उत्तरप्रदेश

महाभारतकालीन सभ्यता का साक्ष्य जुटाने के लिए भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआइ) ने सिनौली में 28.6 हेक्टेयर जमीन को राष्ट्रीय महत्व का क्षेत्र घोषित करने का लिया फैसला

नई दिल्ली । महाभारतकालीन सभ्यता का साक्ष्य जुटाने के लिए भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआइ) ने एक बड़ा फैसला लेते हुए बागपत के सिनौली में 28.6 हेक्टेयर जमीन को राष्ट्रीय महत्व का क्षेत्र घोषित करने का फैसला लिया है। किसान इस जमीन पर खेती करते रहेंगे, मगर इस जमीन पर निर्माण नहीं कर सकेंगे। गहरी खोदाई के लिए एएसआइ से अनुमति लेनी होगी। एएसआइ जब भी चाहेगा किसानों की फसल के लिए पैसे का भुग़तान कर वहां खोदाई कर सकेगा। इस क्षेत्र को राष्ट्रीय महत्व का क्षेत्र घोषित करने के पीछे एएसआइ का उद्देश्य है कि दो साल से हो रही खुदाई में मिले साक्ष्यों को मजबूत आधार दिया जा सके।

महाभारत कालीन बस्ती की तलाश  यहां पर बता दें कि सिनौली में खुदाई के दौरान गत दो सालों में रथ, योद्धाओं की शव पेटिकाएं मिली हैं, वे इस ओर इशारा करती हैं कि यह शवाधान राजसी परिवार से संबंधित रहा होगा। इसे देखते हुए एएसआइ इस निष्कर्ष पर पहुंचा है कि यदि शवाधान मिला है तो इन लोगों की बस्ती भी आसपास ही रही होगी। इसी की एएसआइ खोज करना चाहता है।

जमीन के लिए अधिसूचना हुई जारी  वहीं, जहां पर खुदाई हुई है वह स्थान किसानों की निजी भूमि है। ऐसे में एएसआइ ने इस जमीन को लेकर राष्ट्रीय महत्व की जमीन घोषित करने की योजना बनाई है। जमीन के लिए एएसआइ ने प्राथमिकता अधिसूचना जारी कर दी है। जिसके बारे में जनता से सुझाव और आपत्तियां मांगी गई थीं। 6 जून को जारी की गई अधिसूचना के बारे में किसान 45 दिन तक अपनी राय व आपत्तियां मांगी गई थीं। आई हुईं आपत्तियों का अध्ययन किया जा रहा है। इसके बाद फाइनल अधिसूचना जारी की जाएगी।

जीपीआर से भी हुई थी जांच  बता दें इस क्षेत्र को राष्ट्रीय महत्व का क्षेत्र घोषित कराए जाने की योजना को इस साल सिनौली में कराए गए जीपीआर सर्वे से भी बल मिला है। इस सभ्यता की तह तक जाने के लिए गत मई में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआइ) ने ग्राउंड पेनिट्रेटिंग रडार (जीपीआर) सर्वे कराया था। सर्वे के दौरान खुदाई स्थल के आसपास के इलाके की जांच की गई थी। जीपीआर द्वारा जमीन के अंदर 2 से 3 मीटर तक दबी पुरातात्विक सामग्री के बारे में जानकारी जुटाई गई थी। इस सर्वे की जो प्राथमिक रिपोर्ट आई है उसमें इस स्थान पर बड़ी मात्रा में पुरातात्विक धरोहर होने के बारे में पता चला है। उसके बाद एएसआइ ने इस बारे में फैसला लिया है। सिनौली में दो साल से शवाधान वाले स्थल पर खुदाई हो रही थी। इस बार इससे 2 सौ मीटर दूर एक नई साइट पर खुदाई शुरू की गई तो वहां पर बसावट के प्रमाण मिले थे। जिसमें तांबे को गलाने की चार बड़ी भट्टियां मिलीं।

यहां पर मिल चुके हैं 100 के करीब नरकंकाल  इससे पहले जब 2006 में सिनौली में ही एक अन्य स्थान पर खुदाई हुई थी तो वहां भी पुरातात्विक धरोहर मिली थी, जिसमें एक सौ के करीब नरकंकाल भी मिले थे। इस साइट को लेकर दुनियाभर के पुरातत्वविदों में बड़ी उत्सुकता है। उनका मानना है कि वहां मिल रही पुरातात्विक सामग्री असाधारण हैं। इसलिए भी और अधिक महत्वपूर्ण है कि ये एक नई सभ्यता की ओर ले जा रही है। इसे 3000-4000 वर्ष पहले के पूर्व वैदिक काल से जोड़ कर देखा जा रहा है। जिसमें इस क्षेत्र को महाभारत काल से भी जुड़े होने की संभावना है। यहां से यमुना सात किलोमीटर दूर है, जबकि दूसरी ओर गंगा करीब 20 किलोमीटर दूर हैं। जिस लाक्षागृह में पांडवों को एक साजिश के तहत जला देने की कोशिश की गई थी, वह स्थान यहां से करीब 16 किलोमीटर दूर है। यह पूरा क्षेत्र उसी हस्तिनापुर के अंतर्गत आता है जो कभी कौरवों की वैभवशाली राजधानी होती थी। एएसआइ इसे एक अंजाम तक ले जाना चाहता है, ताकि किसी निष्कर्ष पर पहुंचा जा सके।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button