एफएटीएफ से संबंधित संस्था एशिया पेसेफिक ग्रुप ने टेरर फंडिंग मामले में पाकिस्तान को ब्लैक लिस्ट करने की सिफारिश की, पाकिस्तान की बदहाली पर यह एक और कील ठोकने जैसा होगा
नई दिल्ली । एफएटीएफ (Financial Action Task Force/FATF) से संबंधित संस्था एशिया पेसेफिक ग्रुप (Asia Pacific Group/APG) ने टेरर फंडिंग मामले में पाकिस्तान को ब्लैक लिस्ट करने की सिफारिश की है। पाकिस्तान की बदहाली पर यह एक और कील ठोकने जैसा है। यह इस लिहाज से भी बेहद खास है क्योंकि इस फैसले का असर अक्टूबर में होने वाली एफएटीएफ की बैठक में देखने को जरूर मिलेगा। एफएटीएफ के 27 प्वाइंट एक्शन प्लान की 15 महीने की समय-सीमा खत्म हो रही है। आस्ट्रेलिया के कैनबरा में चली एपीजी की बैठक में यह पाया गया कि आतंकवाद की फंडिंग रोकने को लेकर जो 40 मानक बनाए गए थे उनमें से 32 का पालन पाकिस्तान ने नहीं किया। इतना ही नहीं वित्तीय पोषण और धन शोधन के 11 में से 10 मानकों को भी वह पूरा नहीं कर सका।
एफएटीएफ में क्या होगा चीन का रुख बैठक के दौरान एपीजी के सदस्यों ने उसको आतंकवाद पर लगाम कसने में विफल पाया जिसके बाद ही उसको काली सूची में डालने का फैसला लिया गया। यह भी उल्लेखनीय है कि एपीजी ने पाकिस्तान की तरफ से पिछले तीन वर्षों के तहत आतंकी फंडिंग रोकने के लिए जो कदम उठाये थे उसके आधार पर अपना आकलन किया है। ऐसे में यह देखना होगा कि जिस तरह से दुनिया के दूसरे अंतरराष्ट्रीय मंचों पर चीन पाकिस्तान की मदद करता है उसी तरह एफएटीएफ में उसका बचाव करता है या नहीं। फिलहाल इसको भारत की बड़ी जीत भी कहा जा सकता है। गौरतलब है कि भारत काफी समय से एफएटीएफ में पाकिस्तान को ब्लैक लिस्ट करवाने की कोशिश के तहत आतंकवाद पर टेरर फंडिंग के सुबूत देता रहा है। इसके अलावा कई दूसरे देशों ने भी इस मुद्दे पर भारत का साथ दिया है। कई देश खुलेतौर पर पाकिस्तान को आतंकी देश बताते रहे हैं।
एफएटीएफ द्वारा ब्लैक लिस्ट करना लगभग तय आपको यहां पर बता दें कि एपीजी पूरी दुनिया में आतंकवाद को होने वाली फंडिंग पर निगाह रखता है और इस उस आधार अपनी रिपोर्ट एफएटीएफ को सौंपता है। इसके बाद ही एफएटीएफ संबंधित देश पर कार्रवाई करते हुए उसको काली सूची में डालता है। यहां पर ये भी बता दें कि एफएटीएफ ने फिलहाल पाकिस्तान को ग्रे लिस्ट में डाल रखा है। ग्रे लिस्ट में डालने का अर्थ इस तरह से भी समझा जा सकता है कि एफएटीएफ ने माना है कि पाकिस्तान आतंकवाद को फंडिंग कर रहा है, लेकिन उसको इस पर कार्रवाई करने की चेतावनी देते हुए कुछ समय दिया गया था। इस दौरान चेतावनी स्वरूप उसको ग्रे लिस्ट में शामिल किया गया है। लेकिन अब जबकि एपीजी ने पाकिस्तान को काली सूची में डाल दिया है तो उसका एफएटीएफ द्वारा इस पर ही मुहर लगाना तय माना जा रहा है।
