Uttarakhandजन संवाद
नेतृत्व देने वाले किसी टीम का सहारा नही लेते बल्कि वो खुद अपनी टीम का निर्माण करते हैं
लेख
आज उत्तराखंड के एक प्रसिद्ध लोकप्रिय कर्नल का भाषण का वीडियो देखने का अवसर मिला। जहां देश के एक वीर सिपाही के जीवन के संस्मरण सुनकर सीना गर्व से फूल रहा था, उसकी सादगी और दुरदृष्टिता पर प्रसन्ननता हो रही थी वही दिल के दूसरे कोने में निराशा थी यह देखकर कि पहाड़ की उन्नति का सपना संजोय इस महान व्यक्तित्व और राष्ट्र वादी ने अपने उद्देश्यों की पूर्ति के लिये निराशा जनक रास्ता चुन लिया जो उसे पहाड़ और राष्ट्र निर्माण की और नही बल्कि झूठे और अवसरवादी कैम्प की और ले जाता है। इस मार्ग पर चलते हुए जो लोग उनके पीछे चल रहे होंगे उनके सब पुण्य कार्यो को झाड़ू से साफ करते जाएंगे।
कर्नल साहिब की सादगी, साफगोई और अपनी सफलताओं का श्रयेय अपनी टीम को देना उनकी लीडरशिप को इंगित करता है लेकिन एक मैनेजर से लीडर बनने के लिये उनका पाठशाला का चयन आश्चर्य चकित कर देने वाला है। कहते है शिक्षा और सोसाइटी का व्यक्ति के जीवन पर बड़ा प्रभाव होता है। यह वो पाठशाला नही जो एक राष्ट्रवादी का व्यक्तित्व निखार सके। वो गुरु नही जो जीवन का दर्शन करा सके । जो विवेकानंद की तरह लक्ष्य प्राप्ति का मार्ग दिखा सके।
नेतृत्व देने वाले किसी टीम का सहारा नही लेते ।वो खुद अपनी टीम का निर्माण करते है। वो आगे चलते है, लोग जुड़ते हैं और कारवां बन जाता है। मै नही कहूंगा कि उनकी भी अपनी अपेक्षायें नही है। वो भी अचानक आसमान को छू लेने की तमन्ना नही रखते लेकिन कमजोर सीढ़ी का सहारा लेने के स्थान पर माउंट एवरेस्ट पर चढ़ने जैसा अपना अलग रास्ता चुनते तो पहाड़ में सूर्य की भांति चमकते। राजनीतिक दल चुनते हुए उन्होंने भी अपना लक्ष्य और आदर्श तय किया होगा। तो क्या उन्होंने सेना के पराक्रम पर प्रश्न उठाने, ताहिर हुसैन जैसे गुंडों का समर्थन करने, मौलवियों को सरकार द्वारा वेतन देने और जनता के टैक्स के पैसों का निजी प्रचार करने तथा विकास कार्यो के पैसों को मुफ्त में बांटने का समर्थन करने का मन बना लिया है? पूरे जीवन राष्ट्र की सेवा करने के बाद अपनी राजनीतिक इच्छा के चलते क्या उनकी राष्ट्र प्रेम की परिभाषा बदल गयी है ?
अच्छा होता समय को पहचानते हुए अकेले उत्तराखंड निर्माण टीम का गठन कर आगे बढ़ते तो प्रदेश की जनता उंन्हे सर आंखों पर बिठाकर उदीयमान कर देती। और अगर किसी दल और राजनीतिक तजुर्बे की आवश्यकता थी तो जगजाहिर राष्ट्र भक्त, राष्ट्र निर्माता, मां भारती के पुत्र और देश को विश्व गुरु बनने की और ले जाते हमारे प्रधान मंत्री से उत्तम शायद कोई गुरु नही हो सकता था। प्रदेश में कर्नल साहिब को निखारने वाला कोई और हो ही नही सकता। हमारा प्रदेश देश के लिये जान की बाज़ी लगाने वाले वीरों से भरा पड़ा है जो आज भी सेवा निवर्ती के बाद भी देश के लिये जीते है, सोचते और करते है। अनुभवी है जिन्हें साथ लेकर देश निर्माण की नई कहानी लिखी जा सकती है। कर्नल साहिब पुनः विचार करे। उनके सामने एक और देश निर्माण और उसमें लगी विशाल सेना है तो दूसरी और स्वार्थी राजनीति की दलदल।किस और जाना है , दिल और दिमाग से निर्णय ले।
लेखकः- ललित मोहन शर्मा
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