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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की रूस यात्रा है तो बेहद छोटी, लेकिन इसकी अहमियत है बहुत खास

नई दिल्‍ली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की रूस की यात्रा बेहद छोटी जरूर है लेकिन इसकी अहमियत उतनी ही बड़ी है। यह खास इसलिए भी है क्‍योंकि यह ऐसे समय में हो रही है जब पाकिस्‍तान जम्‍मू कश्‍मीर के मसले पर लगातार भारत पर आरोप लगा रहा है। हालांकि इस मसले पर रूस ने अपना रुख पहले ही साफ कर दिया है और कहा है कि जम्‍मू कश्‍मीर पर लिया गया भारत का फैसला पूरी तरह से आंतरिक है और इसमें किसी भी दूसरे देश की दखलअंदाजी की जरूरत नहीं है। आपको यहां पर बता दें कि पीएम मोदी इस बार वहां पर ईस्टर्न इकोनॉमिक फोरम (ईईएफ) की बैठक में शिरकत करने पहुंचे हैं। इस यात्रा के दौरान दोनों देशों का जोर सिविल न्‍यूक्लियर कॉपरेशन पर होगा। इसके अलावा कहा ये भी जा रहा है कि इस दौरान 25 के करीब समझौतों पर हस्‍ताक्षर हो सकते हैं। इनमें रक्षा, व्‍यापार, निवेश, ऊर्जा से जुड़े क्षेत्र शामिल हैं।

चार बार पहले भी रूस गए हैं पीएम मोदी  जहां तक पीएम मोदी की रूस की यात्रा की बात है तो आपको बता दें कि कि 2014 से लेकर अब तक पीएम मोदी चार बार रूस की यात्रा कर चुके हैं। सबसे पहले वह जुलाई 2015 में उफा में आयोजित ब्रिक्‍स सम्‍मेलन में हिस्‍सा लेने वहां गए थे। इसके बाद इसी वर्ष दिसंबर में भी उन्‍होंने रूस की यात्रा की थी। मई-जून 2017 में पीएम मोदी और राष्‍ट्रपति व्‍लादिमीर पु‍तिन के बीच सेंट पीट्सबर्ग में भारत-रूस सम्‍मेलन के दौरान मुलाकात हुई थी। मई 2018 में ये दोनों नेता एक बार फिर से सोची में मिले थे। रूस की ही धरती पर इस तरह से यह पांचवीं मुलाकात होगी। जहां तक दोनों नेताओं की मुलाकात की बात है तो इसी वर्ष जून में यह दोनों नेता किर्गिज की राजधानी बिश्‍केक में एससीओ सम्‍मेलन में मिले थे।

इस दौरे पर होंगी अहम घोषणाएं  जहां तक मौजूदा यात्रा की अहमियत का प्रश्‍न है तो यह यात्रा इसलिए भी बेहद खास है क्‍योंकि इसमें दो ऐसी अहम घोषणाएं होनी है जो भारत व रूस के रिश्तों को नई दिशा देंगी। इसके तहत दोनों देश अगले पांच वर्षो के लिए हाइड्रोकार्बन क्षेत्र में सहयोग का एजेंडा तय करेंगे। साथ ही रूस में प्रशिक्षित पेशेवरों की कमी भारत से पूरा करने के लिए एक सहयोग पत्र पर भी हस्ताक्षर होंगे। इस यात्रा की अहमियत इसलिए भी बेहद खास है क्‍योंकि हाल ही में रूस ने कहा है कि भारत ने मिसाइल सिस्‍टम एस 400 की राशि का अग्रिम भुगतान कर दिया है। यहां पर ये बताना बेहद जरूरी हो जाता है कि भारत अमेरिका की धमकियों को नजरअंदाज कर रूस के साथ यह सौदा कर रहा है। लिहाजा पीएम मोदी ने अपनी इस यात्रा से कई चीजों को एक साथ साधा है।

जम्‍मू कश्‍मीर पर रूस का साथ  विदेश और रक्षा विशेषज्ञ भी पीएम मोदी को बेहद खास मान रहे हैं। ऑब्‍जरवर रिसर्च फांउंडेशन के प्रोफेसल हर्ष वी पंत का कहना है कि रूस ने जम्‍मू कश्‍मीर समेत कई मुद्दों पर भारत का हमेशा से साथ दिया है। दूसरी बात यहां पर ये भी खास है क्‍योंकि कुछ समय पहले तक रूस की जिस तरह से चीन और पाकिस्‍तान के साथ नजदीकियां बढ़ रही थी और इसको लेकर भारत के मन में जो चिंता थी उस पर भी लगभग विराम लग गया है। रूस ने जम्‍मू कश्‍मीर पर भारत का खुला समर्थन कर इसका स्‍पष्‍ट संकेत भी दिया है। यूएनएससी में भी रूस की ही बदौलत चीन और पाकिस्‍तान को मात खानी पड़ी थी।

अमेरिका-रूस-भारत  जहां तक रक्षा क्षेत्र की बात है तो भारत एस 400 को लेकर पहले ही अपना रुख बेहद साफ कर चुका है। जहां तक अमेरिका की बात है तो क्‍योंकि अमेरिका चाहता है कि रूस दोबारा जी 7 में शामिल हो, लिहाजा वह ऐसा कहने के बाद भारत पर इसलिए किसी तरह का प्रतिबंध नहीं लगाएगा कि भारत उससे मिसाइल प्रणाली खरीद रहा है। ऐसा करने पर वह खुद भी सवालों के घेरे में आ जाएगा। हालांकि प्रोफेसर पंत यह भी मानते हैं कि क्‍योंकि रूस के पास अब तकनीक इतनी विकसित नहीं है जितनी पश्चिम के पास है लिहाजा भविष्‍य में भारत का झुकाव इस क्षेत्र की भरपाई के लिए पश्चिम देशों की तरफ ज्‍यादा रहेगा। उनके मुताबिक एक दशक के दौरान रूस तकनीक के क्षेत्र में कुछ पिछड़ गया है और पश्चिम के पास बेहद नई तकनीक उपलब्‍ध है।

अफगानिस्‍तान का मुद्दा प्रोफेसर पंत का कहना है कि इस सम्‍मेलन में अफगानिस्‍तान का भी मसला जरूर उठेगा। यह इसलिए भी खास है क्‍योंकि यदि अमेरिका यहां से अपनी फौज को हटाता है तो कहीं न कहीं भारत और रूस की जिम्‍मेदारी यहां पर बढ़ जाएगी। ऐसा इसलिए भी होगा क्‍योंकि दोनों ही देश यहां से आतंकवाद को अपने से दूर रखने की कोशिश करेंगे। वहीं अमेरिका भी चाहता है कि भारत अफगानिस्‍तान में दखल दे। इसके अलावा रूस ने भी इस बारे में पहले एक कोशिश की थी जिसमें भारत भी शामिल हुआ था। हालांकि वह मानते हैं कि अफगानिस्‍तान को लेकर रूस और भारत के बीच कुछ मतभेद तालिबान को लेकर जरूर हैं। हालांकि यह बात भी किसी से छिपी नहीं है कि अमेरिका व तालिबान के बीच होने वाले समझौते में भारत व रूस साझा हित तलाशने होंगे।

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