मनुष्य शरीर कई जन्मों का पुण्य है : स्वामी सदानंद सरस्वती
सुदिप्तो चटर्जी : बेमेतरा जिले के थांखमारिया के पास स्थित ग्राम खैरझिटी में चल रही श्रीरामचरितमानस कथा में आज कथा को आगे बढ़ाते हुए ज्योतिष व द्वारका शारदा पीठ के पीठाधीश शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती के शिष्य तथा द्वारका पीठ के मंत्री परम पूज्य दंडी स्वामी श्री सदानंद सरस्वती जी महाराज ने उद्गार प्रकट करते हुए कहा की विश्वामित्र जी को जब पता चला परमपिता परमात्मा ने धरती में राजा दशरथ जी के यहां जन्म लिया है तो विश्वामित्र जी प्रभु राम के दर्शन एवं उनको राजा दशरथ से मांगने के लिए अयोध्या पहुंचे ओर राजा दशरथ से प्रभु राम को अपने साथ लेजाने कि बात रखी। उस समय महाराज दशरथ ब्रह्मर्षि विश्वामित्र से कहते हैं –
सभी पुत्र मुझे प्राणों के समान प्यारे हैं उनमें भी हे प्रभु राम को तो किसी भी प्रकार भी देते नहीं बनता कहां अत्यंत डरावनी और क्रूर राक्षस और कहां परम किशोरावस्था के बिल्कुल सुकुमार मेरे सुंदर पुत्र महाराज दशरथ को पुत्र वियोग की आशंका से महान दुख हुआ मैं उस से पीड़ित हो सहसा कांप उठे और बेहोश हो गए और मन को विदीर्ण करने वाला था यह वचन राजा दशरथ दो घड़ी के लिए संज्ञाशून्य हो गए फिर सचेत होकर विश्वामित्र जी से बोले – हे कौशिक नंदन मेरी अवस्था 60 हजार वर्ष की हो गई , इस बुढ़ापे में बड़ी कठिनाई से मुझे पुत्र की प्राप्ति हुई है । अतः आप राम को ना ले जाइए धर्म प्रधान राम मेरे चारों पुत्रों में श्रेष्ठ हैं।
इसलिए उस पर मेरा प्रेम सबसे अधिक है । वह राक्षस कैसे पराक्रमी हैं किसके पुत्र हैं और कौन हैं ? राम उन राक्षसों का सामना कैसे कर सकता है। इसके बाद ऋषि वशिष्ठ ने राजा दशरथ का संदेह दूर करते हुए कहा – एष विग्रहवान धर्म एषवीर्यवतां वरः ।
श्री राम ओर महर्षि विश्वामित्र साक्षात धर्म की मूर्ति है। यह बलवानो में श्रेष्ठ हैं, विद्या के द्वारा यह संसार में सबसे बड़े हैं। इसके अलावा उन्होंने अपूर्व अस्त्रों का आविष्कार किया है ।इस प्रकार से राम महान शक्तिशाली है इसलिए राम को उनके साथ भेजने में तुम्हें किसी प्रकार की शंका नहीं करनी चाहिए ।
वैसे तो यह स्वयं ही सारे राक्षसों का संहार कर सकते हैं।
परंतु तुम्हारे पुत्र राम के कल्याण के लिए ही उसे मांग रहे ।
ऋषि वशिष्ठ के यह वचन सुनकर राजा दशरथ का सारा संदेह मिट गया और उन्होंने राम लक्ष्मण को बुलाया फिर माता कौशल्या पिता दशरथ और गुरु वशिष्ठ कि स्वस्तिवाचन मंत्रों का पाठ करके दोनों के माथे के ऊपर हाथ रखा तथा उन्हें विश्वामित्र को सौंप दिया।
परम पूज्य स्वामी जी ने कहा राम कथा गंगा है इस गंगा में हमें अवगाहन करने वाला व्यक्ति इस संसार से तरनतारन होकर के भगवान के साकेत धाम में निवास करता है। इसलिए इस संसार में इस कथा को सुन कर के अपने जीवन को धन्य बनाना चाहिए। मनुष्य शरीर कई जन्मों का पुण्य है जो मनुष्य शरीर हमको प्राप्त हुआ है ।
” सब सुत प्रिय मोहि प्रान की नाई।।
राम देत नहिं बनत गोसाई।।”