Uttarakhand

संप्रदायों के बीच मत भेदो के चलते दंगो का चलन, दंगा या देश से पंगा

जिस दिन से देश आजाद हुआ देश समय समय पर दंगो की आग में जलता रहा है फिर वो साम्प्रदयिक  हो अथवा आरक्षण, जनता के विशेष वर्ग का गुस्सा हो या भावनाओ से खिलवाड़। तुरंत दंगा शुरू हो जाता है। आज़ादी की लड़ाई कंधे से कंधा मिलाकर संघर्ष करने वाले भारतीय आखिर क्यों इतने गुस्सैल हो गए कि जिस देश को आज़ाद करने के लिये अपनी कुर्बानी देने वाले लोग उसी देश को आग लगाने के लिये निकल पडते है। आज़ादी की लड़ाई का समय छोड़ दे तो दो संप्रदायों के बीच मत भेदो के चलते दंगो का चलन शायद हमारे देश के कर्णधारों के अपने स्वार्थों तथा दूरदर्शिता की कमी के कारण हुआ जिसका समर्थन अपरोक्ष रूप से नेताओ ने किया औऱ लाखो की संख्या में दोनो साम्प्रदाय के लोग दंगो के भेंट चढ़ गए। आज भी उसकी टीस लोगो के दिलों में दर्द करती है। काश दो नेता अपनी जिद छोड़ देते तो न भारत के टुकड़े होते और न ही लाखो लोग हिंसा की बलि चढ़ते। यह एक ऐसी घटना थी जिसके दिलो में बैठ जाने से दंगो की पुनरावर्ती बार बार होती रही। मैंने तो सुना कि बाद के कुछ दंगे भी राजनीतिक कारणों और संरक्षन के कारण हुए। हम बहुत अधिक इतिहास की  चर्चा में नही उलझना चाहते। हमारा दर्द है कि आखिर तथाकथित धरम निरपेक्ष इस देश में आम निर्दोष जनता इस तरह दंगो की भेट चढती रहेगी? कब तक इस देश की संपत्ति को चंद दंगाई आग के हवाले करते रहेंगे और राजनीतिक पार्टियों के नेता घड़ियाली आंसू बहाकर, गला फाड् फाड़ कर एक दूसरे को कोसते रहेगे ?  क्यो देश की जनता सब कुछ सहकर भी डर कर चुप बैठ जाती है?हम दंगो के इतिहास में नही पड़ना चाहते लेकिन कुछ तो कमी है कि चंद गुंडे अचानक आते है और प्रशासन पर भी भारी पड़ जाते है। और एक के बाद एक नियोजित घटना घट जाती है। तथा कथित गुंडों का तो काम बस यही है इसी से उनकी रोज़ी रोटी चलती है और उनके आकाओं के मंसूबे पूरे। लेकिन सरकार क्या कर रही है? क्या देश में कानून का शासन स्थापित करना इतना मुश्किल है? यदि यह असंभव है तो सरकार और प्रसाशन पर प्रश्न लगना और उसकी योग्यता पर संदेह होना तर्क संगत है। लेकिन हम ऐसा नही मानते। सरकार शक्तिमान है बस आवश्यकता है पुनर्विचार की..
1 क्या नियमो को लेकर प्रदेश सरकारो और केंद्र सरकार के बीच सामंजस्य की कमी है?
2 कठिन परिस्थिति में क्या केंद्र सरकार दंगा नियन्त्रण व
 नयायिक कार्यवाही में दखल नही रख सकती?
३ क्या गोपनिय तंत्र और प्रसाशन की कोई निम्मेदारी नही।
4 ज्ञात गुंडे और हिस्ट्रि शीटर जेल से बाहर किसके संरक्षण से घूमते हैं।
5 इसी देश मे ऐसे मुख्यमंत्री हैं जो दंगो और बदमाशो से  निपटने में और कानून का शासन स्थापित करने के माहिर माने जाते हैं फिर उन का मॉडल भी अपनाया जा सकता है।
6 दंगाइयों की कोई जाति या धर्म नही होते। क्या क्षेत्र मे सामुहिक दंड व्यवश्था उचित होगी।
7 प्रकिर्या को सरल करते हुए दंगाइयों और उनके आकाओं से हानि की भरपाई तुरंत की जानी चाहिये और वसूली तक कोई जमानत नही होनी चाहिये।
8 अवैध हथियारों पर प्रभावी रोक लगनी चाहिये।
9 समय रहते अवांछित संदेश प्रसारित करने वाले व्यक्ति की गिरफ्तारी होनी चाहिये।
10 देश में सड़कों, मुहल्लों, सार्वजनिक स्थानों और धार्मिक स्थानों पर ध्वनि प्रसारक यंत्रों की अनुमति नही होनी चाहये। केवल भवन की सीमा में सीमीत ध्वनि की ही अनुमति होनी चाहिए।
11 दंगो में संलिप्त पाए जाने पर व्यक्ति को आजीवन चुनाव लड़ने के अयोग्य करना चाहिए।
12 राजनीतिक प्रदर्शनों और रैलियों पर प्रतिबंध लगना चाहिये।
हमारा विश्वाश है कि चिंतन से समाधान निकलता है। बहुत हो चुका अब दंगो का अंत होना ही चाहिए।
 अतःसभी से निवेदन है कि अपने अपने स्तर से इस महामारी को समाप्त करने का प्रयास करें।
ललित मोहन शर्मा

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