Uttarakhand

जातिगत राजनीति और आरक्षण देश की प्रगति का भक्षण

सुप्रीम कोर्ट की हालिया टिप्पणी ने देश मे चल रही जातिगत आरक्षण व्यवश्था और राजनीति पर पुनः एक बार विचार करने के लिए बाध्य कर दिया है। देश का संविधान और सरकार एक और जाति वाद का विरोध करती है और दूसरी और चुनाव से लेकर कानून और यहाँ तक की शिक्षा में भी जातिगत आधार पर कार्य करती है। दरसल देखा जाय तो आरक्षण की परिभाषा ही बदल गयी है। आरक्षण किसी वर्ग विशेष को उसका स्तर और सहभागिता बढ़ाने के लिए उपयुक्त प्राविधान का नाम है न कि अपात्र को अधिकार हस्तांतरित करने का। कोई भी व्यक्ति जाति से वंचित नही होता बल्कि सुविधाओ और अवसरों से वंचित होता है। अतः आरक्षण की मूल धारणा वंचित को सुविधा और अवसर प्रदान करने की होनी चाहिए। आज़ादी के समय देश की परिस्थिति कुछ और थी। हमारी सामाजिक गतिविधियों में हमारी रूढ़िवादिता और जातिगत प्रणाली का प्रभाव था। शायद तत्कालीन नीतिनिर्धारकों ने सामाजिक समरूपता और समान अवसर प्रदान करने के उद्देश्य से आरक्षण प्रणाली का पराविधान दस वर्षों के लिए किया जो परिश्थिति वश आगे बढ़ाई जाती रही और जिसने राजनीति के परिवेश को भी धारण कर लिया और देश की यही जातिगत नीति देश की राजनीति को भी प्रभावित करने लगी यहाँ तक कि जाति विशेषऔर धर्म विशेष को महत्व देने के लिये कानून बनाये जाने लगे। सब भूल गए कि जिस जातिगत आधार पर राजनीतिक रोटियां सेकी जा रही थी वही व्यवस्था एक दिन सभी के असंतोष का कारण बनेगी। कोई भी प्रगतिवादी आरक्षण व्यवस्था का विरोधी नही हो सकता लेकिन यह व्यवस्था जातिगत आधार पर नही आर्थिक आधार पर होनी चाहिए और वह भी वंचित की सुविधा और योग्यता बढ़ाकर उसे समान अवसर प्रदान करने के लिए।सुविधा के अभाव में आज भी बहुत से वंचित वांछित योग्यता प्राप्त न कर पाने के कारण आरक्षण का लाभ नही ले पाते वही पूर्ण रूप से सम्पन्न लोग केवल जाति के आधार पर आरक्षण प्राप्त कर आगे बढ़ जाते है। नतीजा यह हुआ कि जातिगत आरक्षण के कारण आज भी इसका लाभ सम्पन्न वर्ग के आरक्षित श्रेणी के लोग उठा रहे है। जो आरक्षण के पात्र थे उसमे अधिकतर आज भी वंचित श्रेणी में बने हुए है।
अगर जातिगत ढांचे को देखा जाय तो देश के भिन्न क्षेत्रो में अलग अलग जातीय समीकरण है तो क्या अलग अलग स्थान पर अलग अलग जाति को आरक्षण देना पड़ेगा। आरक्षण के कारण पिछड़ रही जातियों के सक्रिय होने पर क्या उन्हें भी आरक्षण दिया जाता रहेगा? आखिर वोट की खातिर कब तक यह विवशता का खेल खेला जाता रहेगा?
देश योग्यता से आगे बढ़ता है अपात्र को पात्र समझने से नही। डॉक्टर वही बनना चाहिये जो उसके लिये योग्य है। वैज्ञानिक वही बन सकता है जो योग्य है। पतंग उड़ानेवाला हवाई जहाज नही उड़ा सकता जैसे कमजोर दिल रखने वाला देशप्रेम का भाव न रखने वाला देश की रक्षा नही कर सकता। आप एक गरीब से लगाकर संसद तक से पुछये कितने लोग एक कम योग्यता के डॉक्टर से अपना इलाज कराएंगे या एक आरक्षण से आये प्रशिक्षु द्वारा चलाये जाने वाले जहाज में यात्रा करना चाहेंगे। एक ही उत्तर मिलेगा कदापि नही। क्योकि सभी को योग्यता से समझौता स्वीकार नही। सभी को जीरो डिफेक्ट सेवा चाहिये और यह सही और वास्तविक मांग है। अतः यदि देश को आगे बढ़ना है, योग्य जनसेवक बनाने होंगे। किसी भी क्षेत्र चाहे वह कृषि क्यों न हो, अच्छी उत्पादकता लाने के लिये योग्यता को बढ़ाना आवश्यक है। सरकार को नीति पर नए सिरे से विचार करना चाहिये।
