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क्षमा से क्रोध और विरोध की समाप्तिः स्वामी चिदानन्द सरस्वती
ऋषिकेश। ग्लोबल फॉरगिवनेस डे के अवसर पर परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि आज का दिन आपसी मतभेदों और संघर्षों को समाप्त कर स्वस्थ और प्रसन्न होकर आगे बढ़ने का है। यह समय पुराने घावों को भरने और एक नये जीवन की शुरूआत करने का है। स्वामी चिदानन्द सरस्वती ने कहा कि जीवन में ऐसे कई अवसर आते है जब हम किसी कारणवश दूसरों को और स्वयं को भी क्षमा नहीं कर पाते और अपराधबोध में जीते रहते हंै, जिसके कारण शारीरिक और मानसिक कई प्रकार की समस्यायें उत्पन्न होती है।
स्वामी ने कहा कि क्षमा, सहिष्णुता, सहनशीलता, धैर्य आदि गुण भारतीय संस्कृति के मूल तत्व और हमारे संस्कारों व सनातन संस्कृति का अभिन्न अंग भी है। इन मूल तत्वों को विचारों और कार्यों के रूप में परिणत करने की आवश्यकता है जिससे आन्तरिक और बाह्य स्तर पर शान्तियुक्त वातावरण का निर्माण किया जा सकता है। दूसरों को क्षमा करना और सहनशील बने रहना ही तो मनुष्य की एक उत्कृष्ट विशेषता है, जिसके कारण विपरीत परिस्थितियों में भी हम मुस्करा सकते हैं। दूसरों को क्षमा करने से हम अपने क्रोध और विरोध दोनों पर संयम रख सकते हैं और ऐसा कर हम सहिष्णु बने रह सकते हैं। विरोधी विचारों पर बिना प्रतिक्रिया दिये सद्भाव और सह-अस्तित्व के साथ आपसी रिश्तों को मजबूत किया जा सकता है। स्वामी जी ने कहा कि जीवन में दया, क्षमा और सहिष्णुता का समावेश पारिवारिक संस्कारों से आता है और कुछ तो हम जीवन के अनुभवों से भी सीखते हैं। व्यक्ति को सोशल अवेयरनेस के साथ-साथ इमोशनल अवेयरनेस पर ध्यान देना। ध्यान (मेडिटेशन) वह माध्यम है जिससे इमोशनल अवेयरनेस पर दृष्टि रखी जा सकती है और इमोशनल अवेयरनेस को संयमित किया जा सकता है। जिससे हम जीवन को तनावमुक्त और हल्के-फुल्के ढंग से जी सकते हंै। ग्लोबल फॉरगिवनेस डे की स्थापना 1994 में मूल रूप से कनाडा में शुरू हुई थी, लेकिन जैसे ही इसने दुनिया भर में लोकप्रियता हासिल की, इसका नाम बदलकर वैश्विक क्षमा दिवस कर दिया गया।