हरियाणा

मैट्रिक पास धर्मवीर बने साइंटिस्ट, कभी दिल्‍ली में चलाते थे रिक्‍शा

यमुनानगर। हरियाणा के यमुनानगर के धर्मवीर कंबोज अपने आप में एक मिसाल हैं। उन्‍होंने मेहनत, जज्‍बे और काबिलियत से उन्‍नति के उस शिखर को छुआ कि इस पर सहज विश्‍वास नहीं होता। मैट्रिेक पास धर्मवीर कंबोज कभी दिल्ली के खारी-बावली में रिक्शा चलाते थे। इस दौरान जड़ी बूटियों की मंडी में आना जाना रहता था। बचपन में मां को भी जड़ी-बूटियां उगाते देखा था और इसके प्र‍ति बचपन से ललक थी। दिल्‍ली में इस कारोबार को देखकर बचपन की सोई ललक जाग गई और फिर गांव आकर किसानी शुरू कर दी। इसके बाद खेती को आधुनिक बनाने के लिए कृषि यंत्र बनाने लगे और बन गए फार्मर साइंटिस्ट। धर्मवीर ने बचपन में मां सावित्री देवी को जड़ी-बूटियों को उगाते हुए देखा था और इनके प्र‍ति मन में चाह थी। बडे हुए ताे गरीबी ने इस ओर सोचने का मौका नहीं दिया। वह 1987 में दिल्‍ली रोजी-रोटी के लिए आ गए और वहां खारी बावली में रिक्‍श्‍ाा चलाने लगे। इसी दौरान जडी-बूटियों की मंडी में जाने लगे तो मां की जड़ी-बूटी की खेती याद आई। यह चाह प्रबल हुई तो वर्ष 1993 में वह अपने गांव लौट आए और उत्तराखंड के हल्द्वानी से 80 अलग-अलग जड़ी बूटियों के बीज लेकर आए। इनमें से कुछ ही कामयाब हुई। खुद की जमीन केवल दो एकड़ है, लेकिन ठेके पर जमीन लेकर 1996 में एलोवेरा व स्टीविया की खेती करनी शुरू कर दी। इसके बाद तो उनकी जिंदगी बदल गई और ऐसी उपलब्धियां हा‍सिल कीं कि उनको दो बार राष्ट्रपति ने सम्मानित किया। वर्ष 2012 में तत्कालीन केंद्रीय कृषि मंत्री शरद पवार ने उनको फार्मर साइंटिस्ट के अवार्ड से सम्मानित कर चुके हैं। उनके द्वारा तैयार की गई मल्टी पपर्ज फूड प्रोसेसिंग मशीन पर विदेश भी कायल हैं। कीनिया व जिम्बाबे में कई मशीनें जा चुकी है।

 ये उपलब्धियां की हासिल-  कृषि जगत में उत्कृष्ट कार्य करने पर वर्ष 2009 में तत्कालीन राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल, 2010 में तत्कालीन केंद्रीय कृषि मंत्री शरद पंवार ने फार्मर साइंटिस्ट का अवार्ड दिया। वर्ष 2013 में फूड प्रोसेसिंग मशीन मनाने पर फर्स्‍ट नेशनल अवार्ड वर्ष-2014 में 1 जुलाई से 30 जुलाई तक राष्ट्रपति के मेहमान बनकर रहे। मल्टी पपर्स मशीन बनाने पर वर्ष-2015 में जिम्‍बाब्‍वे के राष्ट्रपति रॉर्बट मुगांबे ने उनको सम्मानित किया। बता दें कि किसान धर्मवीर छठी कक्षा में थे जब इलेक्ट्रिक हीटर व बोरिंग करने की मशीन का मॉडल तैयार कर दिया था। आठवीं कक्षा एमरजेंसी लाइट बनाई।मां से मिली प्रेरण- धर्मवीर बताते हैं कि मां सावित्री देवी से उनको जड़ी बूटियों की खेती करने की प्रेरणा मिली। वह खेत के कुछ हिस्से में जड़ी बूटियां उगाती थीं। उन्होंने बताया कि वर्ष 1996 में उन्होंने जड़ी बूटियों की खेती शुरू की थी। एलोवेरा और अन्य प्रकार की जड़ी बूटियों की खेती व इनसे निर्मित दर्जनों उत्पादों ने इस संघर्षशील किसान को फर्स से अर्श पर ला खड़ा कर दिया।

