हरिद्वार में आद्रभूमि की स्थिति दयनीय
हरिद्वार। गुरुकुल कांगड़ी (समविश्वविद्यालय) के अन्तर्राष्ट्रीय पक्षी वैज्ञानिक प्रो0 दिनेश भट्ट की टीम ने पक्षी सर्वेक्षण के दौरान आद्रभूमि का भी संर्वेक्षण किया और पाया कि हरिद्वार के अधिकांश दलदली जमीन व पोखरों पर मानवीय अतिक्रमण हो चुका है, दलदली जमीनों को मलवा डालकर पाट दिया गया है या कूड़ा डालने की जगह बना दी गयी हैं। धार्मिक नगरी में इस अधार्मिक कार्य का सबसे ताजा उदाहरण पॉश कालोनी गोविन्द पुरी से गंगा-नहर से सटा सैकड़ो साल पुराना वैट लैण्ड यानी दलदली जमीन जो हजारों वर्ग फुट में फैली थी, अब सिकुड़ कर कुछ ही वर्ग फुट रह गयी है।
गोविन्द नगर घाट जाने हेतु इसी वैटलैण्ड को पाट कर रास्ता बना दिया गया है, जबकि नियमानुसार पुल बनना चाहिये था, सरकारी विभागों द्वारा ही ‘‘सींवेज पम्पिंग स्टेशन’’ भी इसी वैटलैण्ड पर ही बना दिया गया है। लोगों ने अपने घर का रिपेयरिंग का मलवा व सड़क के ठेकेदार ने सड़क का मलवा भी यही डाल दिया है। कालोनी वालांे ने सड़क चौडी कर कार पार्किग बना दी, बाकि काम अनियमित/अवैद्य बस्तियों ने पूरा कर दिया।
गोविन्द पुरी का वैटलैण्ड जो कभी अतिवर्षा व बरसात मे ब्लौटिग पेपर की तरह पानी सोखता था, अब समाप्ति के कगार पर है और कालोनी बरसात में जलमग्न रहती है। भारत सरकार के वैटलैण्ड (कन्जरवेशन एवं मनैजमैंट) रुल्स 2017 के अनुसार वैटलैण्ड में कोई भी निर्माण, सोलिड वेस्ट का डम्पिंग अतिक्रमण इकोलोजीकल परिवर्तन इत्यादि प्रतिबन्धित है और पर्यावरण प्रोटेकशन एक्ट, 1986 के प्रावधान के अनुसार प्रतिबन्धित है। कनखल की लाटोवाली कालोनी भी वैटलैण्ड में ही बसी है। धार्मिक व एतिहासिक सतीकुन्ड जिसमें जकाना पक्षी व जलमुर्गी का वास था व जहां कमल-दल खिले रहते थे, आज परिवर्तित स्थिति में है। अतः सरकार व जनता दोनों को आद्रभूमि के संरक्षण में योगदान देना चाहिये। सर्वविदित है कि आद्रभूमि (वैट लैण्ड, दलदली भूमि तालाब, पोखर, झील आदि हमारे जीवन में पर्यावरण, आर्थिक एवं सामाजिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण होती हैं। इनके महत्व एवं उपयोगिता को देखते हुए, ‘जैव-विविधता का स्वर्ग’ एवं ‘बायोलॉजिकल सुपर मार्केट’ भी कहा जाता है। परन्तु दुःख का विषय है कि विगत कुछ दशकों से हमारी महत्वपूर्ण आद्रभूमि गहरे संकट में है।