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मैंने पहले जो बयान दिया वो सच है और उस पर मैं कायम हूं: सीईओ एरिक ट्रैपियर

फ्रांस । राफेल लड़ाकू विमान सौदे का मामला गरमाता जा रहा है। इस मुद्दे पर जमकर राजनीति हो रही है। सौदे में घोटाले के दावे किए जा रहे हैं। इस बीच राफेल सौदे पर कांग्रेस अध्‍यक्ष राहुल गांधी के भ्रष्‍टाचार के आरोप से जुड़े सवाल पर दसॉ एविएशन के सीईओ एरिक ट्रैपियर ने कहा है, ‘मैं झूठ नहीं बोलता। मैंने पहले जो बयान दिया वो सच है और उस पर मैं कायम हूं। मेरी झूठ बोलने की छवि नहीं है। सीईओ के रूप में मेरी स्थिति में, आप झूठ नहीं बोल सकते हैं। एनडीए सरकार पर राफेल सौदे को लेकर विपक्षियों ने आरोप लगाया है कि हर विमान को करीब 1,670 करोड़ रुपये में खरीद रही है, जबकि यूपीए सरकार जब 126 राफेल विमानों की खरीद के लिए बातचीत कर रही थी तो उसने इसे 526 करोड़ रुपये में अंतिम रूप दिया था।

भारत में राफेल सौदे पर हो रही राजनीति पर तंज कसते हुए कहा, ‘देखिए, मैं जानता हूं कि इस रक्षा सौदे को लेकर कुछ विवाद हो रहे हैं और मैं यह भी जानता हूं कि यह वैसी घरेलू राजनैतिक लड़ाई जैसा है, जो चुनाव के आसपास बहुत-से देशों में होता रहता है। लेकिन मेरे लिए जो अहम है, वो सच है और सच यह है कि यह बिल्कुल साफ-सुथरा सौदा है और भारतीय वायुसेना इस सौदे से खुश है। सौदे के अनुसार, भारतीय वायुसेना को राफेल की पहली डिलीवरी अगले साल सितंबर में की जानी है। काम बिल्कुल वक्त पर चल रहा है। ऑफसेट पूरा करने के लिए हमारे पास सात साल का समय है। पहले तीन सालों में हम यह बताने के लिए बाध्य नहीं हैं कि हम किसके साथ काम कर रहे हैं। 30 कंपनियों के साथ समझौता किया जा चुका है, जो सौदे के मुताबिक पूरे ऑफसेट का चाली फीसद होगा। रिलायंस इस 40 में से 10 फीसद का साझेदार है। एरिक ट्रैपियर ने कहा कि दासौ ने ऑफसेट्स के लिए 30 कंपनियों के साथ करार कर लिया है। उन्होंने इन आरोपों को खारिज किया कि भारतीय पक्ष ने उन पर ऑफसेट वर्क रिलायंस को देने के लिए कहा था। उन्‍होंने कहा, ‘हम रिलायंस में कोई रकम नहीं लगा रहे हैं, रकम संयुक्त उपक्रम (JV यानी दासौ-रिलायंस) में जा रहा है। जहां तक सौदे के औद्योगिक हिस्से का सवाल है, दासौ के इंजीनियर और कामगार ही आगे रहते हैं। अम्बानी को हमने खुद चुना था। हमारे पास रिलायंस के अलावा भी 30 पार्टनर पहले से हैं। भारतीय वायुसेना सौदे का समर्थन कर रही है, क्योंकि उन्हें अपनी रक्षा प्रणाली को मज़बूत बनाए रखने के लिए लड़ाकू विमानों की ज़रूरत है।’

उन्‍होंने कहा कि हमें कांग्रेस के साथ काम करने का लम्बा अनुभव है। भारत में हमारा पहला सौदा 1953 में हुआ था, (पंडित जवाहरलाल) नेहरू के समय में, और बाद में अन्य प्रधानमंत्रियों के काल में भी हम किसी पार्टी के लिए काम नहीं कर रहे हैं। हम भारत सरकार तथा भारतीय वायुसेना को स्ट्रैटेजिक उत्पाद सप्लाई करते हैं, और यही सबसे अहम है।

