21 बार धरा को क्षत्रियविहीन कर दिया था। यहाँ हमें शब्दार्थ के स्थान पर गूढ़ार्थ को समझना होगा। वास्तव में, उस काल में अधिकांश क्षत्रिय अपना क्षत्रियत्व खो चुके थे। उनकी समस्त संपदा, समय व शक्ति इन्द्रियों की तृप्ति में ही व्यय हो रही थी। क्षत्रिय धर्म को कलंकित करने वाले ऐसे ही क्षत्रियों का परशुराम जी ने अपने फरसे से वध कर अनाचार का अंत किया था। उन्होंने दुष्टों का नहीं, बल्कि दुष्टता का विनाश किया था। यहाँ शीश काटने का भाव क्षुद्र मानिसकता व तुच्छ विचारों का रूपांतरण है। भगवान श्रीकृष्ण भी तो श्रीमद्भगवद्गीता में कहते हैं- तस्मादज्ञानसम्भूतं हृत्स्थं ज्ञानासिनात्मनः। छित्त्वैनं संशयं योगमातिष्ठोत्तिष्ठ भारत। हे भरतवंशी अर्जुन। तू हृदय में स्थित इस अज्ञान का विवेक-ज्ञान रूप तलवार द्वारा छेदन करके समत्वरूप कर्मयोग में स्थित हो जा।
श्रीकृष्ण जन्म के अवसर पर इस प्रसंग में छुपे हुए आध्यात्मिक रहस्यों का निरूपण करते हुए साध्वी जी ने बताया- जब-जब इस धरा पर धर्म की हानि होती है, तब-तब धर्म की स्थापना के लिए करुणानिधान ईश्वर अवतार धारण करते हैं। जिस प्रकार श्रीकृष्ण के जन्म से पहले घोर अंधकार था, कारागार के ताले बंद थे, पहरेदार सजग थे और इस बंधन से छूटने का कोई रास्ता नजर नहीं आ रहा था। ठीक इसी प्रकार, ईश्वर साक्षात्कार के अभाव में मनुष्य का जीवन घोर अंधकारमय है। अपने कर्मों की काल कोठरी से निकलने का उसके पास कोई उपाय नहीं है। उसके विषय-विकार रूपी पहरेदार इतने सजग होकर पहरा देते रहते हैं कि उसे कर्म-बंधनों से बाहर निकलने ही नहीं देते। परंतु जब किसी तत्वदर्शी महापुरुष की कृपा से परमात्मा का प्राकट्य मनुष्य हृदय में होता है तो परमात्मा के दिव्य रूप ‘प्रकाश’ से समस्त अज्ञान रूपी अंधकार दूर हो जाते हैं। विषय-विकार रूपी पहरेदार सो जाते हैं, कर्म-बंधनों के ताले खुल जाते हैं और मनुष्य की मुक्ति का मार्ग प्रशस्त हो जाता है। इसलिए ऐसे महापुरुष की शरण में जाकर हम भी ब्रह्मज्ञान को प्राप्त करें, तभी कृष्ण-जन्म प्रसंग का वास्तविक लाभ उठा पाएंगे। आज के इंसान को इसी ज्ञान के प्रकाश की आवश्यकता है। केवल तभी वह स्वयं के उत्थान के साथ-साथ समाज के प्रति अपने कर्तव्यों को पूरी ईमानदारी से निभा पाएगा। हम सभी भारतवासियों को अपनी अमूल्य धरोहर वन्दनीय अमृतदायिनी गौ माँ के संरक्षण एवं संवर्धन के लिए कटिबद्ध होना होगा। यदि गौ माँ का अस्तित्व खत्म हो गया तो हम अपने अस्तित्व को भी नहीं बचा पाएंगे। गुरुदेव आशुतोष महाराज कहते हैं- गो माता की सेवा सर्वांगीण विकास का आधार, कृषितंत्र का मेरुदण्ड, आर्थिक विकास का कारक व स्वस्थ जीवन का मूल है।