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पाकिस्तान : प्रधानमंत्री मोदी के नाम पर वोट मांग रहे पाक नेता

नई दिल्‍ली । 25 जुलाई को होने जा रहे पाकिस्तान चुनाव में सबसे बड़ा मुद्दा क्या है? सोचिए ! बिजली, पानी, सड़क, आतंकवाद, या गरीबी…बिल्कुल नहीं। कश्मीर भी इस बार चुनाव लड़ रही किसी भी पार्टी के घोषणा-पत्र में प्रभावी उपस्थिति नहीं दर्ज करा पाया है। दरअसल भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र दामोदर दास मोदी पड़ोसी मुल्क में हो रहे आम चुनावों में सबसे बड़ा मुद्दा बने हुए हैं। स्वभावगत समस्या के चलते वहां की हर बड़ी-छोटी पार्टी पानी पी- पीकर भारतीय पीएम को कोस रही है। इस कोसने में उनका अपने हुक्मरानों के प्रति एक तंज का भाव है, एक मलाल झलकता है।

सबको मोदी से शिकायत है। कोई कह रहा है कि मोदी की सधी हुई विदेश नीति ने पाकिस्तान को वैश्विकमंच पर अलग-थलग कर दिया तो किसी की शिकायत है कि एक अकेला मोदी देखो भारत को कहां पहुंचा रहा है और हमारे यहां लोग अपनी जेबें भरने में जुटे हुए हैं। वैसे तो पाकिस्तानी चुनाव में भारत विरोध हमेशा एक बड़ा मुद्दा रहा है। लेकिन ऐसा पहली बार हो रहा है जब भारत विरोध से ज्यादा पाकिस्तान में मोदी विरोध के नाम पर नेता वोट मांग रहे हैं।

हाफिज सईद
जमात-उद-दावा और लश्कर-ए-तैयबा प्रमुख है। इसके संगठन को संयुक्त राष्ट्र ने आतंकी संगठनों की सूची में डाल रखा है। मुंबई पर आतंकी हमला कराकर 164 लोगों की जान लेने वाले इस आतंकी पर अप्रैल, 2012 में अमेरिका ने एक करोड़ डॉलर का ईनाम घोषित कर रखा है। पाकिस्तान चुनाव में मिल्ली मुस्लिम लीग पार्टी बनाकर उम्मीदवारों को उतार चुका है।

जीत की जुगत
मुंबई हमले का मास्टरमाइंड है। पाकिस्तान को सौंपी गई भारत की मोस्ट वांटेड सूची में शामिल है। वहां की सियासत में अच्छा खासा रसूख होने के बावजूद इस बार पार्टी बनाकर चुनाव में उतार चुका है। खुद तो चुनाव नहीं लड़ रहा है लेकिन अपनी पार्टी के उम्मीदवारों के समर्थन में रैलियां और सभाएं कर रहा है। भीड़ को संबोधित करते हुए भारतीय प्रधानमंत्री पर निशाना साध रहा है। वो पाकिस्तानी जनता को बता रहा है कि मोदी सरकार कश्मीर में नदियों पर बांध बनाकर पाकिस्तान का पानी रोक रही है। वह पाकिस्तानी अवाम से अपील कर रहा है कि उन लोगों को वोट दो, जो पाकिस्तानी नदियों पर भारत को बांध बनाने से रोक सकें।

पिछड़ता पड़ोसी
भारत से एक दिन पहले आजाद हुआ पाकिस्तान विकास के तमाम पैमानों पर पिछड़ता जा रहा है। मजबूत लोकतंत्र के अभाव में जनकल्याण नीतियों का सिरे न चढ़ पाना इसकी बड़ी वजह रही।

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