नेचर वॉक से शरीर में निकलते हैं खुशी के हार्माेनः डा. सुनील
देहरादून/हरिद्वार। गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय द्वारा पर्यावरण जागरूकता पर केंद्रित नेचर वॉक का आयोजन किया गया। राजाजी राष्ट्रीय उद्यान की चीला रेंज में आयोजित इस कार्यक्रम में शिक्षकों, शोधकर्ताओं एवं विद्यार्थियों ने प्रतिभाग किया। गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय के कुलसचिव एवं प्रसिद्ध जंतु विज्ञानी डॉ0 सुनील कुमार ने प्रकृति दर्शन से जुड़े वैज्ञानिक एवं सामाजिक पहलुओं को बड़े ही मार्मिक रूप से प्रतिभागियों के समक्ष प्रस्तुत किया। उन्होंने बताया कि प्रकृति दर्शन से मस्तिष्क में एंडोमोरफिन हार्माेन निकलता है, जो मनुष्य को तनाव मुक्त रख खुशी प्रदान करता है। उन्होंने नेचर वॉक की भूरी-भूरी प्रशंसा करते हुए कार्यक्रम संयोजक एवं अंतर्राष्ट्रीय पक्षी वैज्ञानिक प्रोफेसर दिनेश भट्ट को बधाई दी।
पर्यावरण विभाग के विभागाध्यक्ष एवं प्रसिद्ध इकोलॉजिस्ट प्रो0 देवेंद्र मलिक ने नेचर वॉक की सार्थकता पर चर्चा करते हुए कहा कि प्रकृति का संग हमें ऊर्जा से भर देता है तथा हमें विभिन्न रोगों से दूर रखता है। उन्होंने जोर देकर कहा कि हमें प्रकृति दर्शन को अपनी दैनिक दिनचर्या के आवश्यक अंग के रूप में अवश्य समाहित करना चाहिए। प्रो0 मलिक के अनुसार आज की कृत्रिमता एवं बनावटीपन ने हमें प्रकृति से दूर कर दिया है, जिसका दुष्परिणाम हम विभिन्न रोगों एवं मानसिक अस्वस्थता के रूप में झेल रहे हैं। उन्होंने प्रतिभागियों को चेताया कि यदि हम समय रहते प्रकृति से निकटता स्थापित नहीं कर पाए तो विभिन्न इलेक्ट्रो मैग्नेटिक रेडिएशंस एवं अन्य प्रदूषकों के प्रभाव से स्थिति और अधिक दूभर हो जाएगी।
कार्यक्रम के संयोजक एवं अंतर्राष्ट्रीय पक्षी वैज्ञानिक प्रो0 दिनेश भट्ट ने प्रतिभागियों को इकोसिस्टम के अर्थ, महत्व एवं संरक्षण के विषय में समझाया। प्रोफ़ेसर भट्ट ने बताया कि प्रकृति के विभिन्न पहलुओं को समझकर ही हम उसका वास्तविक रूप से संरक्षण कर सकते हैं और इस उद्देश्य की पूर्ति में नेचर वॉक जैसे कार्यक्रम अत्यंत सार्थक रहते हैं। उन्होंने कहा कि सूर्य एक प्रत्यक्ष देवता के रूप में हमारे समक्ष विद्यमान हैं, क्योंकि उसकी अनुपस्थिति में धरती पर जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती है। प्रो0 भट्ट ने प्रतिभागियों के साथ विभिन्न वनस्पतियों, स्तनधारियों एवं पक्षियों के संबंध में रोचक जानकारी साझा की।
कार्यक्रम के मुख्य वक्ता एवं उत्तराखंड संस्कृत विश्वविद्यालय के पक्षी वैज्ञानिक डॉ विनय सेठी ने पक्षी दर्शन के कोड ऑफ कंडक्ट पर अपना व्याख्यान दिया। डॉ0 सेठी ने बर्ड-वाचिंग के समय धारण की जाने वाली वेशभूषा, विभिन्न उपकरणों एवं फील गाइड्स पर चर्चा करते हुए, उसके नियमों को प्रतिभागियों के समक्ष प्रस्तुत किया। उन्होंने बताया कि नेचर वॉक के समय हमें याद रखना चाहिए कि हम प्रकृति में एक मेहमान की भूमिका में भ्रमण करें, ना कि उसके मालिक के रूप में। डॉ0 सेठी ने प्रतिभागियों से अपील की कि वे घर की चारदीवारी से बाहर आकर प्रकृति से जुड़े, तो वे पाएंगे कि प्रकृति निसंदेह मनमोहक एवं सार्थक संवाद करती है। प्राच्य विद्या संकाय के संकाय अध्यक्ष प्रो0 ब्रह्मदेव ने कहा कि हमारी वैदिक संस्कृति ने हमेशा प्रकृति को देवता के रूप में स्थापित किया है एवं उसके संवर्धन की शिक्षा दी है। यह दुर्भाग्य है कि मानव अपनी संस्कृति से विमुख होकर प्रकृति के विनाश पर आमादा हो रहा है, जो न न्याय संगत है एवंन ही शास्त्र सम्मत।
नेचर वॉक के दौरान प्रतिभागियों ने हॉर्नबिल, रेडस्टार्ट, बुलबुल, स्वैलो, किंगफिशर, जंगल बैबलर, जंगलफाउल, बारबेट, मैना, पैराकीट, इंडियन चौट, कैटल एग्रेट, पौंड हेरोन, ओरिओल, लेपविंग, इंडियन रोबिन आदि विभिन्न पक्षियों सहित हाथी, हिरण, मशरूम एवं पेड़-पौधों की प्रजातियों का प्रत्यक्ष अवलोकन किया। कार्यक्रम में डॉ0 पंकज, आशीष, पारुल, रेखा, शिप्रा, शिखा, आदित्य, अमृत, अंकुश, हर्ष, दीप, मोहित, सागर, संदीप, शेखर, तनिष्क, तनुज, आकाश, सूरज, सहित गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय, वन्यजीव संस्थान देहरादून, बनारस हिंदू विश्वविद्यालय, एमिटी विश्वविद्यालय, उत्तराखंड संस्कृत विश्वविद्यालय, पीजी कॉलेज डोईवाला, स्वामी हरिहरानंद पब्लिक स्कूल आदि शिक्षण संस्थानों के शिक्षक, शोधार्थी एवं विद्यार्थी उपस्थित रहे।