Uttarakhand
किसान आन्दोलन और केन्द्र सरकार
पिछले खासे समय से किसान आंदोलन चल रहा है। फोनों पक्षो के बीच कई दौर की बातचीत भी हो चुकी है। सरकार अपनी और से संसोधन प्रस्ताव भी दे चुकी है लेकिन आन्दोलन है कि समाप्त होने का नाम नही ले रहा है। किसान टस से मस नही हो रहे है। विषय देश की जनता के बीच चर्चा बन गया है। यदि सभी पक्ष हल चाहते हैं तो ऐसी कौन सी शक्ति है जो वातावरण में जहर घोल रही है। अफवाहों का बाजार गर्म है। सोशल मीडिया विस्फोटक साहित्य बाट रहा है। नए नए समाचार चैनल यु ट्यूब पर जन्म ले चुके है और गलत फहमियां फैलाकर समस्या को गंभीर बना रहे है। सबसे बडी बात कुछ देश विरोधी, टुकड़े टुकड़े गैंग तथा अलगाव वादी लोग मौके का फायदा उठाकर अपनी रोटी सेंक रहे हैं। लाखो लोगो के बीच दुश्मन को पहचानना मुश्किल होता है वो भी तब जब दुश्मन अपने ही हों।
ऐसा नही है कि समस्या का समाधान नही है। किसी भी कानून में कोई कमियां हो सकती हैं लेकिन पूरा कानून गलत ठहराना भी उचित नही है। कानून को वापस लेने और उसे आवश्यकतानुसार संशोधित करने में क्या फर्क है? कानून में अपत्तिजनक अंश सरकार संशोधित करने के लिये तैयार है तो फिर सभी के लिये विन विन स्थिति बनाते हुए हल निकाला जा सकता है।
मैं कानून की बारीकियो में जाना नहीं चाहता लेकिन कुछ सुझाव यहां देना चाहता हूं शायद हल निकालने में कुछ मददगार हो सके।
1 न्यूनतम समर्थन मूल्य को न्यूनतम खरीद मूल्य घोषित कर दिया जाना चाहिये।साथ ही सरकार द्वारा खरीद अथवा सब्सिडी को सभी राज्यो में उचित रूप से खर्च किया जाना चाहिये।
3 न्यूनतम खरीद मूल्य के साथ ही रखरखाव खर्च और उचित लाभ को जोड़ते हुए अधिकतम बिक्री मूल्य भी निर्धारित कर देना चाहिये। इससे मुनाफाखोरी और महंगाई पर नियंत्रण किया जा सकेगा। साथ ही जमा स्टॉक को किसी भी समय अवश्यकता पड़ने पर जारी करने का अधिकार सरकार के पास सुरक्षित होना चाहिए।
4 किसानों को सभी बाजारों में फसल बेचने की अनुमति जारी रखना चाहिये।
5 अनुबंध द्वारा खेती किसानों के लिये ऐच्छिक है इसलिये इस पर विबाद न कर छोटे किसानों को ग्रुप बनाकर ही कोई अनुबंध करना
चाहिये जिसके लिये एक राशि अग्रिम भुगतान के रूप में किसान को दी जानी चाहिये।
6 देश मे चीनी, गेहूं और चावल का आवश्यकता से कई गुना स्टॉक उपलब्ध है। ऐसे में इनका उत्पादन किसानों और देश के लिये घाटे का सौदा है। उपभोक्ता की कमी के चलते इनका उचित दाम मिलना असंभव है अतः किसानों को इन फसलों को नियंत्रण करते हुए दूसरी फसलों और बागबानी के उत्पादन पर ध्यान देना चाहिये।इससे न केवल देश की ज़रूरत पूरी होंगी बल्कि अधिक क़ीमत वाली फसल से एक्पोर्ट की संभावनाएं बढ़ेंगी।
7 विशेष रूप से जहां कृषि भूमि की कीमत अधिक है वहाँ कीमती फसल उगाकर ही उचित लाभ कमाया जा सकता है। किसानों को खाद्य प्रसंकरण की और भी ध्यान देना चाहिये। यह कार्य छोटे स्तर से लेकर बड़े स्तर तक किया जा सकता है और विदेशी कंपनीयो के दखल को कम किया जा सकता है।
8 किसान की पांच एकड़ तक कि कृषि भूमि किसी प्रकार के बंधन, जब्त और कुरकी से मुक्त होनी चाहिये। साथ ही किसान को उसकी भुगतान क्षमता के अनुसार ही कर्ज़ दिया जाना चाहिये जिससे किसान कर्ज के अधिक बोझ से बच सकें।
अंत मे कहना चाहता हूँ कि देश में कोई भी समस्या हो सकती है लेकिन विरोध की आज़ादी के नाम पर देश की संम्पत्ति और जन जीवन से खिलवाड़ की अनुमति नही होनी चाहिए और न ही छाती पीट कर किसी वयक्ति विशेष के लिये मृत्यु गान गया जाना कैसे सहन किया जा सकता है। ऐसे लोग समाज के लिये कलंक है हमारा कर्तव्य है कि ऐसे लोगो को अपने बीच किसी कीमत पर स्थान न दे। ऐसी किसी प्रथा को आगे न बढ़ाये कि देश मे संवेधानिक संकट उत्पन्न हो और अराजकता की स्थिति पैदा हो।हमारे किसान अपनी समस्या को अपने आप सुलझाने के लिये सक्षम है उन्हें किसी शाहीन बाग,वामपंथी और देश विरोधी दलों की सहायता की आवश्यकता नही है। भारतीय सेना भी किसानों की ही संताने है इसलिये किसानों के देश प्रेम पर कोई शंका नही की जा सकती।किसान भाइयों को चाहिये कि आंदोलन की छवि बिगाड़ने वालो को तीन किलोमीटर दूर धकेल कर स्वयम विवेक से वार्ता कर शीघ्र समाधान करें साथ ही सरकार को भी स्थिति की गंभीरता को देखते हुए किसानों को शीघ्र संतुष्ट करना चाहिये। प्रधान मंत्री को शिघ्र हस्तक्षेप कर मामले का पटाक्षेप करना चाहिए।
लेखकः-ललित मोहन शर्मा