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इस्तेमाल बोतलों से बनता है आकर्षक धागा,मखमली कालीन

वाराणसी। मिनरल वाटर की बोतलें प्यास बुझाने के बाद धरती को प्रदूषण का जख्म दे रही हैं। प्लास्टिक की ये खाली बोतलें बहुत जल्द मखमली कालीन बनाने में काम आएंगी। पानीपत में यह काम शुरू भी हो गया है, अब वस्त्र मंत्रालय और कालीन निर्यात संवर्धन परिषद द्वारा इस प्रोजेक्ट को बनारस, मीरजापुर व संत रविदास नगर (भदोही) में भी धरातल पर उतारने की तैयारी है। भारतीय कालीन मेले में पानीपत की निजी कंपनी ने पैट यार्न का प्रस्तुतिकरण किया है। बता दें कि रोजाना करीब नौ लाख रुपये की प्लास्टिक की खाली बोतलों का बनारस में कारोबार है, इस्तेमाल करने के बाद इधर-उधर फेंकने की वजह से ये बोतलें प्रदूषण को जन्म दे रही हैं। 80 से 90 कबाड़ी की दुकानें हैं, जहां से 30 हजार किलोग्राम प्लास्टिक कचरा कानपुर भेज जा रहा है। यह प्लास्टिक कचरा 30 रुपये प्रति किलोग्राम की दर से मिल रहा।

इको फ्रेंडली है पैट यार्न : पानीपत से आए निजी कंपनी के संचालक महेंद्र गुप्ता ने बताया कि पैट यार्न पूरी तरह से इक्रो फ्रेंडली है, इनके यार्न में अलग तरह की चमक होती है। तीन दिनों के अंदर स्टाल पर एक दर्जन कालीन निर्माताओं को पैट यार्न के बारे में जानकारी दी गई है। पानीपत के अलावा गुजरात में भी कई फैक्ट्रियां प्लास्टिक कचरे से यार्न बना रही हैं।

संयुक्त राष्ट्र का सर्वोच्च पर्यावरण सम्मान : 26 सितंबर 2018 को संयुक्त राष्ट्र द्वारा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को संयुक्त राष्ट्र के सर्वोच्च पर्यावरण सम्मान ‘चैंपियंस ऑफ द अर्थ अवार्ड’ दिया गया है। जयपुर से आए निर्यातक संजीव अरोड़ा का कहना है कि उनके स्टाल पर छह अमेरिकी आयातक आए। कुछ नमूने पंसद भी किए हैं, अब उम्मीद है कि ज्यादा आर्डर मिल जाएगा।

ऐसे बनता है प्लास्टिक कचरे से कार्पेट : रेलवे स्टेशन, रोडवेज, अस्पताल सहित कई जगहों से बच्चे और औरतें प्लास्टिक की बोतल एकत्र करते हैं। उसको छोटे कबाड़ी के यहां किलो के भाव से बेच देते हैं, दुकानदारों के पास एक टन से अधिक प्लास्टिक कचरा हो जाता है तब वह थोक दुकानदार के पास बेचते हैं। 10 टन माल होने पर थोक दुकानदार उसे फैक्ट्रियों को भेज देते हैं। फैक्ट्री में इन बोतलों को साफ किया जाता है, जब वह इक्रो फ्रेंडली हो जाते हैं तब अगले चरण में उसे छोटे-छोटे दुकड़ों में काट दिया जाता है फिर पावरलूम पर उसे यार्न में बदल दिया जाता है।

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