सरकार आरक्षण की व्यवस्था केवल आरंभिक स्तर पर रख सकती है। कोई बुराई नही है हर किसी आर्थिक दृष्टि से पिछड़े हर जाति के व्यक्ति को ऊपर उठाने और उसे अपनी योग्यता साबित करने के लिये समान अवसर देने में। सभी को मन से से जातिगत भाव को दूर करना होगा। मैं पूछता हूं कि अगर विकास की दौड़ में कोई पिछड़ गया है तो उसमें उसकी सम्पूर्ण जाति तो नही पिछड़ती। फिर कोई व्यक्ति अपने पीछे रहने का दोष अपनी जाति पर क्यों स्वीकार करता है। मेरे गांव का गरीब मजदूर और आरक्षित जाति के प्रसाशनिक अधिकारी या राजनेता कैसे जाति के आधार पर एकसमान पिछड़े स्वीकार किये जा सकते है। हमे कईबार आरक्षित वर्ग के लोगो से ही मार्ग दर्शन मिलता है तो वो कैसे छोटे हो सकते हैं? अतः व्यक्ति के सामाजिक पैमाने का आधार उसकी जाति नही बल्कि उसकी योग्यता औऱ आर्थिक स्तर होना चाहिए।
अब सवाल पैदा होता है कि क्या किया जाय कि किसी असंतोष से भी बचा जा सके तो इसके लिये निम्न सुझावों पर विचार किया जा सकता है।
1 आरक्षण का आधार जाति गत से निरस्त कर आर्थिक आधार पर कर दिया जाना चाहिए।
2 सरकार के पास सभी आर्थिक आंकड़े उपलब्ध है अतः किसी भी जाति धर्म के परिवार की एक सीमा निश्चित कर पिछडो को आरक्षण दिया जाना चाहये।
3 निश्चित सीमा से पारिवारिक आय अधिक हो जाने पर आरक्षण की सुविधा समाप्त की जानी चाहिए।
4 सबसे पहले निचले स्तर के परिवारों ( सीमा के अंदर )
के लिये उचित पोषण, आवास, स्वास्थ्य और शिक्षा में उचित सहायता कर उनको सुविधा निश्चित की जानी चाहिये।
5 ऐसे परिवारों के बच्चों की योग्यता और विकास के लिये हर संभव प्रयास किये जाने चाहिये।
6 सभी चयन केवल दो वर्गों में ( आरक्षित और अनारक्षित ) योग्यता के आधार पर होने चाहिए।
7 पदोन्नति का आधार केवल योग्यता और उत्पादकता के आधार पर होना चाहिये।
8 समान योग्यता के चलते समान अवसर दिए जाने चाहिये।
9 जातिगत आधार पर किसी विशेष राजनीतिक सत्ता द्वारा जाति विशेष की भर्ती पर अंकुश लगाया जाना चाहिये।
10 चयन व्यवस्था का केंद्रीय करण किया जाना भी उचित हो सकता है।
11 सभी जातिगत सुरक्षा प्रदान करने के उद्देश्य से बनाये गए कानून रदद कर समान रूप से सामाजिक सुरक्षा प्रदान की जानी चाहिये।
12 किसी भी जातिगत संगठन पर जातीय आधार पर कोई भी प्रदर्शन अपराध घोषित किया जाय और उनका कार्य क्षेत्र केवल सामाजिक विकास तक सीमित किया जाय।
13 इसी प्रकार किसी राजनेता अथवा पार्टी द्वारा जातिगत आधार पर दिया गया कोई भी वकतव्य और निर्णय गैर कानूनी होना चाहिए। किसी भी प्रकार से जातीय गणना, प्रचार  और घोषणा अवैधानिक और आचार संहिता का उल्लघन मानना चाहिए तथा जातीय आधार पर किसी भी राजनीतिक दल का पंजीकरण नही होना चाहिये।
14 महिलाओं की उचित भागीदारी को सुनिश्चित करने के लिये अलग से वर्गानुसार व्यवस्था होनी चाहिये
15 वंचितों को सुविधा प्रदान करने और उचित व्यवस्था के अनुपालन के लिये संबंधित अधिकारी को उत्तरदायी ठहराया जाना चाहिये।
यदि सबसे पहले हम समाज से जातिगत विद्वेष को दूर कर सके तो विकास के पथ पर यह पहला और महत्वपूर्ण मील का पत्थर साबित होगा। यदि सरकार सभी आर्थिक दृष्टि से पिछड़े परिवारों का समान रूप से ख्याल रखेगी तो समाज मे उसकी मान्यता और सामाजिक सद् वयवहार निश्चित रूप से बढ़ेगा। अपात्र की योग्यता बढ़ाएं न कि उसकी पात्रता। ज्ञान बढ़ेगा तो उत्पादकता बढ़ेगी और उत्पादकता बढ़ेगी तो देश को आत्मनिर्भर और अग्रणी बनने से कोई नही रोक सकता।
लेखकः- ललित मोहन शर्मा

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