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मणिपुर हमारे देश का एक अभिन्‍न अंग है :- शक्ति सिंह गोहिल

ए0आई0सी0सी0 दिल्ली। सांसद शक्ति सिंह गोहिल ने कहा कि जो घटना मणिपुर में घटी, मणिपुर हमारे देश का एक अभिन्‍न अंग है, हमारे परिवार के लोग हैं वहां। किसी पत्‍थर दिल आदमी का भी दिल रोने लगे, उस तरह की घटनाएं और दुनिया भर में इस बात को लेकर, जिसके दिल में थोड़ी सी इंसानियत है, वो खुद बोल उठा कि ये गलत हो रहा है। दुनिया भर की पार्लियामेंट में भी कहीं न कहीं इसकी गूंज उठी। आपने देखा होगा ब्रिटेन की पार्लियामेंट भी इस बात की चर्चा कर रही है।

      हमने पहले ही दिन मांग की राज्‍यसभा में, लोकसभा के बारे में हमारे साथी गोगोई जी आपसे बात करेंगे। राज्‍यसभा में हमने पहले दिन नियम 267 के तहत नोटिस दिया। ये जो आज गृह मंत्री भी, मुझे तो बड़ा दु:ख है, क्‍योंकि मैं गुजरात से आता हूं, उस पद पर सरदार वल्‍लभ भाई पटेल बैठा करते थे, गृह मंत्री बनकर। जहां लौहपुरुष थे, सच की आवाज थी, आज उसी पद पर बैठे हुए गृह मंत्री जी एक झूठी बात कर रहे हैं कि सदन चर्चा के लिए सरकार तैयार है। क्‍या आप इस देश के लोगों को गुमराह करने के लिए इतने नीचे तक गिरोगे। 267 के तहत हम चर्चा क्‍यों मांगते हैं – हमारे कानून में राज्‍यसभा के लिए प्रावधान किया गया है कि जब कोई ऐसी बड़ी घटना घट जाए कि जिसके लिए सारे नियम, सारे कामों को साइड में रख देना चाहिए, सारा काम रोक लेना चाहिए और पूर्णत:, पूरी तरह से राज्यसभा के अंदर उस इशू की चर्चा होनी चाहिए, ये है रूल 267।

      मैं आपके जरिए पूरे देशवासियों को पूछना चाहता हूं कि क्‍या ये विरोधी दल या लाइक माइंडेड पार्टीज की मांग गलत है? मणिपुर से ज्‍यादा सीरियस चीज क्‍या कोई हो सकती है? आप क्‍यों मना कर रहे हो 267 के तहत? सरकार ने खारिज कर दी है, हमारी बात नहीं मान रही। हम चर्चा के लिए जब कहें, कोई बात बीच में नहीं रहेगी, दलगत राजनीति से ऊपर उठकर, इंसानियत के नाते, वहां जो हैवानियत हुई है, उनकी बात इंसानियत के नाते हम करना चाहते हैं। कुछ सुझाव देना चाहते हैं, कुछ गलतियां हुई हैं, उसको दिखाना चाहते हैं और मणिपुर में मरहम लगाने का काम होगा, अगर 267 के तहत पूर्णत: चर्चा होगी।

     अब बीजेपी क्‍या कहती है – नो, 267 नहीं, क्‍योंकि यहां पूरी चर्चा भी होगी, जरूरत पड़ने पर हम वोटिंग भी मांग सकते हैं कि हमारा रिज़ॉल्यूशन सही है या नहीं, वोटिंग कर लो। अब ये कहते हैं नो। ये कौन सी चर्चा की बात करते हैं – शॉर्ट ड्यूरेशन डिस्‍कशन, छोटी चर्चा। जब कोई बड़ा हादसा नहीं होता है तो 3 मेंबर, 1 मेंबर लिखता है, 2 सपोर्ट करते हैं और हमारा कानून कहता है कि इसकी छोटी सी चर्चा हो जाती है, क्‍योंकि मामला गंभीर नहीं है। अगर सीरियस बात है 267, अगर छोटी-मोटी बात है 167, छोटी चर्चा और छोटी चर्चा में क्‍या होगा – ये बीजेपी से नोटिस दिलवाएंगे, छोटी चर्चा के लिए नोटिस बीजेपी के एमपी देंगे और फिर उनका बयान और बाद में मंत्री जी का हवाबाजी वाला भाषण और फिर कह देंगे कि चलो मणिपुर पर चर्चा हो गई… फूटो।

