Uttarakhand
राज्य उपभोक्ता आयोेग के आदेश पर बीमा कम्पनी नेे किया रू. 7.5 लाख का भुगतान
देहरादून। उत्तराखंड राज्य उपभोक्ता आयोेग के उपभोक्ता फोम उधमसिंहनगर के बीमित व्यक्ति पर आत्महत्या का आरोप लगाते हुये बीमा क्लेम निरस्त करनेे को सेवा में कमी मानने वाले उपभोक्ता फोरम के आदेश को सही माना और बीमा कम्पनी को तीन पालिसियो के बीमा धन प्रति पालिसी ढाई लाख रूपये भुुगतान का आदेेश दिया। आदेश का पालन करते हुये भारतीय जीवन बीमा निगम केे परिवादिनी संतोेष को साढ़े सात लाख रूपयेे का भुुगतान कर दिया हैै। काशीपुर निवासी परिवादिनी संतोष की ओर से नदीम उद्दीन एडवोकेट द्वारा जिला उपभोक्ता फोरम उधमसिंह नगर में वाद दायर करके कहा गया था कि परिवादिनी के पति महिपाल सिंह ने जनवरी 2008 में भारतीय जीवन बीमा निगम से तीन बीमा पालिसियां करायी जिसमें पालिसी सं0 241372220 के लिए 8180रू. पालिसी सं0 241372474 के लिये 8225 तथा पालिसी सं0 241372364 के लिये 8180 रू. के प्रीमियम का भुगतान किया। इन बीमा पालिसियों में प्रत्येक का बीमा धन ढाई लाख रूपये तथा बोनस व दुर्घटना हित लाभ भी मिलना था। परिवादिनी इन पालिसियों में नामिनी थी। दिनांक 21 मार्च 2008 को परिवादिनी के पति महिपाल सिंह की अचानक नहर में डूबने से मृत्यु हो गयी। परिवादिनी ने समस्त औपचारिकतायें पूरी करके बीमा क्लेम प्रस्तुत किया। भारतीय जीवन बीमा निगम ने यह कहते हुये कि महिपाल सिंह ने आत्महत्या की है, क्लेम खारिज कर दिया। परिवादिनी ने बीमा कम्पनी के क्षेत्रीय प्रबंधक, कानपुर को पुनः विचार हेतु आवेदन किया जिस पर प्रत्येक पालिसी के लिये 1 लाख रू. अनुग्रह आधार पर स्वीकृत कर दिया परन्तु दावा पूर्ण रूप से स्वीकार न करने का कोई आधार नहीं लिखा जिसकी शिकायत बीमा लोकपाल के यहां की गयी। बीमा लोकपाल ने अपने 13 जून 2011 के निर्णय से कुछ भी न निर्णय देते हुये केस का निर्णय दीवानी न्यायालय या उपभोक्ता फोरम में हो सकता है, लिखते हुये शिकायत को समाप्त कर दिया।
जिला उपभोक्ता फोरम के तत्कालीन अध्यक्ष पी0के0 अग्रवाल, सदस्य श्रीमति नरेश छाबड़ा तथा तत्कालीन सदस्य भूपेन्द्र सिंह रावत ने परिवादिनी के अधिवक्ता नदीम उद्दीन एडवोकेट के तर्कों से सहमत होते हुये निर्णीत किया कि बीमा धारक द्वारा आत्म हत्या की गयी है इसे सिद्ध करने का भार बीमा कम्पनी पर है। बीमा कम्पनी द्वारा इस तथ्य का कोई सबूत नहीं दिया गया है जो भी सबूत दिया गया है वह सिर्फ उपधारणा पर आधारित है। इस आधार पर बीमा कम्पनी द्वारा परिवादिनी के बीमा क्लेम निरस्त करने को सेवा में कमी माना तथा क्लेम निरस्तीकरण के आदेश को निरस्त कर दिया। साथ ही बीमा कम्पनी को आदेशित किया कि बीमा क्लेम को एक माह के अन्दर निस्तारित करके परिवाद दायर करने की तिथि से भुगतान की तिथि तक 6 प्रतिशत वार्षिक की दर से ब्याज सहित क्लेम की धनराशि का भुगतान करें तथा 2500 रूपये वाद व्यय भी दें। बीमा कम्पनी ने फोरम के निर्णय सेे असंतुुष्ट होकर उत्तराखंड राज्य उपभोक्ता आयोेग में अपील की। राज्य उपभोक्ता आयोेग की तीन सदस्यीय पीठ नेे अपील सं0 218/2013 के अपने निर्णय में दोेनों पक्षोें के कथनों पर विचार करते हुुये बीमा कम्पनी द्वारा आत्महत्या के आधार पर बीमा क्लेेम निरस्त करने को में सेेवा में कमी माननेे के फोरम के आदेश का सही माना। राज्य उपभोक्ता आयोेग के अध्यक्ष न्यायमूर्ति बी.एस.वर्मा, सदस्या वीना शर्मा तथा सदस्य बलवीर प्रसाद ने बीमा कम्पनी कोे प्र्रत्येेक पालिसी के लिये पालिसी की धनराशि ढाई-ढाई लाख रूपये का भुगतान करनेे का आदेश दिया। आयोेग के आदेश पर बीमा कम्पनी ने परिवादिनी के बैंक खाते में तीन पालिसियोें के लिये रू. साढ़े सात लाख का भुुगतान कर दिया है।