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भूमि को उत्पादक बनाये रखना हम सब की जिम्मेदारीः स्वामी चिदानंद सरस्वती
ऋषिकेश। परमार्थ निकेतन के परमाध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती ने विश्व मरुस्थलीकरण और सूखा दिवस के अवसर पर देशवासियों को संदेश दिया कि भारत एक कृषि प्रधान देश है। भारत का विकास तथा आबादी का अधिकांश हिस्सा कृषि पर ही निर्भर है, इसलिये भूमि को उत्पादक बनाये रखना हम सब की जिम्मेदारी है। मरुस्थलीकरण और सूखा दिवस को आधिकारिक तौर पर संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा ‘‘मरुस्थलीकरण और सूखा विश्व दिवस घोषित किया गया था।‘‘ मरुस्थलीकरण और सूखा दिवस के उद्देश्य हैं सार्वजनिक जागरूकता को बढ़ावा देना, लोगों को यह बताना कि मरुस्थलीकरण और सूखे से प्रभावी ढंग से निपटा जा सकता है, इसका समाधान है, परन्तु इसके लिये सामुदायिक भागीदारी और सहयोग को मजबूत करना होगा। हमें यह जानना होगा कि मरुस्थलीकरण हमें कैसे प्रभावित करता है? कोई फर्क नहीं पड़ता कि हम कहाँ रहते हैं, मरुस्थलीकरण और सूखे के परिणाम सभी के लिये घातक हैं और सभी को चिंतित करने वाले हो सकते हैं। वैश्विक स्तर पर, बहुत कम भूमि उत्पादक भूमि के रूप में बची है।
स्वामी जी ने कहा कि हमें यह समझना होगा कि हम सभी का जीवन प्रकृति पर निर्भर करता है इसलिये हम सब को ही इसकी देखभाल करनी होगी, माता भूमिः पुत्रोऽहं पृथिव्याः, धरती हमारी माता है और हम सब उसकी संतान है। आज तक माता धरती ने हमारी देखभाल की है आईये, अब हम धरती की देखभाल करे। हम सभी को स्वस्थ रूप से जीवनयापन करने के लिए जितनी कैलोरी की जरूरत होती है, उसका 99 फीसदी जमीन से ही आता है। अतः हमें प्रकृति के लिए जीना होगा, प्रकृति के साथ जीना होगा क्योंकि प्रकृति है तो हम हैं।
वर्तमान कोरोना काल में देखिये चारों ओर शुद्ध और स्वच्छ वायु है परन्तु हम मंुह पर मास्क लगाने को मजबूर हैं। हमने धरती को प्रदूषण का मास्क लगाया था अब धरती ने हमें मास्क पहनवा दिया। हमें यह बात हमेशा याद रखनी होगी कि प्लान ए और प्लान बी हो सकता है परन्तु प्लानेट तो एक ही है इसलिये प्रकृति और पृथ्वी के साथ अपनेपन से जिंए। यह अपनापन ही अपनों को, प्रकृति को, पर्यावरण को और आने वाली पीढ़ियों को जिंदा रखेगा। प्रकृति को बचाने के लिये, मेरी प्रकृति, मेरी धरती, मेरी जान यह अपनापन चाहिऐ। स्वामी जी ने कहा कि ’’रेगिस्तान भी हरे हो जाते हैं, जब अपनों के साथ अपने खड़े हो जाते हैं,’’ आज यह अपनापन चाहिए। व्यक्ति या परिवार ही नहीं प्रकृति भी अपनी है, पानी भी अपना है, यह सोच चाहिये, पानी है तो हम है, पानी बचेगा तो हम बचंेगे। स्वामी जी ने कहा कि हमें इस समय ग्रीनविजन की जरूरत है. वर्ष 2020 में विजन 20ः20 चाहिऐ। इसका अर्थ है ग्रीनविजन, अर्थात प्रकृति के साथ जीना। यही साइंटिफिक, वैज्ञानिक रास्ता है। हमें यह समझना होगा कि भूमि, स्वस्थ होगी तो आपदाओं से बचाव होगा जैसे कि सूखा और फ्लैशफ्लड आदि। जो समस्यायें मानव निर्मित है, उसका समाधान भी मानव के पास ही है। अस्वस्थ भूमि, भूमि क्षरण, जलवायु परिवर्तन और घटती जैव विविधता, मानव जीवन को प्रभावित कर रही है। हमारे पास भूमि संरक्षण के माध्यम से सतत विकास लक्ष्यों को प्राप्त करना ही एकमात्र कुंजी है।