Uttarakhand

रूड़की के निकट सुनहरा गांव का वह वट वृक्ष जहां दी गयी थी 152 स्वतंत्रता सैनानियों को फांसी

रुड़की: रुड़की के निकट सुनहरा गांव के वट वृक्ष में एक साथ 152 स्वतंत्रता सेनानियों को फांसी दी गई थी। अब यहां हर तीज त्योहार के मौके पर ग्रामीण पूजा अर्चना करके शहीदों को याद करते हैं। शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर वर्ष मेले, वतन की पर मरने वालों का यही बाकी निशां होगा। इसी उक्ति को आत्मसात करते हुए सुनहरा गांव के लोगों ने शहीदों की स्मृति को हमेशा बनाए रखने की अनूठी पहल की है। इस गांव में एक एतिहासिक वट वृक्ष है, जिसके नीचे भूमियाखेड़ा (ग्राम देवता) का थान (चबूतरा) है। आजादी के बाद वर्ष 1948 में गांव वालों ने यहां अपने पितरों के थान भी बना दिए। जिनमें शादी-ब्याह हो या फिर तीज-त्योहार, हर मौके पर पूजा-अर्चना होती है। यह सिलसिला विगत 70 वर्षों से अनवरत चला आ रहा है।

तहसील मुख्यालय रुड़की से तीन किमी की दूरी पर स्थित है सुनहरा गांव। इतिहास के पन्नों में इस गांव के एतिहासिक वट वृक्ष का भी जिक्र है, जिसकी आयु 500 वर्ष बताई जाती है। इस वट वृक्ष पर वर्ष 1824 में अंग्रेजों ने ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ बगावत करने वाले 152 स्वतंत्रता सेनानियों को सरेआम फांसी पर लटका दिया था। उन्हें तब तक फांसी पर लटकाए रखा गया, जब तक कि उनके शरीर का एक-एक कतरा गिर न गया। जिन स्वतंत्रता सेनानियों को फांसी दी गई, उसमें कुंजा रियासत के राजा विजय सिंह के कई सिपहसलार शामिल थे। इसके अलावा सुनहरा व आसपास के गांवों के लोग भी इनमें थे। अंग्रेजों के इस दमनकारी कदम से चारों ओर दहशत व्याप्त हो गई और लोग गांव को छोड़कर चले गए। वट वृक्ष के आसपास तो कोई फटकता भी नहीं था। 15 अगस्त 1947 को देश आजाद हुआ तो सुनहरा गांव के लोगों ने शहीदों को स्मृति को जिंदा रखने के लिए अनूठी पहल की। उन्होंने एतिहासिक वट वृक्ष के नीचे भूमियाखेड़ा की स्थापना की। साथ में कई ग्रामीणों ने अपने पितरों के थान भी वहां बनवा दिए। इन थानों में शादी-ब्याह, अमावस्या-पूर्णिमा समेत अन्य तिथियों पर पूजा-अर्चना होती है। दस मई को तो हर वर्ष यहां श्रद्धांजलि सभा का आयोजन किया जाता है।

देशभक्ति की भाव जगाता है वट वृक्ष  सीबीआरआइ से लैब टेक्निशियन के पद से सेवानिवृत्त सुनहरा गांव निवासी 85-वर्षीय राम सिंह बताते हैं कि वट वृक्ष पर एक साथ 152 देशभक्तों को फांसी दिए जाने की बात उन्होंने अपने बड़े-बुजुर्गों से सुनी थी। वह इस वृक्ष की पूजा भी करते थे। इस वृक्ष के नीचे बैठने से ही खुद-ब-खुद देशभक्ति की भावना जागृत हो उठती है।

सुनहरा गांव के ही 80-वर्षीय रामचंद्र बताते हैं कि अंग्रेजों ने देशभक्तों पर बहुत जुल्म ढाए। यह वट वृक्ष इसका गवाह है। यह एक ऐसी धरोहर है, जो हमें उन शहीदों की याद दिलाती है, जिन्होंने आजादी के लिए अपने प्राणों का भी उत्सर्ग कर दिया। हर माह हम उन्हीं शहीदों की स्मृति में यहां पूजा-अर्चना करते हैं।

वर्ष 2000 में मिला शहीद स्मारक का दर्जा इस महावृक्ष की रेख-देख और यहां समय-समय पर होने वाले देशभक्ति पूर्ण कार्यक्रमों के आयोजन की जिम्मेदारी कर्मयोगी सेवा समिति संभालती है। समिति के सोनू कश्यप बताते हैं कि गांव के लोग यहां शहीदों की याद में स्वतंत्रता दिवस, गणतंत्र दिवस और दस मई के दिन हर साल कार्यक्रम आयोजित करते हैं। इस स्थल को वर्ष 2000 में पर्यटन विभाग की ओर से शहीद स्मारक का दर्जा दिया जा चुका है।

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