इस समय स्वहित नहीं बल्कि सर्वहित सर्वोपरि हैः- स्वामी चिदानन्द सरस्वती
ऋषिकेश। परमार्थ निकेतन में माँ सीता जी के अवतरण दिवस ‘जानकी नवमी’ के पावन अवसर पर स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी के पावन सान्निध्य में आचार्यों और ऋषिकुमारों ने महाग्रंथ रामायण का पाठ व पूजा-अर्चना कर सभी के स्वस्थ और समुन्नत जीवन की प्रार्थना की। आज हिन्दी जगत के प्रसिद्ध कवि सुमित्रानंदन पंत जी के जन्म दिवस के अवसर पर परमार्थ निकेतन परिवार के सदस्यों ने भावभीनी श्रद्धाजंलि अर्पित की। इस अवसर पर परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि कौसानी, उत्तराखंड की सुरम्य और खूबसूरत वादियों में जन्में पंत जी का प्रकृति से अपार प्रेम और असीम लगाव था उनका संपूर्ण साहित्य ही प्रकृति को समर्पित है। प्रकृति सौंदर्य और सनातन संस्कृति के प्रति उनकी अगाध श्रद्धा थी। इस प्रकार का साहित्य सामाजिक चेतना को प्रखर करता है। उनका साहित्य संस्कृति और प्रकृति का संरक्षक और भविष्य का पथ-प्रदर्शक भी है।
स्वामी चिदानन्द सरस्वती ने कहा कि यह समय मनुष्य और प्रकृति दोनों के साथ मानवता पूर्ण व्यवहार करने का है। हृदय में करुणा और सहानुभूति ही धरा पर मानवता को जिंदा रख सकती है। इस समय पूरी दुनिया एक वायरस के कारण परेशान है। यह वायरस नित नए रूप ले रहा है, जैसे वह कोई असुरी और मायावी रणनीति के तहत मनुष्यों पर आक्रमण कर रहा हो या यह भी हो सकता है कि धरती ने कोविड के माध्यम से एक संदेश भेजा है इसलिये हमें अपने स्वास्थ्य के साथ धरती केय प्रकृति के स्वास्थ्य का भी विशेष ख्याल रखना होगा क्योंकि जल, वायु, आकाश और जो भी प्रकृतिक संसाधन है उन सब की जरूरत हम मनुष्यों को है, धरती को नही। मनुष्य के बिना धरती और प्रकृति स्वस्थ रह सकती है परन्तु बिना उनके मनुष्य का कोई अस्तित्व नहीं है।
स्वामी जी ने कहा कि कई बार हमारी मान्यताओं और परम्पराओं के कारण प्रकृति की उपेक्षा हुई हैय पर्यावरण प्रदूषित हो रहा है तथा नदियों में पानी कम एवं प्रदूषण बढ़ता जा रहा है। आज भी हमारे पास अवसर है, हम खुद भी जागें और दूसरों को भी जगायें। अपने स्वास्थ्य और अपने कर्तव्यों के प्रति जागरूक होकर वर्तमान और आने वाली पीढ़ियाँ को स्वच्छ और स्वस्थ वातावरण मिल सके, इस हेतु सहयोग करें। स्वामी जी ने कहा कि जब तक हमारे व्यवहार में पारदर्शिता नहीं होगी तक तक हम समाज का नवनिर्माण नहीं कर सकते। बिना पारदर्शिता के खामियों को उजागर तो किया जा सकता है परन्तु समाधान प्रस्तुत नहीं किया जा सकता। इस समय चारों ओर जो भयावहता व्याप्त है, समाज को इससे उबारने के लिये अपनेपन के साथ कर्तव्यों के प्रति निष्ठा की भी जरूरत है। मानवीय संवेदना के साथ प्रत्येक व्यक्ति को एक-दूसरे का पथ-प्रदर्शक बनना होगा। आईये स्वहित साधन नहीं बल्कि सर्वहित की ओर मिलकर बढ़ें।