पाकुड़ राज परिवार में 1933 में की गई थी जैविक शस्त्र से हत्या
पाकुड़। कोरोना वायरस को लेकर चीन पर इसे जैविक हथियार के तौर पर विकसित करने के आरोप लगाए जा रहे हैैं। ऐसे में मौजूदा हालात ने अपने देश में भी जैविक हथियार के उपयोग की यादें ताजा कर दी हैैं। झारखंड के पाकुड़ राजपरिवार में इसका उपयोग करीब 87 साल पहले किया गया था। पाकुड़ राजघराने की गोकुलपुर राजबाड़ी के जमींदार प्रतापेंद्र चंद्र पांडेय के पुत्र बेनोयेंद्र चंद्र पांडेय ने हावड़ा रेलवे स्टेशन पर सौतेले भाई अमरेंद्र चंद्र पांडेय पर 1933 में प्लेग के जीवाणु का हमला कराया था। इलाज के दौरान कोलकाता में अमरेंद्र की मौत हो गई थी। इस मामले में 10 जनवरी 1936 को अदालत ने बेनोयेंद्र और उनके दोस्त तारानाथ भट्टाचार्या को आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी। दोनों को अंडमान निकोबार की सेलुलर जेल में आजीवन कारावास की सजा काटनी पड़ी थी। बात 26 नवंबर 1933 की है। अमरेंद्र चंद्र हावड़ा स्टेशन पर परिजनों के साथ खड़े थे। उन्हें पाकुड़ आना था। उसी दौरान चादर से मुंह और हाथ को ढंके एक व्यक्ति ने उन पर हमला किया। वह उन्हें सुई चुभा कर भाग निकला। अमरेंद्र को दाहिने हाथ में चुभन महसूस हुई। हमले के कुछ देर बाद सौतेले भाई बेनोयेंद्र अचानक वहां दिखे। परिजन चाहते थे कि कोलकाता में अमरेंद्र को डॉक्टर को दिखा दिया जाए, पर बेनोयेंद्र ने मामले को साधारण बात कह कर डॉक्टर के पास जाने नहीं दिया। वे लोग पाकुड़ आ गए। कुछ दिन बाद अमरेंद्र की तबीयत खराब हो गई तो इलाज के लिए कोलकाता ले जाया गया। चार दिसंबर 1933 को उनकी मौत हो गई। अमरेंद्र के रिश्तेदार कमला प्रसाद पांडेय ने 22 जनवरी 1934 को इस मामले की जांच के लिए कोलकाता के पुलिस उपायुक्त को आवेदन दिया। सब इंस्पेक्टर शरतचंद्र मित्रा को इस मामले की जांच सौंपी गई।
मुंबई की प्रयोगशाला से लाए गए थे जीवाणु कोलकाता में अमरेंद्र का इलाज डॉक्टर नलिनी रंजन सेनगुप्ता ने किया था। उन्होंने ब्लड की जांच कराने की सलाह दी थी। जांच में पता चला कि अमरेंद्र का रक्त बुबोनिक प्लेग के जीवाणु से संक्रमित था। मुकदमा होने के बाद पुलिस की जांच में यह बात सामने आई कि सुई के जरिये अमरेंद्र के शरीर में प्लेग का जीवाणु डाला गया। मुंबई के आर्थर रोड अस्पताल से जीवाणु लाया गया था। वह अस्पताल अब भी है। उसका नाम कस्तूरबा हॉस्पिटल हो चुका है। पुलिस की जांच में यह भी पता चला कि प्लेग का जीवाणु लाने के लिए बेनोयेंद्र कोलकाता में रहने वाले अपने मित्र व जीवाणु वैज्ञानिक तारानाथ के साथ कई बार मुंबई गए थे। तारानाथ ने जीवाणु को यह कह कर हासिल करने का प्रयास किया था कि उन्होंने प्लेग की दवा खोज ली है। रिसर्च के लिए प्लेग के जीवाणु चाहिए। कई बार प्रयास के बाद वह जीवाणु लाने में सफल रहे। इसी का उपयोग हत्या में किया गया। तब प्लेग की बीमारी लाइलाज थी। कोलकाता की निचली अदालत ने बेनोयेंद्र और तारानाथ को फांसी की सजा सुनाई। ऊपरी अदालत ने बेनोयेंद्र व तारानाथ की फांसी की सजा को आजीवन कारावास में बदल दिया था।
इसलिए मरवा दिया था पाकुड़ राजपरिवार की सदस्य और मौजूदा वारिस मीरा प्रवीण सिंह ने बताया कि जैविक हथियार से दादा अमरेंद्र को मारे जाने की बात बुजुर्गों से सुनी थी। परिवार में अक्सर ही इस पर चर्चा होती थी। वयस्क हुई तो मुकदमे के दस्तावेज देखने का मौका मिला। प्रतापेंद्र चंद्र पांडेय का निधन हो गया था। उनके भाई सत्येन्द्र चंद्र पांडेय की पत्नी सूरजबती जीवित थीं। तब बेनोयेंद्र 27 साल और अमरेंद्र महज 16 साल के थे। बेनोयेंद्र पूरी संपत्ति हड़पना चाहते थे, जबकि जायदाद में अमरेंद्र का भी अधिकार था। अमरेंद्र ने विरोध किया था। इसलिए हत्या का ऐसा षड्यंत्र रचा कि किसी को शक नहीं हो।