स्वामी सदानंद सरस्वती ने कराया रामकथा का रस पान
सुदिप्तो चटर्जी।
राम कथा सुदंर करतारी ।।
संशय बिहगं उडावन हारी।।
शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती के कृपा प्राप्त शिष्य तथा द्वारका शारदा पीठ के मंत्री दंडी स्वामी सदानंद सरस्वती ने अपने श्रीमुख से राम कथा का रस पान भक्तों को कराया। उन्होंने कहा कि एक बार ऋषियों ने पूछा सूत जी देवर्षि नारद मुनि ने सनत कुमार जी से रामायण संबंधी संपूर्ण धर्मों का किस प्रकार वर्णन किया था उस कथा का वर्णन कीजिए ।
सूत जी ने कहा- हे ऋषियों , एक बार सनकादि ऋषि ब्रह्मा जी की सभा देखने के लिए मेरु पर्वत के शिखर् पर गए इतने में ही देवर्षि नारद मुनि वहां आ पहुंचे । सनकादि मुनियों ने नारद जी की यथोचित पूजा करके सनकादि मुनियों ने पूछा कि जिनसे समस्त चराचर जगत की उत्पत्ति हुई है जिन के चरणों से गंगा जी प्रकट हुई है, उन श्री हरि के स्वरूप का ज्ञान कैसे होता है ,कृपा करके इसका विवेचन कीजिए ।
नारद जी बोले- जो पर से परतर है तथा जो सगुण और निर्गुण रूप है ज्ञान अज्ञान धर्म-अधर्म तथा विद्या और अविद्या यह सब जिनके अपने ही स्वरुप है जो एक होकर भी 4 स्वरूपों में उत्तिरीण होते हैं जिन्होंने वानरों को साथ लेकर राक्षस सेना का संहार किया है उन भगवान श्री राम के ऐसे अनेक चरित्र हैं जिनके चरित्र का वर्णन करोड़ों वर्षों में भी नहीं किया जा सकता जो घोर कलयुग में रामायण कथा का आश्रय लेते हैं व्यक्त करते हैं वे कृत कृत्य है।
ब्राह्मण सुदास गौतम के श्राप से राक्षस शरीर को प्राप्त हो गए थे परंतु रामायण के प्रभाव से उन्हें श्राप से मुक्ति मिली सनत कुमार ने पूछा मुनेश्वर रामायण कथा का किसने वर्णन किया है ?। सौदास को गौतम द्वारा कैसे श्राप प्राप्त हुआ और वह रामायण के प्रभाव से किस प्रकार श्राप से मुक्त हुए कृपया कर वह हमें बताइए । नाराद जी ने कहा ब्राह्मन, रामायण का प्रादुर्भाव महर्षि बाल्मीकि के मुख से हुआ है – तुम उसी का श्रवण करो। ” आस्ते कृतयुगे विप्रो धर्म-कर्म विशारदः ।
सोमदत्त इति ख्यातो नाम्ना धर्मपरायणः।। ”
सतयुग में सोमदत्त नाम के एक ब्राह्मण थे जो सदा धर्म के पालन में ही तत्पर रहते थे वह ब्राह्मण सौदास नाम से भी विख्यात थे सोदास ने गौतम से संपूर्ण धर्मों का श्रवण किया था।
राम कथा से सोदास का उद्धार हुआ उसी राम कथा की रचना हनुमान जी के आदेश से गुरु नरहरीदास जी की कृपा से तुलसीदास महाराज ने रचना की । राम कथा का उद्देश्य प्रत्येक मनुष्य के मन मे श्रीराम की स्थापना करना है। ।
ऐसे अनेक प्रसंग राम चरित मानस बाल्मीकि रामायण ओर आध्यात्मिक रामायण से पूज्य स्वामी सदानंद सरस्वती जी महाराज ने भक्तो को रसपान करायी ।