कबीरदास जी सामाजिक पुनर्जागरण के अग्रदूतः स्वामी चिदानन्द सरस्वती
ऋषिकेश। परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने प्रेम की शिक्षा और समाज को नई दिशा देने वाले संत कबीरदास जी की जयंती के अवसर पर उन्हें याद करते हुये कहा कि कबीरदास जी ने प्रेम की अद्भुत महिमा गायी है। ‘‘पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय। ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय’’ संत कबीरदास जी ने अपनी दो-दो लाइन की कविताओं के माध्यम से गागर में सागर भरने की कोशिश की है। उन्होंने अपनी कविताओं के माध्यम से सामाजिक विषमताओं एवं रूढ़िवादिता को समाप्त करने हेतु अद्भुत योगदान दिया। संत कबीरदास जी सामाजिक पुनर्जागरण के अग्रदूत थे।
स्वामी जी ने कहा कि वास्तव में राधा जी, मीराबाई, कबीरदास, रसखान आदि अनेक भक्त हुये जिन्होंने वास्तव में प्रेम का स्वाद लिया, प्रेम को चखा, प्रेम को जानना और जिया। उन्होंने जीवन में प्रेम रस का पान किया और फिर उनके जीवन में कोई प्यास ही नहीं बाकी रही। ये ऐसे भक्त हुये जिन्होंने प्रेममय होकर तथा प्रभु प्रेम में डूब कर परम ज्ञान को प्राप्त किया। वास्तव में संत कबीर जी ने जो दृष्टि ही की समाज को दी उसकी वर्तमान समय में बहुत जरूरत है। समाज में नफरत की, सम्प्रदायिकता की, भेदभाव की और ऊँच-नीच की दीवारें गिरें यही उनका ध्येय रहा। आपसी दूरियां समाप्त हो जायगी और यह बोध हो जायेगा कि हम सभी एक ही परम पिता परमात्मा की संतानें हैं। सभी के मूल मे सभी की आत्मा में परमात्मा की दिव्य ज्योति विद्यमान है। कोविड-19 महामारी के इस दौर में मानवता की रक्षा के लिये आपसी प्रेम, करूणा, भाईचारा और अपनत्व की जरूरत है। हमारा जीवन ऐसा हो कि किसी के काम आये तथा दूसरों की मदद करें इससे आने वाली पीढ़ियों को भी मार्गदर्शन मिलता रहेगा। किसी ने क्या खुब कहा है – ‘‘ लहू में हरकतें, मुँह में जुबान डालेंगे, जो सच्चे और अच्छे लोग हैं वो मुर्दों में जान डालेंगे।’’