Uttarakhand
प्रतिस्पर्धा के इस दौर में जो जीता वही सिकंदर, किसान प्रतिस्पर्धा के योग्य बने
दुनिया उन्नति कर रही है। विज्ञान के सहारे हमारे देश मे ही नही दुनिया के छोटे छोटे देशों ने भी इतिहास बदल दिया है।ग्लोबल ट्रेड पर बाते और समझौते हो रहे हैं। दुनिया के बाज़ार खोले जा रहे हैं। प्रतिस्पर्धा का कड़ा दौर चल रहा है। उत्पादकों को बाज़ार ढूंढना मुश्किल हो रहा है।
सरकार कब तक किसी वर्ग का पेट भरती रहेगी। जिसका हक छिनेगा वही आंदोलन पर उतर आएगा। आखिर किसी से लेकर ही किसी को दिया जा सकता है। इसलिये देश को आत्म निर्भर बनाने की कवायद हो रही है। प्रतिस्पर्धा के इस दौर में जो जीता वही सिकंदर। आज मुकेश अम्बानी ने चीन को पछाड़कर भारत का नाम रोशन किया है। ऐसे बहुत से क्षेत्र है जहाँ हम विश्व व्यापार में जीत हासिल कर स्वावलंबी बन रहे हैं।
कृषि हमारा मुख्य व्यापार है लेकिन कृषि क्रांति के बावजूद कृषि खेत्र में हम परिस्पर्धा में पीछे है। छोटे छोटे देश हमे खाद्य पदार्थ निर्यात कर रहे हैं। इसका एक ही कारण है कि हमारे किसान गुणवत्ता और बाज़ार के अनुरूप उत्पादन नही कर पा रहे हैं। हमारे किसानों को चाहिये कि वह सरकार की और मुफ्त सुविधाओ के लिये देखना बंद करे और अपने उत्पाद की गुणवत्ता सुधारे इस उसके लिये बाजार की खोज कर स्वावलंबी बने। आन्तरराष्ट्रीय स्टार पर मांग के अनुसार गुण वाली निर्यात योग्य फैसले उत्पादित करें। फल, डिब्बाबंद कटी सब्जिया, आयुर्वेदिक जड़ी बूटियां इसमें विशेष भूमिका निभा सकती है।अब समय आ गया है कि सरकार को टैक्स देने वाले अपने दिए पैसों का हिसाब मांगने लगे हैं। टैक्स का पैसा भूखे लोगो का पेट भरने,शिक्षा, स्वास्थ्य, नागरिक सुविधाओ का विकास करने और ढांचागत विकास के लिये दिया जाता है मुफ्त में सब्सिडी बांटने और दंगाइयों को भुगतान करने के लिए नही। आवाज़ उठनी अवश्यम्भावी है और एक न एक दिन सरकार को भी सब्सिडी के इस खेल से हटना होगा। इसलिये अवश्यक हो गया है कि हम अपने अपने स्तर पर गुणवत्ता को बढ़ावा देकर आत्मनिर्भर बने और राष्ट्र को आत्मनिर्भर बनाये।देश आत्मनिर्भर होकर ही विकसित कहा जा सकता है वर्ना सरकार के पैसे की लूटमार यूं ही चलती रहेगी और देश का मध्यम वर्ग यू ही पिस्ता रहेगा।
किसान भाई वही पैदा करें जिसे वह बाजार में बेचने की क्षमता रखते हो फिर वह धान हो या गेंहू, फल हो या सब्जी अथवा मसाले।आज नही तो कल सरकार पल्ला झाड़ देगी और आपको अपना प्रबंधन स्वयं करना होगा।जरा सोचिए आप अपने खेतिहर मजदूरों को उनकी मनमानी मजदूरी नही दे सकते तो आपको मनमानी कीमत क्यो। सभी परिस्थितियों के अनुसार एडजस्ट करके अपनी आजीविका चलाते है। किसी को सही मजदूरी तो किसी को पर्याप्त वेतन नही मिलता।यहां तक कि व्यापारी को भी घाटे में सामान बेचने पड़ता है। तो क्या सभी सरकार को घेर कर बैठ जाये ?
सोचिये और देश काल की परिश्थिति के अनुसार अपने को सक्षम बनाइये यही जीवन चक्र है।
ललित मोहन शर्मा