कैसे प्रोफेसर से आतंकी बना रफी
श्रीनगर। दक्षिण कश्मीर के शोपियां में रविवार को कश्मीर के चार दुर्दांत आतंकियों के साथ मारा गए पांचवें आतंकी डा रफी अहमद बट को बेशक कई लोग बोलेंगे वह एक दिन पुराना आतंकी था। लेकिन वह बचपन से ही जिहादी मानसिकता वाला था और करीब 15 साल पहले उसे सुरक्षाबलों ने कुछ अन्य युवकों के साथ आतंकी बनने के लिए पाकिस्तान जाते हुए पकड़ा था। सहृदयता के आधार पर उसे उसी समय रिहा कर, उसके परिजनों के हवाले किया गया था।
गौरतलब है कि कश्मीर विश्वविद्यालय के सोशियाेलाजी विभाग में कार्यरत असिस्टेंट प्रोफेसर डा मोहम्मद रफी बट गत शुक्रवार को लापता हो गया था और आज सुबह शोपियां में मुठभेड़ शुरू होने के बाद ही पता चला था कि वह आतंकी बन चुका है। रफी बट के साथ मारे गए चार अन्य आतंकी सददाम, आदिल, बिलाल और तौसीफ कश्मीर में सक्रिय दुर्दांत आतंकियों में गिने जाते थे। चंदहामा, गांदरबल के एक संभ्रांत परिवार से संबंधित डा रफी बट पर उसके पिता फैयाज अहमद बट बीते दो दशकों से लगातार नजर रखे हुए थे। वह आसानी से उसे अपनी आंखों से ओझल नहीं होने देेते थे, क्योंकि रफी बचपन से ही आतंकवाद की तरफ आकर्षित था। उसके दो चचेरे भाई 1990 के दशक की शुरुआत में आतंकी बने थे और सुरक्षाबलों के साथ मुठभेड़ में मारे गए थे। वह उनसे खासा प्रभावित था। जब वह 18 वर्ष का हुआ तो उसने कुछ अन्य युवकों के साथ मिलकर आतंकी बनने के लिए पाकिस्तान जाने का प्रयास किया था। वह जैश और लश्कर के कुछ खास लोगों के साथ संपर्क में था। खैर, पुलिस ने अपने मुखिबरों से मिली खबर के आधार पर उसे व उसके साथियों को समय रहते पकड़ पाकिस्तान जाने के उनके मंसूबे पर पानी फेर दिया था। उसके बाद से फेयाज बट ने उसे आतंकवाद और जिहादी तत्वों से दूर रखने का हर संभव प्रयास किया। गत वर्ष जब रफी बट ने कश्मीर विश्वविद्यालय में सोशियाेलाजी विभाग से नियमित पीएचडी की उपाधि हासिल की और उसके बाद उसे जब संविदा के आधार पर विश्वविद्यालय में असिस्टेंट प्रोफेसर की नौकरी मिली तो फैयाज अहमद बट ने सोचा कि चलो अब जिंदगी सुकून से कटेगी। फैयाज अहमद बट को नहीं पता था कि उसका बेटा लगातार जिहादी तत्वों के संपर्क में है और फिर गत शुक्रवार को डा मोहम्मद रफी बट अपनी पत्नी और मां-बाप को बिना बताए घर से गायब हो गया। वह मिला, लेकिन मुर्दा। मरने से पूर्व उसने अपने पिता फोन जरूर किया। अपने बेटे के लिए परेशान फैयाज अहमद बट के फोन की आज सुबह जब घंटी बजी तो पहले वह कुछ खिन्न हुए। लेकिन जब उन्होंने दूसरी तरफ से अपने बेटे की आवाज सुनी तो खुश हो गए। लेकिन यह खुशी उस समय काफूर हो गई, जब डा रफी बट ने अपने पिता से अपनी कोताहियों और गुनाहों के लिए माफी मांगते हुए कहा कि मुझे माफ करना। मैं आपकी उम्मीदों को पूरा नहीं कर पाया। मैंने सिफ आपसे विदा लेने के लिए फोन किया है। यह मेरी आपको अंतिम कॉल है, मैं खुदा से मिलने जा रहा हूं। इसी दौरान पुलिस का एक दस्ता भी फैयाज अहमद के पास पहुंच गया। उन्होंने कहा कि अगर वह अपने बेटे को बचाना चाहते हें तो उसे सरेंडर के लिए मनाएं। शोपियां चलें। फैयाज अहमद बट ने अपनी पत्नी, अपनी बेटी और बहू को उसी समय तैयार किया, ताकि वह अपने बेटे को वापस ला सकें। लेकिन श्रीनगर के बोटाकदल इलाके में जब वह पहुंचे तो खबर आ गई की अब कोई फायदा नहीं। रफी और उसके साथ अन्य आतंकी मारे गए हैं। अपने बेटे की मौत से सन्न फैयाज अहमद ने कहा कि हालांकि पुलिस वाले मुझे गत रोज से ही कह रहे थे कि रफी आतंकी बन गया है। लेकिन मेरा दिल नहीं मानता था। मैं उन्हें यकीन दिला रहा था कि मेरा बेटा जिहादी नहीं बन सकता, मैंने उसे आतंकवाद से दूर रखते हुए बड़ी मेहनत से पाला है। लेकिन उसने वही रास्ता चुना, जिससे मैंने रोका था। इससे एक बात साबित हो जाती है कि किस प्रकार दहशतगर्द कश्मीर में नौजवानों को अपना निशाना बना रहे हैं और उनका ब्रैनवाश या हिप्नाटाईज करके आतंक की दलदल में घसीट रहे हैं।