BusinessHealthUttarakhand
आईआईटी रूड़की के साथ मिलकर मनाया गया वर्चुअल ईयू दिवस
देहरादून /रुड़की: अंतरराष्ट्रीय पृथ्वी दिवस के अवसर पर यूरोपीय संघ (ईयू) के प्रतिनिधिमंडल ने भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) रूड़की के साथ मिलकर ”ईयू-इंडिया कोऑपरेशन इन क्लाइमेट ऐंड एनर्जी” विषय पर एक वर्चुअल चर्चा का आयोजन किया। इस ऑनलाइन इवेंट का आयोजन ईयू दिवस श्रृंखला के तहत किया गया था और इसका उद्देश्य जलवायु परिवर्तन, स्वच्छ ऊर्जा की ओर बढ़ने, जैव विविधता नीतिगत संवाद व इनोवेशन की भूमिका में भारत के साथ मिलकर उठाए जा रहे ईयू के कदमों की ओर ध्यान आकर्षित करना था। इसमें यूरोपीय जलवायु एवं ऊर्जा नीतियां जिनमें ईयू रिकवरी पैकेज नेक्स्टजेनरेशनईयू, द यूरोपियन ग्रीन डील शामिल हैं व अन्य रिसर्च व इनोवेशन पहलों पर भी चर्चा की गई।
2016 में आयोजित ईयू-भारत सम्मेलन के दौरानईयू-भारत स्वच्छ ऊर्जा व जलवायु साझेदारी पर सहमति बनी थी और जुलाई 2020 में आयोजित 15वें ईयू-भारत सम्मेलन में इस पर फिर ज़ोर दिया गया। इसमें ऊर्जा दक्षता, नवीकरणीय ऊर्जा, स्मार्ट ग्रिड्स व ग्रिड इंटीग्रेशन, स्टोरेज, वहनीय वित्तीय पोषण, कूलिंग और पेरिस समझौते का क्रियान्वयन शामिल है। मुख्य संबोधन देते हुए भारत में ईयू के राजदूत श्री उगो अस्तुतो ने ईयू के ग्रीन रिकवरी योजना, यूरोपियन ग्रीन डील की मुख्य भूमिका और जलवायु परिवर्तन, जैव विविधता व सर्कुलर इकोनॉमी में भारत व ईयू के मिलकर काम करने के महत्व का प्रमुखता से उल्लेख किया। उन्होंने कहा, “पहला पृथ्वी दिवस 1970 में मनाया गया था। अब 51 साल बाद इस दिवस का महत्व पहले की तुलना में अधिक प्रासंगिक है क्योंकि यह ग्रह अब जलवायु परिवर्तन की समस्या से गुज़र रहा है जो उसके अस्तित्व के लिए ही खतरा बन गया है। आज अंतरराष्ट्रीय पृथ्वी दिवस के अवसर पर हमें यह ध्यान रखना होगा कि हमारा ग्रह कितना कोमल है और इसकी जलवायु व जैव विविधता की सुरक्षा करना कितना महत्वपूर्ण है। अगर हमें पेरिस समझौते में निर्धारित लक्ष्य हासिल करना चाहते हैं तो अंतरराष्ट्रीय समुदाय को मिलकर व निरंतरता के साथ काम करना होगा। ईयू और भारत वैश्विक एजेंडे को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। अपने आरंभिक संबोधन में आईआईटी रूड़की के डायरेक्टर प्रोफेसर अजित के. चतुर्वेदी ने ईयू के प्रतिनिधिमंडल का स्वागत किया और उन्हें संस्थान के बारे में जानकारी दी। उन्होंने कहा, ’’अकादमिक जगत में जहां पर्यावरण सुरक्षा और स्वच्छ ऊर्जा को बढ़ावा देने के सॉल्यूशंस को लेकर सहमति है वहीं इन सॉल्यूशंस को नीति निर्माताओं व फैसले लेने वालों तक प्रभावी ढंग से पहुंचाना भी बहुत आवश्यक है। इन सॉल्यूशंस को भारत की विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी नीति के मौजूदा संदर्भ और नीतिगत ढांचे में रखना आवश्यक है। ईयू की जलवायु परिवर्तन और स्वच्छ ऊर्जा परियोजनाएं भारत के नज़रिए के अनुकूल हैं। ऐसे में यह बहुत महत्वपूर्ण