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मुश्किलों में है वतन
आदरणीय प्रधान मंत्री जी,
भारत सरकार,
आपने देश को नारा दिया था सबका साथ सबका विकास। अर्थ और लक्ष्य स्पष्ट था कि जाति और धर्म से ऊपर उठकर सरकार सबके के विकास के लिये कार्य करेगी और किया भी। सरकार ने विकास की ऐसी गति पकड़ी कि दुनिया हिल गयी। दुनिया को अपनी मुट्ठी में कर लेने की मंशा रखनेवाले लोग, भारत को इस्लामिक राष्ट्र बनने की प्रतीक्षा और भारत के टुकड़े टुकड़े चाहने वाले लोग तिलमिला उठे। टूट पड़े राष्ट्र निर्माण का सपना संजोय एक संत पर। मोदी जी आप परशु राम नही है कि बार बार पापियों का विनाश कर दे। आप अर्जुन भी नही है कि अधर्म का नाश कर दे। आपके पास सुदर्शसन नही है जो आपको अजेय बना दे और तो और जिनके लिए आपने संकल्प लिया वो घर में बैठकर गंगाजमनी तहजीब की किताब पढ़ रहे हैं। और क्या लिखूं कुछ भी तो छिपा नही रह गया है। छिपा रह गया है तो वो दर्द जो आपकी तरह करोड़ो भारतवासियों के मन को खाये जा रहा है।
बंगाल में जो हुआ और जो हो रहा है वो अप्रत्याशित नही है। इसकी पूरी पूरी संभावनाएं थी लेकिन एक कोने में आशा की एक किरण थी कि शायद बंगाल की सांस्कृतिक जनता इस षड्यंत्र को नकार देगी। नकारने का भरसक प्रयत्न भी हुआ लेकिन संगठित हिंसात्मक और तुष्टिकरण की राजनीति हॉबी रही। नतीजा, देर नही लगी और मंसूबे स्पष्ट दिखाई देने लगे। याद कीजिये वो शाहीन बाग के भाषण, वो देशद्रोहियों की योजना, बोतल नैक को बंदकर भारत के टुकड़े करने की योजना। आप शायद भूल गए हो लेकिन षड्यंत्रकारी चुप नही बैठे। पहले शाहीन बाघ, फिर किसान आंदोलन, खालिस्तान का लालकिले पर झंडा भले ही बार बार षड्यंत्रकारी विफल रहे हो लेकिन इनके तार आपस मे जुड़े जरूर है । देश मे महामारी के संकट में ओछी राजनीति और भ्रम फैलाने के युद्ध स्तरीय प्रयास सब इसी का हिस्सा है।और अब बंगाल में इनके मंसूबे शीर्ष पर है। किसी भी वक्त अलगाव की रणभेरी बज सकती है।
कश्मीर औऱ पंजाब के जो कीड़े देश के तापमान को देखकर सुप्तावस्था में जा रहे थे फिर से उठ खड़े होने का प्रयास करेंगे। जहां जहां भी देश द्रोह और अलगाव वाद की बीमारी दम तोड़ रही थी, उसमें अचानक बढ़ोत्तरी की संभावना बढ़ गयी है। आप माने न माने लेकिन विश्व मे हमारे दुश्मन ताकतवर हो रहे है। चीन ने खिसियाकर अपना आखिरी दांव चल दिया है। उभरती आर्थिक स्थिति की उसने रीड़ की हड्डी ही तोड़ दी है। मरता क्या नही करता, पाकिस्तान भी अपने मरने से पहले हमारे मरने की चिंता करता है।आप नही मानते की ये सभी घटनाएं कही न कही भारत को कमजोर करने के षड्यंत्र की हिस्सा है? सबके तार किसी न किसी देशद्रोही के माध्यम से जुड़े हुए है। लगता है शतरंज के मोहरे बिछ चुके हैं। देश को विभिन्न मोर्चो पर घेरकर मारने की योजना तैयार है। देश को ग्रह युद्ध में झोंककर फिर खून की नदियों से बटवारे की सीमाएं तय करने की तैयारी नजर आ रही है। इसका आगाज़ बंगाल से दिखाई देने लगा है। अब वक्त कूटनीति और राजनीति करने का नही है। धर्म की रक्षा में दंड का विधान है। ब्राह्मण, साधुसंतों को भी धर्म और मानवता की रक्षा के लिए दंड उठाने की अनुमति है। इससे पहले कि देश के दुश्मन आपको आश्चर्य चकित कर अपने लक्ष्य को अंजाम दे और आपको बचाव की भूमिका तक सीमित कर दे ,प्रथम आक्रमण ही उचित और अवश्यम्भावी हो गया है। स्थिति राष्ट्रीय आपदा से कम नही है। इसलिये बंगाल जैसे राज्य में तुरंत राष्ट्रपति शासन लगाते हुए राजनीतिक नही बल्कि प्रशासनिक अनुभव के व्यक्ति विशेष रूप से सेना/ पुलिस के भूतपूर्व अधिकारी को गवर्नर बनाया जाना चाहिए। देश के चुनिंदा राष्ट्र भक्त अधिकारियों को देश की आंतरिक सुरक्षा में तैनात कर देश द्रोहियों को जेल में डाल देना चाहिए। मीडिया का एक वर्ग भी इस षड्यंत्र का हिस्सा है जो धन और शक्ति के लालच में आग में घी का काम कर रहा है। कुकुरमुत्ता की तरह अनेको चैनल भी इस व्यापार में हाथ धो रहे है। इन सब पर भी लगाम आवश्यक है। देश की असहाय जनता देख रही है। इससे पहले कि हमारी धरती खून से लाल होकर अपना इतिहास दोहराए, आप से अपेक्षा है कि खतरे में पड़ी हमारी मानवता की रक्षा के लिये कुछ करें। वरना कुछ मर रहे है और बाकी मार दिए जाएंगे और रह जाएगा सिर्फ रोता इतिहास।
लेखकः- ललित मोहन शर्मा
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