कोरोना फाइटर नर्सों को हमारा सलामः डा सुजाता
देहरादून। वो कभी मां बन जाती है, तो कभी बहन, कभी गुस्सा करती है तो कभी प्यार जताती है, वो हमारी सेवा करती है, वो निस्वार्थ भाव से मदद करती है, वो नई जिंदगी देती है, उसे हम नर्स कहते है, सिस्टर कहते है, उपचारिका कहते है, बहनजी भी कहते है। वैसे तो अस्पतालों में कार्यरत नर्स स्टाफ की मरीज के जीवन में बहुत ही अहम भूमिका होती है लेकिन कोरोना महामारी के इस दौर में नर्स बेहद अहम भूमिका निभा रही हैं। जान पर खेलकर मरीजों का इलाज करने में मदद कर रही हैं। अपने घरों से दूर, परिवार से दूर रहकर अपनी ड्यूटी पूरी निष्ठा और ईमानदारी के साथ कर रही हैं। स्वास्थ्य देखभाल को भारत की सार्वजनिक प्राथमिकता के रूप में पहचाना गया है – और नर्सिंग स्वास्थ्य देखभाल देने में एक केंद्रीय भूमिका निभाती हैं। नर्स पद बहुत ही सम्मानजनक पद है। नर्सिंग स्वास्थ्य सेवा से जुड़ा ऐसा पेशा है, जिसमें व्यक्तियों, परिवारों या यूं कहें कि समुदायों की स्वास्थ्य संबंधी देखरेख की जाती है, ताकि जब तक जीवन है, उसे भरपूर जिया जा सके। न केवल किसी भी अस्पताल की, बल्कि समाज की अनिवार्यता है नर्सिंग। सेवा जब शीर्ष पर पहुंचती है तो नर्सिग का रूप ले लेती है। वैसे भी नर्स होना समर्पण की एक गाथा है, जिसमें जीवन का संगीत बजता है।
बुधवार को अंतरराष्ट्रीय नर्स दिवस है। इस दिन इनकी सेवा को याद करना जरूरी है, क्योंकि बिना नर्सिंग स्टाफ के इस लड़ाई को लड़ना मुमकिन नहीं है।
डाॅ0 सुजाता ने बताया कि चिकित्सा के क्षेत्र में महज डाॅक्टर या सर्जन शामिल नहीं होते है बल्कि इनके सहायक के तौर पर कई दुसरे लोग भी कार्य करते है। इन्हें भले ही डाॅक्टरों के सामने नजरअंदाज कर दिया जाता है लेकिन वे डाॅक्टरों से कम सेवाभाव के साथ काम नहीं कर रहे होते। मानव सेवा के साथ चिकित्सा में रूचि रखने वाले युवकों और युवतियों के लिए नर्सिंग भी एक बहुत ही अच्छा केरियर है। सेवा ही इनकी पहचान है। आज के हैल्थ कियर सिस्टम में नर्से महत्वपूर्ण जीवनदायनी भूमिका निभा रही है। दरअसल ये मरीज की शारीरिक पीड़ा को अच्छी तरह समझ कर उन्हें बीमारियों से लड़ने का एक मानसिक जज्बा भी देती है।
प्रियंका चंद नर्स ने बताया कोरोना की दूसरी लहर के बाद देशभर के अस्पतालों में मरीजों की कतार लगी है। ऐसे में डॉक्टरों के साथ साथ नर्सेज और हेल्थकेयर स्टाफ बहुत बड़ा रोल निभा रहा है। हमारे पेशे में मरीज की सेवा करना ही पहला धर्म है। में अपने घर भी नहीं जा पाती। घर वालों के आशीर्वाद से अपनी ड्यूटी कर रही हूं। मरीज के साथ-साथ अपने परिवार को भी सुरक्षित रखना हमारी जिम्मेदारी है। महामारी के इस दौर में सभी को ईमानदारी से अपना काम करना चाहिए।
डाॅ0 सुजाता संजय, स्त्री एवं प्रसूति रोग विशेषज्ञ, संजय आॅर्थेापीडिक, स्पाइन एवं मैटरनिटी सेंटर ने बताया कि किसी मरीज को ठीक करने में नर्सो का योगदान 60 प्रतिशत और डाॅक्टर का योगदान केवल 40 प्रतिशत होता है। जो लड़कियां या लडके सोशल वर्क को कैरियर के रूप में अपनाना चाहते है उनके लिए यह एक बेहतरीन केरियर साबित हो सकता है।