पांडवों द्वारा निर्मित ‘बाथू की लड़ी’ आठ मंदिरों की ऐसी श्रृंखला है जो साल में केवल चार माह ही दिखाई देती है
जालंधर । मनभावन सावन में यदि अद्भुत नजारों वाले महादेव के धाम जाने का मौका मिल जाए तो समझिए सोने पर सुहागा। जालंधर से पानी में डूबे विश्वप्रसिद्ध मंदिर देखने आपको बाली द्वीप जाने की ही जरूरत नहीं बल्कि वैसा ही नजारा करीब पास ही मिल जाएगा। 5500 साल पुराने मंदिरों की यह श्रृंखला आठ माह की जल समाधि ले लेती है । ऊना में ‘गरीब नाथ मंदिर ‘ इस मौसम में पानी से घिर जाता है और यहां पर प्राकृतिक सौंदर्य की अनोखी छटा रहती है। इसी प्रकार पठानकोट के रमणीक स्थल पर स्थित ‘मुक्तेश्वर धाम’ भी भविष्य में जल समाधि ले सकता है।
मंदिर पर पानी या मौसम का कोई प्रभाव नहीं हुआ जालंधर से 150 कुछ किलोमीटर की दूरी पर पंजाब व हिमाचल की सीमा पर बने ब्यास नदी पर बने पौंग बाध की महाराणा प्रताप सागर झील में पौंग की दीवार से 15 किलोमीटर पर एक टापू पर स्थित है बाथू की लड़ी, जो पंजाब से सटे हिमाचल के ज्वाली में पड़ता है। साढ़े पांच हजार साल पहले पांडवों द्वारा निर्मित ‘बाथू की लड़ी’ आठ मंदिरों की ऐसी श्रृंखला है जो साल में केवल चार माह ही दिखाई देती है। यहां एक शिवलिंग मुख्य मंदिर के गर्भगृह में मौजूद है और द्वार पर भगवान गणेश तथा माता काली की प्रतिमाएं हैं। हर साल आठ महीने की जल समाधि लेने वाले ये मंदिर हजारों साल बाद भी मूल ढांचे को बरकरार रखे हुए है। दरअसल, बाथू पत्थर से बने होने के कारण पत्थर पर पानी या मौसम का कोई प्रभाव नहीं हुआ है और वे आज भी चमकदार हैं। हालांकि बाकी निर्माण सामग्री कुछ हद तक खराब हुई है। पौंग डैम के निर्माण के बाद से यानी गत 43 साल से यह मंदिर के आठ माह तक लगभग पूरी तरह पानी में डूब जाता है। इसका कारण है महाराणा प्रताप सागर झील के जलस्तर का बढ़ जाना। इस मंदिर में आज भी पुरानी महाभारत काल की वस्तुएं मौजूद हैं, लेकिन पुरातत्व विभाग व सरकार की अनदेखी के कारण यह स्थल अपना अस्तित्व खो रहा है। हालांकि इस धरोहर को एक बेहतरीन व दुर्लभ पर्यटक स्थल में तब्दील किया जा सकता है। इसे सहेजना जरूरी है।
केवल गर्मी में होते हैं दर्शन मार्च से जून तक ही बाथू की लड़ी का यह मंदिर पूरी तरह दिखाई देता है। मंदिर के दर्शन के लिए लोग मछुआरों की नावों में जाते हैं। ग्रीष्म ऋतु में पूर्ण रूप से पानी के बाहर रहने से इस मंदिर के दर्शन किए जा सकते हैं। मंदिर के चारों ओर झील के कारण यह स्थान अति मनमोहक लगता है। इस स्थान पर कई गीतों व फिल्मों की शूटिंग हो चुकी है। बाथू की लड़ी को जाने वाला रास्ता भी काफी दयनीय स्थिति में है। पानी में समाए रहने के कारण इस मंदिर की नक्काशी और इसके पास निर्मित छोटे-छोटे मंदिर गिरने शुरू हो गए हैं।