     ये बात हम कैसे मानेंगे? हमें हमारे मणिपुर के भाइयों-बहनों के दु:ख-दर्द की बात करनी है तो 267 चाहिए और 267 इसलिए चाहिए कि वहां पूर्णत: चर्चा, जरूरत पड़ने पर वोटिंग हो सकती है, ये हमारी मांग है।

      अब और भी हम कॉम्‍प्रोमाइज़ करें, हमने कहा – क्‍या ये आप बात रखिए अपनी पूर्णत: चर्चा के लिए, उसके लिए वो तैयार नहीं। पार्लियामेंट्री प्रोसिजर एंड प्रैक्टिस साफ़ लफ्जों में ये कहती है कि जब पार्लियामेंट शुरू हो तो चाहे प्रधानमंत्री जी हो या कोई भी मंत्री हो, पार्लियामेंट के फ्लोर पर उन्‍हें अपना स्‍टेटमेंट रखना चाहिए, न कि पार्लियामेंट के बाहर, ये पार्लियामेंट्री प्रोसिजर एंड प्रैक्टिस कहती है।

      मोदी जी क्‍या करते हैं? मणिपुर जल रहा है, गृह मंत्री जी और प्रधानमंत्री जी कर्नाटका के चुनाव में लगे रहते हैं, उनके पास वक्‍त नहीं है। एक छोटी चिंगारी शुरू होती है, अगर सही वक्‍त पर उसका इलाज किया जाए, तो ये लंबा हादसा नहीं होता। पर जब आप उसकी अनदेखी करते हो, जब आप उस पर राजनीति करते हो, तो हालात कितने बिगड़ते हैं, वो मणिपुर है। बोले नहीं, काफी दिन हो गए हैं पार्लियामेंट तो नहीं, पार्लियामेंट के बाहर भी नहीं बोले, जब सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि Matter is very serious गवर्नमेंट एक्‍ट करे, वर्ना हमें एक्‍ट करना पड़ेगा। जब सुप्रीम कोर्ट ये फटकार लगाती है, तो देश के प्रधानमंत्री सदन के बाहर, पार्लियामेंट के बाहर कुछ सेकंड के लिए कहते हैं कि मुझे बहुत दर्द हुआ है, मेरे दिल में बड़ा क्रोध है, वो दर्द और क्रोध कब उठा – जब सुप्रीम कोर्ट ने फटकार लगाई।

     चाणक्‍य ने सही कहा है कि किसी शासक को ये अधिकार नहीं है कि वो पब्लिकली कहे कि मुझे दर्द हुआ या मुझे क्रोध आया। उनकी जिम्‍मेदारी है कि दर्द हो या क्रोध उठे, ऐसी घटना न घटे, वो देखने का काम शासक का है। वो अपना धर्म, जो वाजपेयी जी ने भी कहा था कि मोदी जी अपना राजधर्म निभाओ, वो राजधर्म उन्‍होंने नहीं निभाया।

