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जोशीमठ प्रखंड के लाता गांव में उगाया गया जिम्बू फरण

देहरादून। जम्बू उच्च हिमालयी क्षेत्रों में पाया जाने वाला पौधा है, जो प्याज या लहसुन के पौधे का हमशक्ल है। यह 10,000 फीट से अधिक की ऊँचाई पर प्राकृतिक रूप से पैदा होता है। उच्च हिमालयी क्षेत्रों में ग्रीष्मकालीन प्रवास करने वाले लोग अपनी जरूरत के हिसाब से इसकी खेती भी करने लगे हैं। एमेरिलिस परिवार के इस पौधे का वानस्पतिक नाम एलियम स्ट्राकेई है। हरी-भूरी रंगत वाली इसकी सूखी पत्तियों को जायकेदार तथा खुशबूदार मसाले के तौर पर प्रयोग किया जाता है। इसके पौधे के जमीन से ऊपर नजर आने वाले हिस्से को चुन लिया जाता है। इसके बाद इसे छायादार जगह पर हवा की मदद से ठीक तरह से सुखा लिया जाता है। इस प्रक्रिया में न्यूनतम 15 दिन लग ही जाते हैं। इसके बाद इसको संरक्षित कर लिया जाता है और दवा व मसाले के रूप में इसका इस्तेमाल किया जाता है। उच्च हिमालयी क्षेत्रों में उगने वाली ज्यादातर वनस्पतियाँ औषधीय गुणों से भरपूर हैं, जम्बू भी इन्हीं में से एक है। इसमें एलिसिन, एलिन, डाइ एलाइन सल्फाइड के साथ-साथ अन्य सल्फर यौगिक मौजूद रहते हैं। इसे बुखार, गीली खांसी और पेटदर्द के लिए कारगर बनाते हैं। चिकित्सा के लिए बुनियादी ढाँचे के अभाव में स्थानीय लोग इसी तरह की हिमालयी वनस्पतियों के सहारे अपना इलाज करते हैं। जम्बू बुखार में खास कारगर होने के कारण बहुत लोकप्रिय है।

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