धरती पर स्वर्ग जैसा स्थल लगता है बाबा गरीब नाथ का मंदिर जालंधर से करीब 120 किलोमीटर दूर खड़ा बाध से 13 किलोमीटर की दूरी पर रायपुर मदान के पास गाव अंद्रोली में गोबिंद सागर झील में जलमग्न बाबा गरीब दास जी का मंदिर इन दिनों आकर्षण का केंद्र बना हुआ है। हिमाचल के जिला ऊना की हरी-भरी मनोहारी वादियों में सावन महीने के दौरान यहां जलाभिषेक करना शुभ माना जाता है। भाखड़ा बांध का जलस्तर जब 1668 फीट तक पहुंचता है तब टापू जैसी बनने वाली पहाड़ी पर भोले बाबा के इस मंदिर के चारों तरफ पानी ही पानी नजर आता है। इस वजह से मंदिर के विहंगम दृश्य को देखने के लिए यहा पर्यटकों का सैलाब उमड़ने लगता है।
गद्दी नशीं माता शीला देवी के अनुसार भाखड़ा बांध बनाने के समय जिन गावों को खाली करवाया गया, वहा बाबा गरीब नाथ की कुटिया भी थी, जिसे वहां से हटाना चाहा तो ऐसा करने वालों की आखों की रोशनी चली गई। उनके बाद बाबा नसीब सिंह राणा ने 1979 में मंदिर का निर्माण करवाया और इसकी ऊंचाई बाध से 50 फीट अधिक रखी। यह मंदिर बाबा बालक नाथ मंदिर के बाद नाथों का दूसरा सबसे बड़ा मंदिर है। झील के भरने पर यह मंदिर 4-5 फीट पानी से घिर जाता है। बांध का जलस्तर 1678 फीट होने पर फ्लडगेट खोल दिए जाते हैं ताकि मंदिर पूरी तरह न डूबे। प्राकृतिक सुंदरता से सराबोर इस धार्मिक स्थल की वादिया शूटिंग के लिए भी अनुकूल मानी जाती हैं। इसलिए अब तक यहा बॉलीवुड, पॉलीवुड सिंगरों व मॉडलों के सैकड़ों वीडियो एल्बम शूट हो चुके हैं। मंदिर तक आने वाले भक्तों के लिए मुफ्त में चलने वाली नाव का विशेष प्रबंध मंदिर कमेटी की ओर से किया जाता है।
..तो डूब जाएगा मुक्तेश्वर धाम पठानकोट के नजदीक रणजीत सागर डैम के पास स्थित प्राचीण मुक्तेश्वर महादेव धाम ऐतिहासिक और धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है। पांडवों द्वारा अपने अज्ञातवास के दौरान इस पहाड़ी में पाच गुफाओं का निर्माण किया गया था। इन्हीं में से एक गुफा में महादेव का पवित्र शिवलिंग आज भी मौजूद है। कहते हैं कि इसी शिवलिंग की अराधना करके पांडवों ने महादेव से कौरवों के साथ संभावित महाभारत युद्ध में जीत का वरदान प्राप्त किया था। दूर-दूर से श्रद्धालु यहां आकर शीश नवाते हैं और बैसाखी पर यहां का पवित्र स्नान हरिद्वार के बराबर शुभ मानते हैं।पठानकोट से 25 तथा शाहपुर कंडी से 2 किलोमीटर दूर इस पावन मंदिर के अब शाहपुर कंडी बैराज प्रोजेक्ट से खतरा उत्पन्न हो गया है। कहा जा रहा है कि यदि यह परियोजना पूरी की जाती है तो यह प्रसिद्ध मंदिर भी जल समाधि ले लेगा। शाहपुर कंडी के 206 मेगावाट प्लाट के कारण बनने वाली झील में यह मंदिर पूरी तरह डूब जाएगा। कई स्थानीय संगठन इस मंदिर को बचाने के लिए प्रयासरत हैं, लेकिन पंजाब सरकार व शाहपुर कंडी बैराज प्रशासन इस बारे में चुप्पी साधे हुए हैं।