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शाह अपनी ओर से पहल करते हुए दोस्ती को फिर से मजबूत करने के लिए हाथ बढ़ाएंगे

नई दिल्ली। विपक्षी एकता के बुलंद हो रहे नारों के बीच भाजपा अध्यक्ष अमित शाह राजग के चटक रहे स्तंभों को मजबूत करने में जुट गए हैं। लगातार आग उगलते रहे शिवसेना के सामने भी अपनी ओर से पहल करते हुए दोस्ती को फिर से मजबूत करने के लिए हाथ बढ़ाएंगे। शाह बुधवार को शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे से मुलाकात करेंगे। वहीं गुरुवार को पंजाब के पुराने सहयोगी अकाली दल नेतृत्व के साथ मुलाकात संभावित है। माना जा रहा है कि बहुत जल्द जदयू अध्यक्ष व बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से भी शाह की मुलाकात होगी। हालांकि सहयोगी दल के नेताओं के साथ शाह की यह मुलाकात संपर्क फार समर्थन अभियान के बीच ही होगी। मुंबई में शाह रतन टाटा, लता मंगेशकर और माधुरी दीक्षित से तो चंडीगढ़ में संभवत: मिल्खा सिंह से भाजपा के लिए समर्थन मांगेंगे। लेकिन ज्यादा अहम है साथियों से मुलाकात। एक दिन पहले ही बिहार में कुछ जदयू नेताओं के बयान ने विवाद खड़ा कर दिया और विपक्ष को मौका दिया। वहीं शिवसेना का रुख कई बार असहज करता रहा है। शिवसेना की ओर से न सिर्फ केंद्र सरकार बल्कि प्रधानमंत्री भी निशाना बनाया जाता रहा है। हालांकि महाराष्ट्र सरकार में भाजपा- शिवसेना साथ साथ है लेकिन उनकी ओर से इसकी घोषणा की जा चुकी है कि अगला लोकसभा चुनाव वह अलग लड़ेगी।

जिन साथी दलों का प्रतिनिधित्व नहीं उनसे भी बढ़ेगा संवाद  हाल में पालघर संसदीय सीट पर मुख्य मुकाबला भी भाजपा और शिवसेना के ही बीच हुआ था। ऐसे में शाह का उद्धव के घर जाना अहम माना जा रहा है। दरअसल इसका अहसास दोनों दलों को है कि जब विपक्षी एक होंगे तो उनके लिए रास्ता मुश्किल होगा। भलाई साथ साथ चलने में ही है। लेकिन वहां भी वही संकट है जो बिहार में है। सीट बंटवारा और हिस्सेदारी का। ऐसे में दबाव जदयू की ओर से भी है और शिवसेना की ओर से भी। यही कारण है कि शिवसेना के प्रवक्ता संजय राउत ने शाह और उद्धव की मुलाकात तय होने के बाद भी कहा कि शिवसेना अपना फैसला खुद करेगी। शाह ने वक्त मांगा था तो उद्धव ने दिया। सूत्रों का कहना है कि इन दोनों नेताओं के बीच मुलाकात में यही समझने समझाने की कवायद होगी कि पुरानी दोस्ती को यूं तोड़ना अच्छा नहीं है। ध्यान रहे कि महाराष्ट्र में बड़े भाई की भूमिका में रही शिवसेना विधानसभा चुनाव में अलग लड़ी तो नंबर दो हो गई। बृहन मुंबई नगरनिगम चुनाव में शिवसेना भाजपा से थोड़ी आगे तो आई लेकिन भाजपा का समर्थन लेना पड़ा। बताते हैं कि विधानसभा से लेकर लोकसभा तक में शिवसेना के जितने भी प्रतिनिधि हैं वह भी चाहते हैं कि दोनों दलों की दोस्ती कायम रहे। जबकि राज्यसभा और विधान परिषद पहुंचे प्रतिनिधि गठबंधन तोड़ने की बात करते हैं। संजय राउत भी इसी में शामिल हैं। ध्यान रहे कि लोजपा अध्यक्ष राम विलास पासवान और शाह की मुलाकात रविवार को हो चुकी है। सात जुलाई को बिहार में भाजपा नेतृत्व की ओर से सहयोगी दलों को खाने पर बुलाया गया है जिसे संवाद का ही एक रूप माना जा रहा है। लेकिन खुद शाह छोटे बड़े सभी सहयोगी दलों से मिलेंगे। इसी क्रम में अगले एक सप्ताह के अंदर ही नीतीश से मुलाकात की संभावना है। रालोसपा अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा से उससे पहले ही मुलाकात हो सकती है। सूत्रों की मानें तो आने वाले एक दो महीनों में उन छोटे छोटे क्षेत्रीय दलों के साथ भी भाजपा नेताओं का संपर्क और संवाद बढ़ेगा जिनका संसद में कोई प्रतिनिधित्व नहीं है।संपर्क फार समर्थन की कवायद में बड़े उद्योगपति रतन टाटा से मिलने का बड़ा अर्थ है। दरअसल उनके जरिए ही उद्योग जगत को साधने की कोशिश होगी। वहीं लता और माधुरी के करोड़ों प्रशंसक हैं। ध्यान रहे कि अटल बिहारी वाजपेयी सरकार के वक्त ही लता को राज्यसभा में मनोनीत किया गया था।

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