हो जाता है कि ईयू-भारत की साझेदारी को आगे बढ़ाया जाए जिससे हम मिलकर उन समस्याओं का समाधान निकाल सकें जिनका हम अलग-अलग रूप से समाधान नहीं कर सकते हैं। भारत-ईयू स्वच्छ ऊर्जा एवं जलवायु साझेदारी (सीईसीपी) परियोजना जिन मुद्दों का निपटान करेगी उनमें से कई ऐसे हैं जिनमें आईआईटी रूड़की की विशेषज्ञता है। आज की चर्चा हमें ईयू के संस्थानों के साथ अपने सहयोग को मज़बूत करने व आगे बढ़ाने का अवसर प्रदान करेगी।’’
भारत में ईयू प्रतिनिधिमंडल के एनर्जी ऐंड क्लाइमेट ऐक्शन काउंसलर श्री एडविन कूकूक ने ‘भारत-ईयू स्वच्छ ऊर्जा एवं जलवायु साझेदारी’(www.cecp-eu.in)पर ज़ोर दिया और जलवायु परिवर्तन व ऊर्जा, स्वच्छ ऊर्जा अपनाने के लिए ईयू की नीतियों और ईयू-भारत सहयोग पर ध्यान केंद्रित किया। इस साझेदारी के लिए प्रतिबद्धता जताते हुए उन्होंने कहा, ”ईयू और भारत दोनों ने महत्वाकांक्षी नवीकरणीय ऊर्जा लक्ष्य रखें हैं और वे तकनीकी, नियामकीय व वित्तीय चुनौतियों व स्वच्छ, किफायती व विश्वसनीय ऊर्जा सुनिश्चित करने, ग्रीन ग्रोथ व रोज़गार सृजन और पेरिस समझौते के क्रियान्वयन के संभावित समाधानों को लेकर जानकारी साझा कर रहे हैं।’’
एनटीपीसी स्कूल ऑफ बिज़नेस के प्रोफेसर आर. गोपीचंद्रन ने कहा, ”एनर्जी ट्रांजिशन या ऊर्जा के नए स्रोत को अपनाना व पर्यावरण सुरक्षा का परस्पर संबंध होता है। प्रौद्योगिकी का रूप व गतिविधियां इस दिशा के परिणाम निर्धारित करती हैं। इसका तीसरा तत्व है वैज्ञानिक तरीके से सोचने वाला समाज। हालांकि, यही न्यायसंगत व प्रासंगिक समझौतों के केंद्र में होता है। सार्वजनिक नीतिगत प्रक्रियाओं पर विचार करना ज़रूरी है जो ऐसे एकीकृत लाभ दे सकें।’’
ईयू के सदस्य देशों फ्रांस, जर्मनी और स्वीडन के प्रतिनिधियों ने भी इस कार्यक्रम में हिस्सा लिया और भारत के साथ स्वच्छ ऊर्जा व जलवायु परिवर्तन में उनके सहयोग को लेकर चर्चा की। सुश्री लुइसा तेरानोवा, काउंसलर, फ्रांस दूतावास ने कहा, ”वर्ष 2021 हमारे ग्रह के लिए काफी मायने रखता है। साथ ही, यह पर्यावरण के क्षेत्र में भारत-फ्रांस वर्ष भी है जिसके अंतर्गत फ्रांस और भारत मिलकर काम करेंगे और यूरोपीय यूनियन के सहयोग से जलवायु परिर्वतन के विरुद्ध वैश्विक कार्रवाई करेंगे। फ्रांस पारिस्थितिक परिवर्तन के मोर्चे पर भारत को सहयोग देने के लिए पहले से ज्यादा प्रतिबद्ध है।” श्री ब्रूनो बोसले, कंट्री डायरेक्टर, एजेंसे फ्रांसेस डी डेवलॉपेमेंट (एएफडी) ने बताया कि एफएडी भारत में पिछले 12 वर्षों से ऊर्जा परिवर्तन के क्षेत्र में योगदान कर रहा है। हम आर्थिक मदद से ज्यादा, नवोन्मेषी समाधानों को उपलब्ध कराने के लिए भागीदारी करने के मकसद से दूसरे देशों को प्रेरित करने के साथ-साथ पेरिस समझौते के लक्ष्यों के लिए भी योगदान कर रहे हैं।”
