जम्मू-कश्मीर में अतिरिक्त सुरक्षा बलों की तैनाती के बीच कई तरह की अफवाहों का बाजार गर्म, जानिए अनुच्छेद 370 और 35ए को लेकर क्या हो सकते हैं विकल्प
नई दिल्ली। जम्मू-कश्मीर में अतिरिक्त सुरक्षा बलों की तैनाती के साथ-साथ अमरनाथ यात्रियों, पर्यटकों और बाहर के छात्रों को घाटी के निकालने की कोशिशों के बीच कई तरह की अफवाहों को बाजार गर्म है। इनमें अनुच्छेद 370 और 35ए को खत्म करने से लेकर राज्य को तीन भागों में विभाजित करने तक की बातें की जा रही हैं। लेकिन कश्मीर मामलों से जुड़े वरिष्ठ अधिकारियों और विशेषज्ञों की माने तो सरकार अनुच्छेद 370 और 35ए को निरस्त करने के बजाय उनमें जरूरी संशोधनों के साथ भी आगे बढ़ सकती है। इससे एक ओर कश्मीर के भीतर से इन अनुच्छेदों को हटाने को लेकर हो रहे विरोध का स्वर भी कमजोर होगा, तो दूसरी ओर इनके कारण विभिन्न वर्गो के साथ हो रहे पक्षपात को समाप्त करने और निजी निवेश को आकर्षित कर विकास की गति को तेज करने का रास्ता भी साफ हो जाएगा। एक वरिष्ठ अधिकारी ने कश्मीर को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पिछले कुछ महीने के भाषणों को ध्यान से देखने की सलाह देते हुए कहा कि उन्होंने 370 और 35ए की आलोचना सिर्फ इस आधार पर की है कि इसके कारण पिछले 70 सालों में कश्मीर का विकास नहीं हो सका है। यहां तक पिछले हफ्ते अपने ‘मन की बात’ कार्यक्रम में भी प्रधानमंत्री ने बताया था कि किस तरह कश्मीर की आम जनता विकास और अमन चाहती है। उन्होंने यह भी साफ कर दिया था कि ‘जो लोग विकास की राह में नफरत फैलाना चाहते हैं, वो कभी अपने नापाक इरादों में कामयाब नहीं हो सकते।’
कश्मीर पर नीति-निर्धारण से जुड़े एक वरिष्ठ अधिकारी ने साफ किया कि अनुच्छेद 370 और 35ए राजनीतिक मुद्दा तो हो सकता है, लेकिन इसे पूरी तरह निरस्त किये बिना भी जरूरी लक्ष्यों को हासिल किया जा सकता है। अनुच्छेद 370 निजी निवेश के रास्ते में सबसे बड़ी बाधा है। यदि इसमें संशोधन कर निवेश को इच्छुक कंपनियों और व्यक्तियों को लंबी लीज पर जमीन उपलब्ध कराने का प्रावधान कर दिया जाए तो राह आसान हो जाएगी। इसी तरह राज्य में नागरिकता को निर्धारित करने वाले 35ए में संशोधनों के साथ राज्य से बाहर के किसी व्यक्ति से शादी करने वाली महिला को पैतृक संपत्ति में अधिकार और पाकिस्तान से आए शरणार्थियों को नागरिकता से रोकने जैसे प्रावधानों को आसानी से बदला जा सकता है।
कश्मीर मुद्दे पर नजर रखने वाले विशेषज्ञों की माने तो अनुच्छेद 370 और 35ए को पूरी तरह निरस्त करने के बजाय इसमें संशोधनों के साथ आगे बढ़ना ज्यादा बेहतर विकल्प हो सकता है। उनके अनुसार अनुच्छेद 370 के लिए सरकार को संवैधानिक संशोधन का रास्ता चुनना होगा। जबकि 35ए में संशोधन के लिए ऐसी कोई मजबूरी नहीं होगी। यहां सुप्रीम कोर्ट में लंबित होने के बावजूद सरकार 35ए में संशोधनों के साथ आगे बढ़ सकती है और बाद में सुप्रीम कोर्ट को इन संशोधनों की जानकारी दी सकती है। 35ए को संवैधानिकता को चुनौती देने वाली जनहित याचिका सुप्रीम कोर्ट में लंबित है और अभी तक इस पर सुनवाई शुरू नहीं हो पाई है। एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार सबसे बड़ी बात यह है कि अब तक इन धाराओं को हटाने का विरोध करने वाले कश्मीरी नेता भी अब इनमें संशोधनों की बात करने लगे हैं। उन्होंने पिछले दिनों जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री फारूक अब्दुल्ला के साक्षात्कार हवाला दिया। साक्षात्कार में फारूक अब्दुल्ला ने साफ-साफ 35ए के प्रावधानों में संशोधन की जरूरत स्वीकार रहे हैं, लेकिन उनकी शर्त सिर्फ इतनी है कि इन संशोधनों को जम्मू-कश्मीर की विधानसभा से कराया जाए और उसके लिए पहले राज्य में विधानसभा चुनाव होना चाहिए।