Uttarakhand

गोल्डन आवर में उपचार देना- स्ट्रोक के मरीजों को विकलांगता से बचता है

देहरादून।  विश्व स्ट्रोक दिवस के अवसर पर डॉ नितिन गर्ग, न्यूरोलॉजिस्ट ने स्ट्रोक के मरीजों को गोल्डन ऑवर में  सही  उपचार देने के बारे  में और लोगो के बीच जागरूकता फैलाने के लिए मीडिया को सम्बोधित किया। स्ट्रोक एक ऐसी मेडिकल स्थिति है जिसमे मस्तिष्क की नसों में खून का बहाव बहुत ही कम होता है, जिसके कारण  मस्तिष्क की कोशिकाएं  मृत हो जाती है।  मुख्यता दो प्रमुख प्रकार के स्ट्रोक होते हैं ।  पहला, इस्कीमिक स्ट्रोक ,जिसमे  रक्त प्रवाह की कमी और रक्त्स्राव होने के कारण हेमोरेज हो जाना प्रमुख लक्षण होते हैं। इस प्रकार का स्ट्रोक  मस्तिष्क  के प्रभावित हिस्से को नॉन-फंक्शनल कर सकता है।
       हाल ही में आये एक मामले के बारे में जिक्र करते हुए डॉ नितिन गर्ग ने बताया ष्एक 52 वर्षीय सक्रिय और  स्वस्थ व्यक्ति ने इसी साल जुलाई माह में टीवी देखते हुए अपने हाथ और चेहरे को गिराने का अनुभव किया। अपनी दैनिक दिनचर्या की गतिविधियों को पूरा करने के बाद वह टीवी देखने के लिए बैठे और अचानक अनुभव किया कि उनका दाहिना हाथ नीचे गिरने लगा है। वह अपने शरीर के दाहिने हिस्से को हिला भी नहीं पा रहे थे  और दाहिने तरफ का चेहरा भी डगमगाने लगा था। उन्होंने अपनी पत्नी को सूचित किया और निष्कर्ष निकाला कि यह गंभीर  स्थिति है । बिना  समय बर्बाद किए वे तुरंत अपने परिवार के डॉक्टर के पास गए, जिन्होंने उन्हें  मैक्स अस्पताल रेफर कर दिया। रोगी और उसका परिवार डॉक्टर की सलाह का पालन करने में तत्पर थे और इस तरह रोगी को आपातकालीन स्थिति में पेश किया गया जहाँ उन्हें थ्रॉम्बोलिस किया गया ।
       आगे अपनी बात जारी रखते हुए उन्होने यह भी बताया  “स्ट्रोक  होने पर सबसे जरूरी चीज समय है।  स्ट्रोक आने के बाद एक सेकण्ड में 3200 से ज्यादा मष्तिस्क के कोशिकाएं मृत हो जाती है, इसीलिए एक एक पल कीमती होता है।  दीर्घ कालीन अपंगता से बचने के लिए रोगी की  चिकित्सा  जल्द से जल्द शुरू किया जाना चाहिए। भारत में, बहुत कम स्ट्रोक रोगियों को समय पर चिकित्सा सुविधा मिल पाती है। जिसका प्रमुख कारण सही समय पर लक्षणों की पहचान करने न कर पाना और  समय पर चिकित्सा सुविधा न प्राप्त होना  है। इसके  आलावा स्ट्रोक से प्रभावी ढंग से पहचान करने और उसे संभालने के लिए एक सुसज्जित अस्पताल की कमी होना भी है । स्ट्रोक ष्किसी के बीच भेदभाव नहीं करता है। यह किसी भी आयु वर्ग, किसी भी सामाजिक स्तर और किसी भी लिंग के लोगों को प्रभावित करता है। भारत में  12 प्रतिशत स्ट्रोक के मामले  40 साल से कम उम्र के व्यक्तियों में होते हैं। 50 प्रतिशत स्ट्रोक उच्च मधुमेह,  और उच्च कोलेस्ट्रॉल के कारण होते हैं। शुरुआती गोल्डन ऑवर के भीतर उपचार प्रदान करने के लिए अस्पताल को सुनिश्चित करना होता है कि उपचार करने वाले कर्मचारियोंध् स्टाफ  के बीच स्ट्रोक की समझ जरूरी होनी चाहिए और इमेर्जेंसी पड़ने पर रोगी को उचित इलाज मिल सके।  मैक्स में, पिछले 5 वर्षों में स्ट्रोक के 100 प्रतिशत रोगियों ने थ्रोम्बोलाइटिकथेरैपी  प्राप्त की है। हमारे सख्त अनुपालन और ऑडिट के कारण, हम 60 मिनट से भी कम के अनुशंसित अंतर्राष्ट्रीय दिशानिर्देशों को बनाए रखने में पूर्णतया सफल रहे है।“
       डॉ नितिन गर्ग  ने कहा ’स्ट्रोक के केवल 3 प्रतिशत रोगियों को थक्के को भंग करने के लिए थ्रोम्बोलाइटिक्स प्राप्त होता है क्योंकि अधिकांश अस्पतालों में इसकी सुविधा अभी तक नहीं  हैं। हमें स्ट्रोक के बारे में लोगों को जागरूक करने के लिए एक सचेत प्रयास करने की आवश्यकता हैय एक बढ़ी हुई जागरूकता और विकसित समझ, स्ट्रोक के कारण कई लोगो को  विकलांग होने से बचा सकते है।

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