उन्‍होंने कहा, ‘जब हमने पिछले साल संयुक्त उपक्रम (जेवी) बनाया था, तो यह फैसला 2012 में हुए समझौते का हिस्सा था। लेकिन हमने सौदे पर दस्तखत हो जाने का इंतज़ार किया। हमें इस कंपनी में मिलकर 50:50 के अनुपात में लगभग 800 करोड़ निवेश करने थे। जेवी में 49 फीसदी शेयर दासौ के हैं, और 51 फीसदी शेयर रिलायंस के हैं। फिलहाल हैंगर में काम शुरू करने तथा कर्मचारियों और कामगारों को तनख्वाह देने के लिए हम 40 करोड़ निवेश कर चुके हैं। लेकिन इसे 800 करोड़ तक बढ़ाया जाएगा। इसका अर्थ यह हुआ कि अगले पांच साल में दासौ 400 करोड़ निवेश करेगी।’विमानों की संख्‍या और कीमत पर चल रहे विवाद पर उन्‍होंने कहा, ‘देखिए, 36 विमानों की कीमत बिल्कुल उतनी ही है, जितनी 18 तैयार विमानों की तय की गई थी। 36 दरअसल 18 का दोगुना होता है, सो, जहां तक मेरी बात है, कीमत भी दोगुनी होनी चाहिए थी। लेकिन चूंकि यह सरकार से सरकार के बीच की बातचीत थी, इसलिए कीमतें उन्होंने तय कीं, और मुझे भी कीमत को नौ फीसदी कम करना पड़ा।’

विपक्षी लगा रहे ये आरोप
एनडीए सरकार पर राफेल सौदे को लेकर विपक्षियों ने आरोप लगाया है कि हर विमान को करीब 1,670 करोड़ रुपये में खरीद रही है, जबकि यूपीए सरकार जब 126 राफेल विमानों की खरीद के लिए बातचीत कर रही थी तो उसने इसे 526 करोड़ रुपये में अंतिम रूप दिया था। सुप्रीम कोर्ट में दो वकीलों एमएल शर्मा और विनीत ढांडा के अलावा एक गैर सरकारी संस्था ने जनहित याचिकाएं दाखिल कर सौदे पर सवाल उठाए हैं। सुप्रीम कोर्ट ने गत 31 अक्टूबर को सरकार को सील बंद लिफाफे में राफेल की कीमत और उससे मिले फायदे का ब्योरा देने का निर्देश दिया था। साथ ही कहा था कि सौदे की निर्णय प्रक्रिया व इंडियन आफसेट पार्टनर चुनने की जितनी प्रक्रिया सार्वजनिक की जा सकती हो उसका ब्योरा याचिकाकर्ताओं को दे। सरकार ने आदेश का अनुपालन करते हुए ब्योरा दे दिया है।

राफेल में रक्षा खरीद सौदे की तय प्रक्रिया का पालन
सरकार ने सौदे की निर्णय प्रक्रिया का जो ब्योरा पक्षकारों को दिया है जिसमें कहा गया है कि राफेल में रक्षा खरीद सौदे की तय प्रक्रिया का पालन किया गया है। 36 राफेल विमानों को खरीदने का सौदा करने से पहले डिफेंस एक्यूजिशन काउंसिल (डीएसी) की मंजूरी ली गई थी। इतना ही नहीं करार से पहले फ्रांस के साथ सौदेबाजी के लिए इंडियन नेगोसिएशन टीम (आइएनटी) गठित की गई थी, जिसने करीब एक साल तक सौदे की बातचीत की और खरीद सौदे पर हस्ताक्षर से पहले कैबिनेट कमेटी आन सिक्योरिटी (सीसीए) व काम्पीटेंट फाइनेंशियल अथॉरिटी (सीएफए) की मंजूरी ली गई थी। सुप्रीम कोर्ट राफेल सौदे में गड़बडि़यों का आरोप लगाने वाली याचिकाओं पर 14 नवंबर को सुनवाई करेगा।

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