Uttarakhand
शहर में फिर गूंजी जे सी बी की आवाज
इन दिनों देहरादून के बाज़ार में जे सी बी की गूंज फिर से सुनाई दे रही है। फैशन सा हो गया है मौसम की तरह गरजने का। आखिर क्यों बार बार ऐसा किया जाता है या करना पड़ता है? क्या हाई कोर्ट बार बार नए आदेश जारी करता है या उसका मात्र अनुशरण करता है? क्या कानूनी स्थिति स्पष्ट नही है या व्यापारी ही बार बार अतिक्रमण करते हैं।? जनता भी परेशान होती है, देश की संम्पत्ति की हानि भी होती है और बार बार का सरकारी खर्च सो अलग। जनता को वास्तविक कारणों को जानना भी ज़रूरी है कि क्यों नही एक बार मे सही स्थिति बहाल होती? एक बात विशेष रूप से सोचनीय है कि कई बार अतिक्रमण हटाने की प्रकिर्य्या का समय वास्तव में नाजुक होता है। जैसे आजकल का समय। त्योहार आरम्भ हो चुके है। चारो ओर धार्मिक चहल पहल जारी है। बाज़ारो की रौनक लौट रही है। लोग कोरोना का दर्द भूलने का प्रयास कर रहे है। ऐसे में तोड़फोड़ की कार्यवाही वैसे ही है जैसे किसी यज्ञ में बाधा डालना । रंग में भंग वो भी जनता की अपनी सरकार द्वारा। बात गले नही उतरती। विश्वास नही होता कि क्यों एक जन प्रिय सरकार अपनी छवि धूमिल करना चाहेगी। इस समय इस तरह की तोड़फोड़ की कार्यवाही किसी के भी पक्ष में नही जाती। व्यापारी व्यापार नही कर पाएंगे तो सरकार को अपेक्षित टैक्स नही मिल पायेगा। व्यापारी और जनता को एक साथ कष्ट होगा। सबकी रोजी में व्यवधान पड़ेगा और अंततः सरकार की बदनामी भी होगी। इसलिये इस स्थिति को टाला जाना चाहिये। सरकार को जनहित में अतिक्रमण हटाओ अभियान को त्योहारी सीजन तक स्थगित कर देना चाहिए। ज़रूरत पड़े तो उच्च न्यायालय से निवेदन करना चाहिये। इसका तात्पर्य यह बिल्कुल नही कि उक्त कार्य को हमेशा के लिये रोक दिया जाय। कानून का पूर्णतः पालन और सम्मान होना चाहिये। समय की पूर्व सूचना के साथ कार्य को निष्पक्ष रूप से पूरा किया जाना चाहिये। व्यापारी भाइयो और अन्य प्रभावित लोगों को भी समझ लेना चाहिये कि बार बार अतिक्रमण किया जाना और फिर तोड़ा जाना। इससे लाभ की जगह नुकसान ज्यादा होता है। कानून सर्वोच्च है उसकी अवहेलना की किसी को अनुमति अनुमन्य नही है। अतः स्वेच्छा से नियमानुसार अपने निर्माण को नियमित कर ले। बाजार में जनसुविधा बढ़ेगी तो ग्राहक भी बढ़ेंगे, व्यापार भी बढ़ेगा वर्ना सड़क पर समान का ढेर लगाय रखने से कोई लाभ नही होगा। व्यापारी नेताओ और जन प्रतिनिधियों को सरकार के साथ बैठकर एक निश्चित कार्ययोजना पर तुरंत सहमति बनाने की आवश्यकता है। यह हमारा देश है, हमारा प्रदेश और शहर है इसे सूंदर और स्वच्छ रखने का हम सभी का कर्तव्य है। संघर्ष का नही सहयोग का रास्ता अपनाइए उसी पर चलने से विकास और प्रगति की प्राप्ति संभव है। अभी समय है जागये, उठये और एक उदाहरण स्थापित करे।
लेखकः- ललित मोहन शर्मा