पीजीआई में डाक्टरों की हड़ताल के चलते एक दिन 34 मरीजों की मौत
चंडीगढ़। PGI आईसीयू में भर्ती लुधियाना के 46 वर्षीय किडनी ट्रांसप्लांट के मरीज राजकुमार की शनिवार सुबह मौत हो गई। उसके बाद तो PGI में जैसे एक के बाद एक मरीजों की मौत का सिलसिला शुरू हो गया। मृतकों के परिजनों की रोने बिलखने की आवाज से ट्रामा और इमरजेंसी यूनिट में कोहराम मच गया। शाम 7 बजे तक यह आंकड़ा 34 तक पहुंच गया। इसमें पांच एक्सीडेंटल और 29 नॉन मेडिकोलीगल यानि बीमारियों से ग्रस्त मरीज थे। सामान्य दिनों में PGI में मरीजों की मौत का आंकड़ा औसतन 10 से 12 तक रहता है। आइसीयू, इमरजेंसी और ट्रामा के पैरामेडिकल स्टाफ का कहना है कि PGI के ट्रामा, इमरजेंसी और लगभग सभी ऐसी इमरजेंसी यूनिट के मरीज सीनियर रेजीडेंट्स की देखरेख में होते हैं। लेकिन हड़ताल के कारण सभी रेजीडेंट्स डॉक्टरों ने काम ठप कर दिया था। इसलिए मौत की संख्या अचानक इतनी ज्यादा हो गई। फैकेल्टी के ड्यूटी पर रहने का दावा करने वाले PGI प्रशासन के पास भी इन मौतों के कारणों का कोई जवाब नहीं है, क्योंकि शनिवार को रेजीडेंट्स के साथ उनकी लगभग पूरी फैकेल्टी ने भी काम ठप कर दिया था।
पिछले तीन दिनों में PGI में हुई मरीजों की मौत
दिन मौतों की संख्या
31 जुलाई 18
एक अगस्त 21
दो अगस्त 19
तीन अगस्त 34
ओपीडी के साथ टली सर्जरी भी
PGI में रेजीडेंट्स डॉक्टरों की हड़ताल के कारण शनिवार को ओपीडी सेवा ठप रही। एक भी नए मरीज का रजिस्ट्रेशन नहीं हुआ। जबकि सामान्य दिनों में आठ से यहां दस हजार मरीजों का इलाज होता है। यहां चंडीगढ़ के अलावा पंजाब, हरियाणा, उत्तराखंड, हिमाचल और दिल्ली के हजारों मरीज इलाज कराने आते हैं। हालांकि PGI प्रशासन ने ओपीडी में सैकड़ों मरीजों के इलाज किए जाने का दावा किया है।
जहां पैर रखने को नहीं रहता जगह, वहां पूरी गैलरी पड़ी खाली
PGI के जिस ट्रामा सेंटर और इमरजेंसी सेंटर में आम दिनों में पैर रखने तक की जगह नहीं होती, वहां शनिवार को सन्नाटा पसरा रहा। ट्रामा और इमरजेंसी के ज्यादातर बेड खाली थे। गैलरी में एक भी स्ट्रेचर नहीं था। ट्रामा और इमरजेंसी में भर्ती मरीज के परिजन भी डॉक्टरों के आने का इंतजार कर रहे थे। उनमें से कई ज्यादा गंभीर मरीजों के परिजन डॉक्टरों को बुलाने के लिए प्रशासनिक भवन के बाहर जा पहुंचे, लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई। इमरजेंसी और ट्रामा को हड़ताल से बाहर रखने की बात कहने के बावजूद सिर्फ इक्का-दुक्का मरीजों को ही भर्ती किया गया।
मरीजों के जांच के नमूने लेने में आई दिक्कत
हड़ताल के कारण न्यू ओपीडी बि¨ल्डग स्थित कलेक्शन सेंटर को भी नहीं खोला गया। मगर वहां तैनात स्टाफ ने कलेक्शन को हड़ताल से अलग रखने की बात कही। इस बीच लगभग आधे घंटे के बाद सुबह 8:30 बजे कलेक्शन शुरू हुआ। चंद घंटों में लगभग 500 मरीजों के जांच के नमूने लिए गए। इनमें से ज्यादातर मरीज ऐसे थे, जिनके सैंपल का फीस चार दिन पहले जमा हो चुका था।
रेजीडेंट्स डाक्टरों ने दी चेतावनी, और तेज होगा आंदोलन
हड़ताल के दौरान PGI के रेजीडेंट डॉक्टर भार्गव ऑडिटोरियम में एकत्र हुए और शांतिपूर्ण तरीके से विरोध दर्ज कराया। एसोसिएशन के पदाधिकारियों ने बिल की कमियों के बारे में बताते हुए इसमें बदलाव की मांग की और कहा कि अगर ऐसा नहीं हुआ तो सोमवार से सभी सेवाएं ठप कर दी जाएंगी। एसोसिएशन के प्रेसीडेंट डॉ. उत्तम ठाकुर का कहना है कि इस बिल के विरोध में उतरकर हम जनता और मरीजों के हित में बदलाव की मांग कर रहे हैं। क्योंकि यह बिल लागू होने के बाद मरीजों के साथ डॉक्टर बनने की चाह रखने वाले युवाओं के साथ भी अन्याय होगा।
बिल में शामिल इन प्रावधानों पर आपत्ति
- बिल के तहत छह महीने का एक ब्रिज कोर्स लाया जाएगा, जिसके तहत प्राइमरी हेल्थ में काम करने वाले भी मरीजों का इलाज कर पाएंगे।
- हड़ताल करने वाले डॉक्टर इस प्रस्ताव का भी विरोध कर रहे हैं जिसे नेक्स्ट कहा जा रहा है। इसके तहत ग्रेजुएशन के बाद डॉक्टरों को एक परीक्षा देनी होगी और उसके बाद ही मेडिकल प्रेक्टिस का लाइसेंस मिल सकेगा। इसी परीक्षा के आधार पर पोस्ट ग्रेजुएशन के लिए दाखिला होगा। अगले तीन वर्षों में एग्जिट परीक्षा लागू कर दी जाएगी।
- हड़ताली डॉक्टरों को इस बात पर भी आपत्ति है कि एनएमसी निजी मेडिकल संस्थानों की फीस भी तय करेगा लेकिन 60 फीसदी सीटों पर निजी संस्थान खुद फीस तय कर सकते हैं।
- नेशनल मेडिकल कमीशन में 25 सदस्य होंगे। सरकार द्वारा गठित एक कमेटी इन सदस्यों को मनोनीत करेगी। मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया के अधिकारियों की नियुक्ति चुनाव से होती थी और इसमें अधिकतर डॉक्टर सदस्य होते थे। नए बिल ने डॉक्टरों और चिकित्सा समुदाय को विभाजित कर दिया है।
यह कहते हैं पीजीआइ के डायरेक्टर
पीजीआइ के डायरेक्टर प्रोफेसर जगत राम का कहना है कि PGI केवल चंडीगढ़ ही नहीं हरियाणा और पंजाब का भी मुख्य रेफल सेंटर है। यहां अतिगंभीर मरीज रेफर किए जाते हैं। ऐसी स्थिति में यहां मरीजों की मौत के मामले में हड़ताल और सामान्य दिनों की स्थिति के बीच तुलना करना उचित नहीं होगा।