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आंख और मुंह में पट्टी बांधकर पुजारी 26 अप्रैल को करेंगे लाटू देवता की पूजा

देहरादून। चमोली जिले के देवाल ब्लॉक के वाण गांव में स्थित श्री लाटू देवता मंदिर धाम में आज पुजारी आंख और मुंह पर पट्टी बांधकर विधि विधान से भगवान की पूजा-अर्चना करेंगे। सोमवार 26 अप्रैल को विक्रम संवत् 2078 पर श्री लाटू देवता धाम के कपाट श्रद्धालुओं के लिए खोले जाएंगे। श्रद्धालु साक्षात नाग को देखकर डरे न इसलिए मुंह और आंख पर पट्टी बांधी जाती है।
माना जाता है कि श्री लाटू देवता उत्तराखंड की आराध्य नंदा देवी के भाई हैं। मंदिर के अंदर नागराज साक्षात रूप में विराजमान हैं। इस मंदिर में मूर्ति के दर्शन नहीं किए जाते हैं। श्रद्धालु करीब 75 फीट दूर खड़े होकर भगवान की आराधना करते हैं। मंदिर के कपाट साल में एक बार वैशाख पूर्णिमा के दिन खुलते हैं। एक और खास बात यह है कि मंदिर के गर्भगृह के कपाट सालभर में एक ही दिन खुलते हैं और उसी दिन बंद किए जाते हैं। मंदिर छह माह तक खुला रहता है, इस मंदिर की मान्यताएं आज भी श्रद्धालुओं को आश्चर्यचकित करती हैं। यह मंदिर समुद्र तल से 8500 फीट की ऊंचाई पर स्थित विशाल देवदार वृक्ष के नीचे एक छोटा मंदिर है। जिस दिन लाटू देवता मंदिर के कपाट खुलते हैं उस दिन यहां पर विष्णु सहस्रनाम व भगवती चंडिका का पाठ भी आयोजित किया जाता है।
उत्तराखंड पर्यटन मंत्री सतपाल महाराज ने कहा कि धार्मिक पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए सरकार की ओर से प्रदेश के सभी छोटे-बड़े मंदिरों को पर्यटन के मानचित्र पर सम्मलित करने के लिए विशेष पहल की जा रही है। श्रद्धालुओं से अपील करते हुए मंत्री श्री महाराज ने कहा कि कोरोना के मुश्किल समय में सोशल डिस्टेंस के नियमों का पालन करते हुए और मुंह पर ठीक से मास्क लगा कर भगवान के दर्शन करें। मंदिर में श्रद्धालुओं की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए सेनेटाइजर और मास्क की व्यवस्था की गई है। श्री लाटू देवता व महानंदा देवी मंदिर समिति के अध्यक्ष कृष्णा सिंह बिष्ट ने बताया कि बैशाख पूर्णिमा पर लाटू देवता के कपाट आगामी छह महीने के लिए आम श्रद्धालुओं के लिए खोल दिए जाएंगे। जिसके बाद श्रद्धालु छह महीने तक लाटू देवता की पूजा-अर्चना कर सकेंगे। उन्होंने कहा कि कोरोना काल में सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए सुक्ष्म तरीके से कपाट खोलने की प्रक्रिया विधि विधान से पूरी की जाएगी। समिति की ओर से मंदिर में श्रद्धालुओं की सुरक्षा के तमाम इंतजाम किए गए हैं। छह माह बाद मंगशीर्ष पूर्णिमा को मंदिर के कपाट बंद कर दिए जाते हैं।

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