हर कोई अपने स्वार्थ तक सीमित रहना चाहता हैः-मधुर भंडारकर
देहरादून : आज फिल्म इंडस्ट्री पर व्यवसायीकरण हावी होने लगा है। दर्शकों को लुभाने के लिए निर्माता फिल्म की स्क्रिप्ट के जरिये किसी भी हद तक जाने को तैयार हैं। लेकिन, यह भी सच्चाई है कि जब भी कोई ईमानदार फिल्म निर्माता फिल्म के माध्यम से समाज की कुरीतियों व अन्य पहलुओं को उठाने की कोशिश करता है तो उसका विरोध होने लगता है। सबसे बड़ा दुर्भाग्य यह है कि फिल्म इंडस्ट्री के लोग एक-दूसरे के समर्थन में खड़े होने से बचते हैं। हर कोई अपने स्वार्थ तक सीमित रहना चाहता है। मैं एक ऐसा व्यक्ति हूं, जो हर एक अच्छी फिल्म के समर्थन में खड़ा रहता है। यह सोच दूसरों में भी होनी चाहिए। देहरादून लिटरेचर फेस्टिवल में फिल्म निर्देशक मधुर भंडारकर ने ‘रियलिटी बिहाइंड हिंदी सिनेमा’ विषय पर हुए टॉक सेशन में कुछ इस तरह बेबाकी से विचार रखे। यूनिसन वर्ल्ड स्कूल में आयोजित लिटरेचर फेस्टिवल के दूसरे दिन टॉक सेशन में मधुर भंडारकर ने कहा कि फिल्म को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के रूप में देखा जाता है। लेकिन, निर्माता को यह याद रखना होता है कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता से किसी धर्म, जाति या समुदाय विशेष की भावना को ठेस न पहुंचे। भंडारकर ने कहा कि आज समाज पर आधारित फिल्मों के विरोध का ट्रेंड बन रहा है। यह अच्छा नहीं है। उन्होंने कहा कि उन्होंने कांग्रेस शासनकाल के आपातकाल पर ‘इंदु सरकार’ फिल्म बनाई, जिसका कड़ा विरोध हुआ था। मैंने सोचा था कि देश की ऐतिहासिक राजनीतिक घटनाएं युवाओं के सामने फिल्म के जरिये रखी जानी चाहिए। लेकिन, दुख की बात रही कि लोग मुझे राजनीतिक चश्मे से देखने लगे। मेरा राजनीतिक विरोध किया गया। लेकिन, मैं अपने निर्णय पर अटल रहा। भंडारकर ने इसकी मुख्य वजह फिल्म इंडस्ट्री के लोगों में एकता की कमी को माना। कहा कि बात ‘पद्मावत’ की हो या ‘उड़ता पंजाब’ की, इन फिल्मों के विरोध में मैं हमेशा सबसे पहले समर्थन में आया। लेकिन, सभी लोग आगे आएं, यह भी जरूरी है।
‘इंदु सरकार’ फिल्म चुनौती रही मधुर भंडारकर ने कहा कि इंदु सरकार फिल्म बनाना मेरे लिए सबसे बड़ी चुनौती रही थी। फिल्म को लेकर मेरे पुतले फूंके गए, मेरी तस्वीर पर कालिख पोतने की कोशिश की गई। उस समय मेरी 11 वर्षीय बच्ची टीवी में देखकर पूछती थी, पापा, आपके नाम पर लोग मुर्दाबाद क्यों कर रहे हैं। इसका जवाब मेरे पास नहीं था।