एलोवेरा से एलोवेरा जूस, एलोवेरा जैल व शैंपू तैयार करने के लिए उन्होंने गांव में मशीन स्थापित की हुई है। मल्टीपपर्स मशीन बनाने का आइडिया भी उनका स्वयं का ही होता है। इंजीनियरों के सहयोग से वह इन मशीनों काे बनाते हैं। स्वयं उत्पाद तैयार करने के लिए तो वह इन मशीनों का प्रयोग करते ही हैं साथ ही इसे बेचते भी हैं।  इन मशीनों की विदेशी भी कायल हैं।

मोबाइल सिंचाई मशीन भी बनाई- धर्मवीर ने मोबाइल सिंचाई मशीन बनाई। उनके द्वारा निर्मित इस मशीन की तत्‍कालीन राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल ने सरहाना की। मशीन को राष्ट्रपति भवन में प्रदर्शित किया। यहां राष्ट्रपति ने परिवार के साथ उनके द्वारा बनाई गईं मशीनें देखीं और इनकी सराहना की। उनके द्वारा बनाई गई हाथ से खींचने वाले सिंचाई सिस्टम तथा ट्रैक्टर से चलाई जाने वाली सिंचाई सिस्टम की प्रशंसा करते हुए इसका नामकरण रेन टैंकर दिया। सिंचाई सिस्टम में छह हजार लीटर पानी की क्षमता वाला टैंकर लगाया गया है। इसे ट्रैक्टर की सहायता से खींच कर खेतों में ले जाकर फ सलों की सिंचाई की जा सकती है। टैंकर के बिल्कुल पीछे चैसी पर एक पांच हार्स पॉवर का ईंजन लगाया गया है। इसकी सहायता से लगभग 150 फीट के दायरे में बरसात की जा सकती है।

अब बनाई झाड़ू मशीन- अब, धर्मवीर कांबोज ने सोलर बैटरी से चलने वाली झाड़ू मशीन तैयार की है, हालांकि उन्होंने 25 वर्ष पहले मशीन का डेमो मॉडल तैयार किया था, लेकिन गरीबी की वजह से मशीन को पूरा नहीं कर पाए थे। धर्मबीर ने बताया कि इस मशीन का निर्माण करने में घरेलू सामान का प्रयोग किया गया है।

उन्होंने बताया कि झाडू वाली यह मशीन सड़क पर पड़े पत्ते व अन्य कुड़ा-कर्कट उठाकर पानी के साथ सफाई करेगी। मशीन को बहुत ही आसानी से चला सकेंगे। भविष्य में इस मशीन से गोबर उठाने के कार्य में भी प्रयोग किया जाएगा। ई रिक्शा वाली झाडू की मशीन से सात फीट चौड़ाई में साफ-सफाई का काम किया जा सकता है। इस मशीन से कुछ ही समय में काफी दूरी की सफाई की जा सकती है और यह मशीन रास्ते में पड़े कूड़े-कर्कट को निर्धारित स्थान पर डालती है। मशीन को बनाने पर एक लाख रुपये खर्च आया। धर्मवीर ने बताया कि सबसे पहले अकरकरा नामक जड़ी बूटी उगाई। उसके बाद अश्वगंधा, सफेद मूसली, ब्रह्मी, बच्च, एलोवेरा, कालमेघ, गिलोए, तुलसी व आंवला की खेती शुरू कर दी।

2009 में मिली आविष्कारक की उपाधि- जड़ी-बूटियों की खेती करते हुए उनके मन में मल्टीपपर्ज फूड प्रोसेसिंग मशीन बनाने का ख्याल आया। ताकि अलग-अलग किस्म की जड़ी बूटियों से उत्पाद तैयार कर सकें। वर्ष 2009 में नेशनल इनोवेशन फाउंडेशन अहमदाबाद के चेयरमैन डॉ. मशेलकर ने स्टेट इनोवेशन अवार्ड से नवाजा।

 

 

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