      पार्लियामेंट में कहने की बजाय, पार्लियामेंट के बाहर बात की। आज राज्‍यसभा में एक और घटना घटी। काफी लोग पार्लियामेंट को कवर करते हैं, लाइव भी जाती है पार्लियामेंट। आपने देखा होगा कि चेयर के सामने जो भी हैं, उनके लिए एक सा व्‍यवहार होता है। अरुण जेटली जी, सुषमा स्‍वराज जी, विरोधी दल के नेता थे, कांग्रेस पावर में थी, दिनों के दिनों या पूरा सेशन, 1 मिनट पार्लियामेंट नहीं चलने दी और तब वो कहते थे कि पार्लियामेंट नहीं चलने देना भी एक पार्लियामेंट्री टैक्टिक है। ये विरोधी दल के पास एक ही हथियार होता है कि हाऊस नहीं चलने दें और वो ये भी कहते हैं कि हाऊस चलाने की जिम्‍मेदारी ‘पार्टी इन पावर’ की है और ये उनको संघर्ष नहीं, संवाद करके हाऊस चलाना चाहिए, ये भाजपा के नेता जब विरोधी दल में थे, तब कहते थे।

      आज क्‍या हुआ? हम कहते हैं कि मणिपुर की चर्चा चाहिए 267 के तहत। आज तक की परंपरा है कि 267 पर डिसीजन पहले सुनाया जाता है, क्‍योंकि अगर उसको अलाउ करते हो तो दूसरी सारी चीजें रोकनी पड़ती है। आज जब चेयर ने 167 के नोटिसेस पढ़ना शुरू किया, मेंबर के साथ पॉलिटिकल पार्टी का नाम लेना शुरू किया और कांग्रेस पार्टी का नाम नहीं बोले, तो सारे INDIA के दल और कुछ ऐसी भी दल, जो INDIA में नहीं है, हमारी पार्टी के अलायंस में नहीं भी हैं, वो भी हमारे साथ जुड़े कि नहीं ये ग़लत हो रहा है। पूरे हाऊस में आधे से ज्‍यादा मेंबर उत्तेजित थे कि क्‍या हो रहा है… उस वक्‍त, जब चेयर ने अपने कानों पर माइक्रोफोन लगा लिए थे, तो हमारे मेंबर एक INDIA के… संजय सिंह… वो गए वेल में कि साहब 267 पर पहले न्‍याय तो करो।

      आज तक कभी ऐसा नहीं हुआ है कि सिर्फ़ गए बात करने, न उन्‍होंने कोई कागज़ फाड़ा है, न कहीं टेबल पर चढ़े हैं, न कोई अनपार्लियामेंट्री वर्ड बोले हैं… उन्हें पूरे सेशन के लिए निष्कासित किया जाता है। ये लोकतंत्र की हत्‍या है, पार्लियामेंट्री डेमोक्रेसी में ऐसा कभी नहीं हुआ है।

      तो इन्‍हें हम, सरकार को कहना चाहते हैं कि आखिरी जनता जनार्दन है, सब देख रही है। चर्चा दो, 267 के तहत दो, ये हमारी मांग है और इस मांग को लेकर, अगर उनके पास कोई और बात है कि पूर्णत: चर्चा हो, तो प्रधानमंत्री जी आएं, बयान दें अपना, उसके ऊपर हम चर्चा करें, वो हमारी मांग है। जो ये सरकार कह रही है, कहीं और लोगों के साथ जोड़ रही है।

      मैं ये कहना चाहता हूं कि अगर कहीं पर भी अपराध होता है, ग़लत है। अपराधी कौन है? शासक किस राज्‍य का है? किस जाति, किस मज़हब से है, कोई लेना-देना नहीं, लेकिन कहीं पर कोई घटना घटी है, उसको मणिपुर के साथ जोड़ना, वो मणिपुर का अपमान है, हमारे देश का अपमान है और जिस राज्‍य को आप जोड़ रहे हो, मणिपुर के जो हादसे हुए हैं, उसके साथ आप अगर, क्‍योंकि राजस्‍थान और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की सरकार है या वेस्‍ट बंगाल में उनको पसंद नहीं है, ऐसी सरकार है तो उनके साथ जोड़ना, ये उस प्रांत के हर नागरिक का भी अपमान है और मणिपुर की उन माताओं-बहनों के दर्द के ऊपर मिर्ची लगाने जैसा ये काम है, जिसका मैं कड़े लफ्जों में विरोध करता हूं। मैं अनुरोध करता हूं अपने साथी गोगोई जी को, वो लोकसभा में जो बात हुई है, उसको आपके सामने रखेंगे और बाद में आपके कोई सवाल होंगे, तो उनका स्‍वागत है।

