Uttarakhandजन संवाद
किसान समस्या – हल के लिये वार्ता है जरूरी
किसान आंदोलन को चलते छह माह हो गए है। दोनों ही पक्ष अपनी अपनी जिद पर अड़े हुए है। विपक्ष की शतरंज बिछ चुकी है। जनता महामारी से त्राहि त्राहि कर रही है। सरकार भी समझा समझा कर थक गई है। देश मे आये संकट के सामने निश्चय ही किसी आंदोलन से निपटना प्राथमिकता नही हो सकती। किसानों को भी समय की नाजुकता को समझना चाहिये। समस्या है लेकिन राष्ट्रीय संकट से अधिक नही। थोड़े दिन बाद भी समस्या पर विचार किया जा सकता था। ऐसे समय काला दिवस के आवाहन का कोई औचित्य नही है। फिर भी प्रश्न यह है कि आखिर कब तक किसी समस्या को टालकर देश विरोधी ताकतों को अपनी हरकते करने का मौका दिया जाएगा। देश हित मे दोनों पक्षो को बैठकर वार्ता करनी होगी। बड़ी से बड़ी समस्या, यहां तक कि युद्ध का हल केवल वार्ता से ही संभव होता है। सर्वप्रथम समस्याओं का सही आकलन करना होगा।
सर्वप्रथम हमे विचार करना होगा कि आजादी के बाद विभिन्न क्षेत्रों में भारत ने क्या प्रगति की है। सरकारी कर्मचारियों को मुद्रास्फीति के चलते सेंकडो गुना वेतन बढ़ाया गया। व्यापारी की आय भी उसी अनुपात में बढ़ी। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी देखे तो सोने की कीमत हज़ारों गुना बढ़ गयी किंतु उसके सापेक्ष हमारे किसानों की आय में उल्लेखनीय वृद्धि नही हुई। देश की रीढ़ होने के बॉवजूद पिछली सरकारों ने किसानो की आय बढ़ाने के संतोषजनक उपाय नही किये। अब समय की मांग है कि अगर देश को खुशहाल देखना है तो किसानों को खुशहाल बनाना होगा। आखिर वो भी तो एक व्यवसाय है वो भी सबसे अधिक मेहनत कश। इसलिये सरकार को इसी विचारधारा के साथ खुले मन से समस्याओं पर चर्चा करनी होगी।
अब कुछ मुख्य बिंदुओं पर चर्चा करते है। यह सही तथ्य है कि सरकार के पास पर्याप्त भंडारण क्षमता नही है जिसके कारण लाखो टन खाद्य पदार्थ नष्ट हो जाते है। यह भी प्रासंगिक ही है कि सरकार अपनी सीमित क्षमता और साधनों के अनुसार ही सीमित खरीद कर सकती है। अब बाकी का बचा अन्न कहा जायेगा? किसानों के पास भंडारण के साधन नही है। अब बचते है व्यापारियों के गोदाम। लेकिन सरकार की पुरानी नीति के चलते इन पर भंडारण न करने का दबाव बना रहता है। नतीजा चोरी का व्यापार फलता फूलता है। इसलिये भंडारण क्षमता बढ़ाने के लिये व्यापारिक घरानों का प्रवेश देश हित मे सही हो सकता है। लेकिन ऐसा करते हुए सरकार से दूरदृष्टि में चूक हुई। असीमित भंडारण और स्वतंत्र कीमत निर्धारण से देश मे कृत्रिम संकट पैदा कर मुनाफा खोरी की संभावना बनी रहेगी। इसलिये सरकार को चाहिये कि भंडार ग्रह से निकासी और उसकी अधिकतम कीमत भी निश्चित कर दे। व्यापारी अपनी लागत मूल्य पर एक निश्चित लाभ के साथ प्रत्येक माह कम से कम भंडारण का दस प्रतिशत निकासी सुनिश्चित करे जिससे निश्चित कीमत पर उपभोक्ताओं को वस्तुए उपलभ्ध हो सके। साथ ही कोल्ड स्टोरज की भांति किसानों को अपनी फसल के भंडारण की सुविधा भी मिलनी चाहिये जिससे किसान भी व्यापारियों की भांति बढ़े मूल्यों का फायदा उठा सकें।
अब बात करते है करार पर खेती की। यह प्रचलन हॉल के कुछ सालों में बढ़ गया है। वास्तव में करार पर खेती हमेशा से ही होती आयी है। पहले महाजन के द्वारा तो बाद में ठेके या बटाई पर। अंतर केवल इतना है कि पहले यह सब मौखिक होता था और लाभ की कोई गारंटी नही थी। कम जोत वाले और नॉकरी करने वाले लोगो के लिये स्वयं खेती करना भी संभव नही था। वर्तमान नए कानून से किसानों को निश्चित शर्तो पर खेती करने का मौका मिलेगा साथ ही निश्चित दर पर उसकी फसल खरीद की गारंटी भी मिलेगी। खरीददार समय समय पर किसान की मदद करेगा।लेकिन सरकार को ऐसे करारों को विधिवत मान्य और लागू करने के लिये पारदर्शी और प्रभावी न्याय परकिर्या निश्चित कर देनी चाहिये जिससे भोले किसानों के साथ कोई धोखाधड़ी न हो सके। किसानों को इसमें कोई संशय अथवा विरोध नही करना चाहिये।