क्या कहते हैं जानकार ऐसा सिर्फ हम नहीं बल्कि जानकार भी ऐसा ही मानते हैं। अर्थशास्त्री राधिका पांडे की मानें तो एपीजी के बाद यह तय हो गया है कि अक्टूबर में एफएटीएफ भी इस पर मुहर लगा देगा। चूंकि अभी इस बैठक में कुछ वक्त शेष है तो ऐसे में पाकिस्तान के पास वक्त है कि वह खुद को ब्लैक लिस्ट से निकालने के लिए टेरर फंडिंग पर ठोस कार्रवाई करे। ताजा बैठक के दौरान उसने आतंकी संगठनों पर कार्रवाई की बात कही थी, लेकिन उसको एपीजी ने नहीं माना है। राधिका के मुताबिक एपीजे द्वारा पाकिस्तान को ब्लैक लिस्ट करने का फैसला उसके लिए दीर्घ और अल्पकाल के लिए बेहद बुरा होगा। इस फैसले के बाद पाकिस्तान न तो कहीं से ऋण ले सकेगा और न ही उसको कोई संस्था ऋण दे सकेगी। इसका एक असर ये भी होगा कि इस फैसले के बाद मूड़ी एस एंड पी (स्टेंडर्ड एंड पूअर्स) जैसी वैश्विक वित्तीय संस्थाएं पाकिस्तान की रेटिंग को गिरा देंगी। यह रेटिंग तय करती हैं कि उस देश में निवेश करना कितना सही होता है। रेटिंग गिरने की वजह से वहां पर हो रहा बाहरी निवेश बंद हो जाएगा। इसका सीधा असर उसकी अर्थव्यवस्था पर पड़ेगा।
फैसले के बाद नहीं ले सकेगा ताजा ऋण आपको बता दें कि पाकिस्तान पहले ही आर्थिक बदहाली का शिकार हो रखा है। ऐसे में एपीजी का फैसला पाकिस्तान की आर्थिक कमर को तोड़कर रख देगा। राधिका का कहना है कि इस फैसले के बाद अब आईएमएफ समेत वर्ल्ड बैंक से पाकिस्तान कोई भी ताजा ऋण नहीं ले सकेगा। ये इसलिए बेहद खास है क्योंकि पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था वर्षों से ऋण या मदद पर टिकी हुई है। यहां पर ये भी बता दें कि एफएटीएफ की बैठक हर वर्ष होती है। वहीं उसकी सहयोगी इकाइयों की बैठक भी कुछ समय के अंतराल पर होती रहती है। ऐसे यदि में पाकिस्तान को ब्लैक लिस्ट करने पर अपनी मुहर लगा भी देता है तो भी पाकिस्तान के पास इससे निकलने के विकल्प होंगे। यदि इनमें वह कामयाब होता है तो एफएटीएफ की तरफ से जारी होने वाली सूची में यह बताया जाएगा कि उसको इस सूची से बाहर कर दिया गया है। लेकिन यह सब तब होगा जब एफएटीएफ उसकी दी हुई दलीलों और सुबूतों को मान लेगा।
एक नजर इधर भी बताते चलें कि एफएटीएफ की जून, 2019 में बैठक हुई थी जिसमें पाकिस्तान को ग्र्रे लिस्ट में बनाये रखने का फैसला किया गया था और साथ ही पाकिस्तान को साफ तौर पर चेतावनी भी दी गई थी कि अगर उसकी तरफ से सख्त कार्रवाई नहीं की गई तो उसे ब्लैकलिस्ट होने का खतरा रहेगा। एफएटीएफ ने कहा था कि जो दायित्व पाकिस्तान को जनवरी, 2019 तक पूरा करना था उसमें वह असफल रहा है। यही नहीं पाकिस्तान सरकार ने अपनी तरफ से जो कार्य योजना दी थी उसका पालन भी मई, 2019 तक नहीं हो पाया था। ऐसे में उसे चेतावनी देते हुए तीन महीने का और समय दिया गया था। सनद रहे कि एफएटीएफ की इस बैठक में सर्बिया को निगरानी सूची से बाहर करने का फैसला किया गया था लेकिन बोत्सवाना, यमन, ईरान, सीरिया, त्रिनिडाड व टोबैगो, इथोपिया, कंबोडिया जैसे 12 देशों के साथ पाकिस्तान को बनाये रखा गया था। सिर्फ ईरान और उत्तर कोरिया को इनसे खतरनाक माना गया था।