     एक प्रश्न पर कि आपकी मांगें क्या हैं?  शक्ति सिंह गोहिल ने कहा कि हमारी मांग यही है कि इसके तहत चर्चा के लिए तैयार होना चाहिए। मणिपुर की घटना को ऐसी छोटी-मोटी घटना हम नहीं कह सकते हैं। हम हमारी मांग रखेंगे, अभी दिन बाकी हैं। Some wisdom will prevail. कुछ न कुछ समझ आएगा और करेंगे, यही हम उम्मीद करते हैं।

     पार्लियामेंट में मणिपुर मुद्दे पर चर्चा ना होने के संदर्भ में पूछे एक अन्य प्रश्न के उत्तर में  गोहिल ने कहा कि पहले जब मैंने कहा कि भारतीय जनता पार्टी अपोजीशन में थी, तब वो भी वही कहती थी कि सरकार की जिम्मेदार होती है सदन चलाने की, ना कि अपोजीशन की। संघर्ष नहीं संवाद करें, अपोजीशन की बात मानें… वो बार-बार बीजेपी का स्टैंड रहा था। हम सभी अपोजीशन पार्टी पार्लियामेंट के अंदर बात करना चाहते हैं। हम चाहते हैं कि मणिपुर पर ठीक से बहस हो। वहाँ के लोगों के लिए ये विश्वास बढ़े, मरहम लगाएं। वो कब हो सकता है… जब 267 के तहत बहस हो। पहला तो यह है कि आप किस नियम के तहत चर्चा करते हैं। अगर हम बीजेपी की बात मान लें, इसका मतलब है कि मणिपुर की घटना गंभीर नहीं है, छोटी-मोटी बात है, शॉर्ट ड्यूरेशन डिस्कशन हो। पहले ही हम इसका मणिपुर के लोगों को लाइटली करके इनका अपमान कर रहे हैं, जो हम नहीं करना चाहते हैं। The moment government will agree कि 267 के तहत  चर्चा करो… पहला मैसेज ये जाएगा कि matter is very serious…ये संगीन मामला है और सारा काम रोक कर पहले इस पर चर्चा हो रही है, इसका मतलब पूरे देश की संसद मणिपुर के साथ खड़ी है। वो एक मैसेज भी ज़रूरी है। हमारी ज़िद ज़रूरी नहीं है। चर्चा पूर्णत: हो और एक मैसेज जाए। अगर दुनिया की संसद इसके ऊपर चर्चा करती है, फिर तो हमें समझना चाहिए। तो ये हमारी मांग है। उम्मीद करते हैं कि सरकार इस मांग को स्वीकार करेगी।