डॉ आंत्ज़े बरजर, काउंसलर, क्लाइमेट एंड एन्वायरनमेंट, जर्मनी दूतावास ने कहा, ‘’जर्मनी सरकार का मानना है कि वैश्विक स्तर पर ऊर्जा परिवर्तन (एनर्जी ट्रांजिशन) संभव है। नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा की अपनी चुनौतियां हैं लेकिन साथ ही यह आर्थिक विकास के लिए अवसरों की अपार संभावनाएं भी उपलब्ध कराते हैं। ईयू एवं अन्य ईयू सदस्य राष्ट्रों के सहयोग से, जर्मनी सरकार भारत को 2030 तक 450 गीगावाट नवीकरणीय ऊर्जा के अपने महत्वाकांक्षी जलवायु लक्ष्य को साकार करने में मदद देने के लिए तैयार है।” डॉ विन्फ्राइड डैम, हैड –इंडो-जर्मन एनर्जी प्रोग्राम, जीआईज़ेड, ने डॉ आंत्ज़े के विचारों को आगे बढ़ाते हुए कहा, ”अगले कुछ दशकों में, वैश्विक स्तर पर शून्य उत्सर्जन की दिशा में कदम बढ़ाने से न सिर्फ ऊर्जा क्षेत्र में बदलाव आएगा बल्कि यह परविहन और उद्योग क्षेत्र में भी व्यापक स्तर पर बदलाव लाएगा। भारत को मानवता के लाभ के लिए इन क्षेत्रों में बदलाव लाने हेतु सहयोग करना हमारे लिए सम्मान का विषय है। विगो बारमेन, द्वितीय सचिव, वाणिज्य, आर्थिक एवं सांस्कृतिक मामले, स्वीडन दूतावास ने जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए स्वीडन की सोच तथा 2045 तक जलवायु तटस्थता के लक्ष्य के बारे में बताया, ”भारत एवं स्वीडन नवोन्मेष और उद्योग में परिवर्तन के मोर्चों पर महत्वपूर्ण साझेदार हैं। हम इन क्षेत्रों में साझा चुनौतियों के लिए पर्यावरण अनुकूल समाधानों को मिलकर तैयार करने को लेकर उत्सुक हैं।”
सुश्री तानिया फ्रेडरिक्स, हैड ऑफ रिसर्च एंड इनोवेशन, यूरोपीय यूनियन प्रतिनिधिमंडल ने 2050 तक कार्बन तटस्थ बनने के लक्ष्य को साकार करने में शोधकार्यों एवं नवोन्मेष के महत्व पर ज़ोर देते हुए कहा, ”इस पूरे लक्ष्य में, स्वच्छ ऊर्जा की दिशा में परिवर्तनकारी कदम बढ़ाने की महत्वपूर्ण भूमिका है, साथ ही, ऊर्जा दक्षता, नवीकरणीय ऊर्जा की हिस्सेदारी बढ़ाने तथा समाधानों को किफायती बनाने के लिए अधिक शोध की आवश्यकता है। नई लो-कार्बन टैक्नोलॉजी के चलते इस परिवर्तन को साकार करने की रफ्तार को भी प्रभावित किया जा सकता है। यूरोपीय यूनियन अपने नए शोध और नवोन्मेष कार्यक्रम ‘हॉराइज़न यूरोप’के तहत्, ऊर्जा शोध के क्षेत्र में अपने प्रयासों को बढ़ावा देगा।” मई 2021 के अंत तक प्रस्ताव आमंत्रित करने का पहला चरण शुरू हो जाएगा और इसमें पोस्ट डॉक्टरेट फैलोज़ समेत भारत के साथ तालमेल के अनेक अवसरों को शामिल किया गया है। उच्च शिक्षा इरासमस (Erasmus+) के फ्लैगशिप प्रोग्राम को भी अपनाया गया है और उच्च शिक्ष संगठनों के लिए आवेदन आमंत्रित किए जा चुके हैं।
इस आयोजन में उपस्थित अन्य वक्ता थे – प्रोफे. एन पी पाधी, इलैक्ट्रिकल इंजीनियरिंग विभाग, आईआईटी रुड़की;प्रोफे. चंद्र शेखर प्रसाद ओझा, सिविल इंजीनियरिंग विभाग, आईआईटी रुड़की। कार्यक्रम का संचालन श्री सौविक भट्टाचार्या, एसोसिएट डायरेक्टर, इंटीग्रेटेड पॉलिसी एनेलिसिस डिवीज़न, टेरी तथा प्रोफे. अंजन सिल, प्रोफे. हिमांशु जैन और प्रोफे. अंकित अग्रवाल, आईआईटी रुड़की ने किया। प्रोफे. पी अरुमुगम, डीन, अंतरराष्ट्रीय संबंध एवं भौतिकी विभाग, आईटाईटी रुड़की ने समापन भाषण दिया।