आंदोलन के मुख्य बिंदु पर विचार करे तो यह निश्चित है कि msp पर खरीद सरकार अपनी क्षमताओं तक ही कर सकती है। अन्न नष्ट न हो इसलिये भंडारण सीमा हटाई गई है। लागत मूल्य पर आधारित msp को जारी रखा जा सकता है लेकिन सरकार किसानों की गन्ने की भांति निश्चित सीमा तक। अब बाकी बचे अन्न का एक ही उपाय है कि वो व्यापारियों द्वारा भंडारण किया जाय। सरकार व्यापारियों पर भी msp आधारित खरीद का बंधन लगा सकती है। इससे बाजार में पूरे वर्ष कीमतों में बड़े उतार चढ़ाव को रोका जा सकेगा। साथ ही निश्चित मूल्य पर लगातार निकासी से भी बाजार में उपलभता बनी रहेगी। इसके साथ ही फसलों की थोक खरीद का मूल्य बैंक ट्रांसफर के माध्यम से आवश्यक कर दिया जाना चाहिए जिससे व्यापारियों की सरकारी एजेंसी से मिलीभगत पर लगाम लग सके।
किसानों को मंडियों के मायाजाल से निकल कर सरकार द्वारा दिये गए स्वतंत्र बिक्री के अधिकार का स्वागत करना चाहिये। फसल किसान की है वो जहां चाहे बेचे ।इस पर कोई प्रतिबंध लगाना किसानों की स्वायत्तता पर अंकुश लगाने के समान है। मंडी के तथाकथित व्यापारियों को खुली छूट है कि वो अपनी सामर्थ्य के अनुसार खुले बाजार से खरीद कर सके। आखिर किसान को कमीशन देने की पाबंदी कैसे लगाई जा सकती है?
अबअगर किसानों को मिलने वाली छूट की बात करे तो ऐसी स्थिति में जब उन्हें लागत आधारित व लाभ के साथ फसल का msp मिल रहा हो तो मिलने वाली सब्सिडी और अन्य छूट जैसे सस्ती कीमंत पर बीज खाद और बिजली का कोई नकारात्मक प्रभाव नही पड़ता। फिर भी सरकार कृषि के लिये अधिकतम प्रोत्साहन देती ही रहेगी
लेकिन किसानों की दयनीय स्थिति के लिये सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण कारण है उनमें आर्थिक अनुशासन की कमी। किसान अपनी आय के अनुसार खर्च नही करते जिसके कारण उन्हें लिए गए कर्ज का भी दुरुपयोग करना पड़ता है। सरकार को इसमें जागरूकता के प्रयास करने चाहिए। किसानो को एक बैंक का चयन करना चाहिए जो किसान की सभी आर्थिक परेशानियों का हल सुझाव करे। केवल वही बैंक ऋण दे और फसल की बिक्री मूल्य भी उसी बैंक में ट्रांसफर किया जाय। इससे किसानों में वित्तीय अनुशासन की बढ़ोतरी होगी। किसान bankcrupt नही होंगे। और भविष्य में यही आंकड़े उनकी भविष्य नीति निर्धारित करने में सहायक हो गे।
किसान भाइयों से भी निवेदन है कि कुछ भी हो लेकिन राष्ट्रीय एकता को हानि न पहुचने दे। देश के विरुद्ध षड्यंत्र रचने वाली किसी भी पार्टी अथवा संस्था को प्रवेश न दे। सरकार आज भी उनकी है और कल भी उनकी ही रहेगी। सरकार हमारी संरक्षक है। हम अपने अधिकारों को पाने के लिये वार्ता कर सकते है। अपनी बात स्पष्ट कर सकते है। जिद्द किसी भी प्रकार से उचित नही होती। चर्चा से पहले रिजल्ट निश्चित न करे। सभी पहलुओं पर पूर्वाग्रह के बिना वार्ता करें और देश हित मे निष्कर्ष निकाल कर आंदोलन को समाप्त करे। देश के सामने और भी परेशनिया है वो भी हम सभी से संबंधित है। सब मिलकर उनका भी समाधान करें।
काला दिवस और काले झंडे दुश्मन के लिये होते है इसे अपना झंडा फहराते हुए समाधान दिवस के रूप में मनाना उचित होगा।
लेखकः-ललित मोहन शर्मा
चेयरमैन
बिल्ड इंडिया फोरम