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शीतकाल के लिए बंद हुए बदरीनाथ धाम के कपाट

देहरादून/चमोली। बदरीनाथ धाम के कपाट वैदिक मंत्रोच्चारण और विधि-विधान के साथ शीतकाल के लिए बंद कर दिए गए हैं। इस पल के कई श्रद्धालु साक्षी बने और साथ ही उन्होंने भगवान से सुख-सुमृद्धि की कामना की। भगवान नारायण को घृत कम्बल और घी से लेप किया। वहीं इस मौके पर सेना के बैंड और भगवान बदरीनाथ के जयघोष से पूरा वातावरण भक्तिमय हो गया। वहीं कपाट बंद होने के बाद किसी भी व्यक्ति को बगैर सरकारी अनुमति के हनुमान चट्टी से आगे जाने पर मनाही होगी।
आज शाम 3 बजकर 35 मिनट पर भगवान बद्री विशाल के कपाट शीतकाल के लिए बंद कर दिए गए हैं। बदरीनाथ धाम के कपाट बंद होने के बाद भगवान उद्धव और कुबेर जी की उत्सव डोलियां पांडुकेश्वर के लिए रवाना हुई। मान्यता है कि भगवान बदरी विशाल की छह माह नर और छह माह नारदजी पूजा करते हैं। कपाट बंद होने के बाद बदरीनाथ में पूजा का प्रभार नारद मुनि के पास रहता है। मान्यता है कि पुराने समय में भगवान विष्णुजी ने इसी क्षेत्र में तपस्या की थी। उस समय महालक्ष्मी ने बदरी यानी बेर का पेड़ बनकर विष्णुजी को छाया प्रदान की थी। लक्ष्मीजी के इस समर्पण से भगवान प्रसन्न हुए। विष्णुजी ने इस जगह को बद्रीनाथ नाम से प्रसिद्ध होने का वरदान दिया था। बदरीनाथ धाम में विष्णुजी की एक मीटर ऊंची काले पत्थर की मूर्ति स्थापित है। विष्णुजी की मूर्ति ध्यान मग्न मुद्रा में है। यहां कुबेर, लक्ष्मी और नारायण की मूर्तियां भी हैं। इसे धरती का वैकुंठ भी कहा जाता है। बदरीनाथ मंदिर तीन भागों में विभाजित है, गर्भगृह, दर्शनमंडप और सभामंडप।

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