      एक अन्य प्रश्न के उत्तर में गोहिल ने कहा कि हम मिले, जब रवैया ठीक नहीं होता है… आज जिस तरह से हाउस में घटना घटी, 267 के तहत शॉर्ट नोटिस को पहले बताया गया। बीजेपी की पार्टी का नाम लिया गया, कांग्रेस का नहीं और संजय सिंह का सस्पेंशन उसी तरह से जिसकी कोई… आप एक ले-मैन को पूछ लो। कोई भी पार्लियामेंट का काम चलता है, लाइव होता है सबके लिए। सबसे लिए लाइव होता है। अगर किसी एमपी ने, जिस तरह से रजनी पाटिल जी को 6 महीने से बाहर रखा है हाउस से, क्या गुनाह है उनका? चलो गुनाह 100 प्रतिशत एलिगेशन सच मानो तो भी क्या है कि आपने हाउस के अंदर का वीडियो किया था। ना टेंपर किया है, ना ग़लत किया है, हाउस लाइव होना चाहिए, ये कानून है। इससे पहले बीजेपी के काफी सांसदों ने वीडियो ऐसे किए हैं हाउस के अंदर से। इनको 6 महीने से हाउस से बाहर रखा। आज संजय सिंह को जिस तरह से निकाला गया… तो सारे एमपी सभी पार्टी के हमारे मिलकर गए। हमारा जो अलायंस बना है INDIA… उसमें केशव राव जी नहीं थे, वो भी हमारे साथ आए कि नहीं ये ग़लत हो रहा है और जब हम बैठे तो जिस तरह से… मैंने पीयूष गोयल जी को कहा कि You are leader of the House, it is your duty… समाधान करो, संघर्ष नहीं… ये तुम्हारे नेता कहकर गए हैं। पर रवैया जो था, वो ठीक नहीं है… इसलिए ये हाउस नहीं चल रहा है। तो हम ऑल पार्टी मीटिंग में गए थे, अपनी बात भी रखी पर सामने से जब एक अड़ियल रवैया रहता है तो हमारे पास और कोई इलाज नहीं रहता है।

     गोहिल ने इसी संदर्भ में आगे कहा कि यही है चाल, चलन और चरित्र भारतीय जनता पार्टी का। अगर ऐसा चाल, चलन और चरित्र नहीं होता तो मणिपुर में इस हद तक हालात ख़राब नहीं होते, जिस तरह से मीडिया भी… डेमोक्रेसी में उनका भी एक रोल है… अगर उनके साथ बदतमीजी मुख्यमंत्री के ईर्द-गिर्द के लोग करते हैं, उनके सामने करते हैं तो वहाँ की आम जनता की हालत क्या होती होगी, इसी से पता चलता है।
एक अन्य प्रश्न पर कि गोहिल ने कहा कि देखिए मिजोरम में जो सरकार है, वो बीजेपी की… नेडा (NEDA- North East Democratic Alliance) की एक हिस्सेदार है और इसलिए ये नेडा अब तो इसका काम ही हो गया है कि नॉर्थ ईस्ट को डिवाइड करें। ये NEDA बन गया है ‘नॉर्थ ईस्ट डिवाइड अलायंस’। मिजोरम में विभाजन की परिस्थिति, मणिपुर में विभाजन की परिस्थिति, असम में विभाजन की परिस्थिति, मेघालय में विभाजन की परिस्थिति और नेडा का जो चीफ़ है…. जो असम का मुख्यमंत्री है, वो तो अपना काम संभाल ही पा नहीं रहे। वो ट्विटर पर हैं, वो ट्विटर पर ट्वीट करते रहते हैं लेकिन जबसे नेडा बना है, कभी असम-मिजोरम की पुलिस के बीच में फायरिंग होती है, कभी असम और मेघालय के बॉर्डर में कंफ़्लिक्ट होता है… मणिपुर में अभी समाज के दो गुटों के बीच में ऐसी हिंसात्मक वहाँ पर परिस्थिति बन गई है… मिजोरम में लोगों को पलायन करना पड़ रहा है… तो ये नेडा को भंग कर देना चाहिए और नेडा की जो असलियत है, जो भाजपा को वास्तविक उद्देश्य है कि उत्तर-पूर्वांचल को कैसे विभाजित करके खुद का राजनीतिक फायदा हो लेकिन देश का नुकसान हो, उत्तर-पूर्वांचल का नुकसान हो और ये जो बॉर्डर के राज्य हैं, जब यहाँ पर अस्थिरता पैदा होगी तो किसको फायदा होगा, कौन सी विदेशी ताकत है जिसको फायदा होगा… सबको पता है लेकिन उसके बावजूद भी भाजपा अपने राजनीतिक लाभ को ज्यादा प्राथमिकता देती है ना कि देश की अखंडता को।

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