आई.आई.टी. रुड़की ने राजीव रंजन मिश्रा को एचआरईडी गंगा नदी पुनरुद्धार पुरस्कार से किया सम्मानित
रुड़की। एच.आर.ई.डी., गंगा नदी पुनरुद्धार पुरस्कार 2021 प्रदान कर सम्मानित किया। अनुसंधान के लिए प्रति वर्ष दिया जाने वाला यह पुरस्कार (एन्यूअल रिसर्च अवॉर्ड) गंगा पुनरुद्धार के सम्बंध में किए गए वैज्ञानिक, सामाजिक, पर्यावरणीय, वैधानिक और आर्थिक प्रकृति के क्षेत्र में अतुलनीय योगदान के लिए प्रदान किया जाता है। राजीव रंजन मिश्रा आईआईटी कानपुर से मेकेनिकल इंजीनियरिंग में सफ़ल होने के साथ ही भारतीय प्रशासनिक सेवा के (1987 बैच) से हैं, उन्होंने इंडियन डायरेक्टर जनरल राष्ट्रीय गंगा स्वच्छता अभियान में कार्य किया और 2018 से नमामि गंगे कार्यक्रम का नेतृत्व कर रहे हैं।
दूषित जल प्रबंधन के क्षेत्र में पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप के आधार पर हाइब्रिड एन्युइटी मोड के माध्यम से उन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है तथा किफायती आवास के लिए भी काम किया। उन्होंने नदियों के संरक्षण के लिए गंगा बेसिन के अलावा राष्ट्रीय नदी संरक्षण निदेशालय में भी योगदान दिया। नमामि गंगे एक ऐसा मिशन बन गया है जिसके माध्यम से विभिन्न सतत विकास के लक्ष्य प्राप्त होते हैं, जिसमें जल के द्वारा एसडीजी-6 पर ध्यान दिया जाता है। उन्होंने (एनएमसीजी) का नेतृत्व अनेक राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं से मान्यता दिलवाने में किया, जिनमें पब्लिक एजेंसी ऑफ द ईयर अवॉर्ड, जो किग्लोबल वॉटर लंदन द्वारा प्रदान किया जाता है भी शामिल है। यह ख्याति प्राप्त पुरस्कार आईआईटी रुड़की के डायरेक्टर प्रोफेसर ए के चतुर्वेदी द्वारा प्रोफेसर पृथा रॉय, डीन ऑफ रिसोर्सेज एंड एल्युमनी अफेयर्स, फैकल्टी सदस्यों तथा संस्थान के विद्यार्थियों की उपस्थिति में प्रदान किया।
प्रोफेसर अजीत के चतुर्वेदी डायरेक्टर आईआईटी ने पुरस्कार प्रदान करते हुए कहा राजीव रंजन मिश्रा का गंगा पुनरुद्धार हेतु लम्बे समय से दिया जा रहा योगदान पथ प्रदर्शक है, कई स्वरूपों में है और अनवरत है। उनमें इस कार्य के प्रति उनके संपूर्ण समर्पण, व्यक्तिगत रुचि और वैज्ञानिक सोच के साथ टीम भावना से सबको अपने साथ लेकर चलने की योग्यता है, जिसमें जमीन से जुड़े लोगों से लगाकर राजनीतिक नेतृत्व भी शामिल है। उन्होंने गंगा पुनरुद्धार की शासकीय नीतियों को ऐसा स्वरूप दिया है कि उनके सकारात्मक परिणाम स्पष्ट दिखाई देते हैं। राजीव रंजन मिश्रा, आईएएस (1987,सेवानिवृत्त), पूर्व महानिदेशक ने पुरस्कार प्राप्त करते हुए अपने उद्बोधन में कहा-सफ़लता और निरंतरता नदी को अपना माने जाने से ही सुनिश्चित होती है। गंगा का पुनरुद्धार और लोगों का मां गंगा से जुड़ना जो कि भारत की सबसे लंबी और सर्वाधिक नदियों को मिलाकर बहने वाली नदी है, एक बहुत ही बड़ा लक्ष्य है।