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कर्नाटक का रण: सरकार बनाने को लेकर फंसा पेंच, जानिए- क्या है संभावित सियासी समीकरण

बेंगलुरु । कर्नाटक से होकर दक्षिणी राज्यों में सत्ता का विजयरथ दौड़ाने के लिए जोर लगा रही भाजपा ‘प्रवेश द्वार’ पर ही आकर अटक गई है। राज्य विधानसभा चुनावों के मंगलवार को घोषित नतीजों में सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरने के बावजूद वह जादुई अांकड़ा हासिल नहीं कर सकी। वहीं, सत्तारुढ़ कांग्रेस इस तरह पिछड़ी कि भाजपा को सत्ता से दूर रखने के मिशन में उसने पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवेगौड़ा की पार्टी जनता दल (एस) को सरकार बनाने के लिए समर्थन का एलान कर दिया। कांग्रेस ने देवगौड़ा के पुत्र एचडी कुमारस्वामी को मुख्यमंत्री बनने का ऑफर दिया, जिसे जदएस ने स्वीकार कर लिया है। कुमारस्वामी ने भी तत्परता दिखाते हुए राज्यपाल वजूभाई वाला को पत्र लिखकर सूचित किया कि उन्होंने सरकार बनाने के लिए कांग्रेस का समर्थन स्वीकार कर लिया है। बाद में कांग्रेसी नेताओं के साथ राज्यपाल से मिलने भी पहुंचे। दूसरी ओर, भाजपा की ओर से मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार बीएस येदियुरप्पा भी सरकार बनाने दावा करने शाम को राज्यपाल से मिलने पहुंचे। उनका कहना है कि सबसे बड़ी पार्टी होने के नाते सरकार बनाने का पहले भाजपा को मौका मिले। पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व ने स्थिति को संभालने के लिए दिल्ली से तीन वरिष्ठ नेताओं को बेंगलुरु भेजा है। इस तरह अब सबकी नजरें राज्यपाल के रख पर हैं। हालांकि सूत्रों ने बताया है कि राज्यपाल आधिकारिक तौर पर पूरे नतीजे घोषित होने के बाद ही कोई अगला कदम उठाएंगे।

संभावित सियासी बिसात

भाजपा स्थिति : पार्टी को 104 सीटें। ऐसे में उसे फिलहाल बहुमत के लिए उसे कम से कम आठ विधायकों की जरूरत होगी। दो अन्य के मिलने पर भी बहुमत नहीं से छह अंक दूर।

रणनीति :-कांग्रेस/जदएस के कुछ विधायकों से इस्तीफे दिला कर सदन की प्रभावी संख्या कम कर अभी बहुमत साबित करने की कोशिश करे। विपक्षी दलों में तोड़फोड़ से उसके विधायकों को अपने पाले में करे।

कांग्रेस स्थिति : 78 सीटों के साथ दूसरे नंबर पर। जदएस+ की 37 सीटें। बहुमत के आंकड़ा से तीन ज्यादा। दोनों पार्टियां टूट या बगावत से बची रहीं तो सरकार गठन में अड़चन नहीं।

रणनीति :-भाजपा को सत्ता से दूर रखने के लिए जदएस को समर्थन का एलान किया।

-जदएस ने भी कांग्रेस से मिले ऑफर को हाथों-हाथ लिया है।

राजभवन की भूमिका

-परिपाटी सबसे बड़ी पार्टी को सरकार बनाने का मौका देने की रही है।

-चुनाव पूर्व गठबंधन हो तो सबसे ज्यादा सीटों के आधार पर उसे मौका मिल सकता है।

-लेकिन कर्नाटक में चुनाव पूर्व गठबंधन नहीं है।

-इस तरह त्रिशंकु विधानसभा की स्थिति में दावे-प्रतिदावे पर राज्यपाल को विवेकाधिकार से फैसला लेने का अधिकार।

-ऐसे में जिस पार्टी या गठबंधन को पहले मौका मिल जाता है, उसे स्थिति का लाभ मिलने की संभावना बन सकती है।

-इसीलिए अब पहले मौका पाने की दौड़ शुरू हो गई है।

कर्नाटक विधानसभा : दलीय स्थिति

कुल सीटें : 224

चुनाव हुए : 222

बहुमत का अांकड़ा : 112

भाजपा : 104

कांग्रेस : 78

जदएस + : 38

अन्य : 02

सरकार गठन का संभावित गणित :

कांग्रेस + जदएस+ : 116

भाजपा : 104 (8 की जरूरत, कहां से आएंगे स्थिति स्पष्ट नहीं)

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