द्वितीय राजभाषा का दर्जा मिलने के बाद भी संस्कृत शिक्षा की स्थिति जस की तस
देहरादून। संस्कृत विद्यालय-महाविद्यालय शिक्षक संघ की प्रदेशस्तरीय आकस्मिक बैठक प्रदेश अध्यक्ष डॉ रामभूषण बिजल्वाण की अध्यक्षता में हुई जिसमें प्रदेश के समस्त जनपदों से पदाधिकारी एवं सैकड़ों अध्यापक पहुंचे। बैठक में सभी शिक्षकों ने प्रदेश में वर्तमान में हो रहे संस्कृत विद्यालय-महाविद्यालयों के अवनतिकरण के आदेशों का पुरजोर विरोध इस बात पर किया कि संबंधित आदेशों में वर्गीकृत महाविद्यालयों का कहीं जिक्र नहीं है। इस अवसर पर प्रदेश महामंत्री डॉक्टर कुलदीप पंत ने कहा वर्तमान में शासन के द्वारा किया गया वर्गीकरण एवं विद्यालयों के ऊपर थोपे जा रही प्रशासन योजना तर्क विहीन एवं असंगत है जिसे समस्त प्रदेश में अव्यवस्था उत्पन्न हो गई है। इस हेतु उन्होंने उत्तराखंड संस्कृत अकादमी की प्रतियोगिता के समापन अवसर पर विभागीय मंत्री से निवेदन भी किया किंतु मंत्री जी ने एक प्रकार से वार्तालाप करने से ही इंकार कर दिया।संस्कृत की पोषक कही जाने वाली भाजपा सरकार में ही यह स्थिति सरकार के मंसूबों पर प्रश्नचिन्ह खड़ा कर रही है।
इस अवसर पर डॉक्टर चंद्र भूषण शुक्ल ने कहा कि ऐसी स्थिति में उत्तराखंड में परिषद एवं विश्वविद्यालय से जुड़कर के पठन पाठन करना बहुत जटिल हो गया है ऐसे स्थिति में हमको अन्य प्रदेशों से मान्यता लेकर अध्यापन कराना चाहिए। डॉक्टर बेनी प्रसाद शर्मा जी ने कहा कि वर्तमान में संस्कृत के प्रति कुचक्र चल रहा है जिसमें परिषद के अधिकारी सम्मिलित हैं। प्रदेश संरक्षक डा संतोष मुनि ने कहा कि पूर्व में सरकार एवं शासन के आदेश के आधार पर विधिवत वर्गीकरण हो चुका है उसको नकार कर शासन अपने ही पूर्व आदेशों को गलत साबित कर रही है और उच्च शिक्षित विभागीय मंत्री जी मौन हैं यह घोर अफसोस की बात है। अनुशासन समिति के अध्यक्ष श्री अनुसूया प्रसाद सुंदरियाल ने का जहां प्रदेश के शिक्षक अपने निजी परिश्रम से संस्कृत बचाने का प्रयास कर रहे हैं वहीं शासन एवं निदेशालय सहयोग करने की अपेक्षा अध्यापकों को वेतन बंद करने की धमकी दे रहा है यह अत्यंत खेदजनक है। जिला महामंत्री डॉ प्रकाश जोशी ने कहा कि संस्कृत विश्वविद्यालय इन सम्बद्ध महाविद्यालयो के भरोसे चल रहा है लेकिन महाविद्यालयों के चार बार हुए यूजीसी स्तरीय पैनल निरीक्षण करने के बाद भी महाविद्यालयों के हित में कार्य करने की बजाय जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ रहा है। प्रदेश अध्यक्ष डा भूषण बिजलवाण ने मुख्यमंत्री एवं विभागीय मंत्री तथा विभागीय सचिव से निवेदन करते कहा कि विभाग बताए कि उत्तराखंड में संस्कृत शिक्षा की क्या स्थिति है? ऐसा कहीं अन्य शिक्षा में देखने को मिलता है कि जो व्यक्ति जिस पद पर नियुक्त होगा वह उसी पद पर सेवानिवृत्त होगा लेकिन यह अजूबा संस्कृत में देखने को मिल रहा है पूरे सेवाकाल में एक भी पदोन्नति शिक्षकों को नसीब नहीं डॉ बिजल्वाण ने और आगे कहा कि ऐसा किसी विभाग में है कि नियुक्ति अर्हता और कार्य उच्चशिक्षा का और वेतन सेवालाभ निम्नातिनिम्नस्तर के। जो महाविद्यालय उत्तर प्रदेश के समय से ए ग्रेड के महाविद्यालय के रूप में वर्गीकृत हैं उन महाविद्यालयों को सामान्य शिक्षा के महाविद्यालयों की भांति सेवालाभ देने की बजाय उनसे जबरन माध्यमिक स्तर चलाने को कहा जा रहा है नियुक्ति विज्ञापन अनुज्ञा महाविद्यालय की और वेतनमान माध्यमिक का कितना बड़ा विरोधाभास है और जिन माध्यमिक स्तर के विद्यालयो को विभाग के पिछले आदेशों के क्रम में उनको इंटरमीडिएट स्तर के लाभ अनुमन्य हो रखे हैं आज उनको कहा जा रहा है ये जूनियर हाईस्कूल हैं बड़ी अजीबोगरीब स्थिति है संस्कृत शिक्षा की प्रदेश में । सभी शिक्षकों ने मुख्यमंत्री मंत्री जी और सचिव से आग्रह किया कि शासन के आदेश के अनुक्रम में जो पूर्ण रूप से महाविद्यालय के रूप में संचालित हैं उनके लिए पृथक व्यवस्था का आदेश तत्काल जारी होना अत्यंत आवश्यक है। यह भी विदित हो कि महाविद्यालयों को उच्चशिक्षा के सेवालाभ सम्बन्धी प्रकरण न्यायालय में चल रहा है इस बीच इस तरह के आदेशों का औचित्य क्या है समझ से परे है। इसी क्रम में सभा में उपस्थित सभी अध्यापकों ने संघ के पदाधिकारियों से एकमत से स्पष्ट किया कि यदि शासन से वार्तालाप अथवा पत्राचार के माध्यम से समस्या का एक सप्ताह के भीतर भी समाधान नहीं होता तो संपूर्ण प्रदेश में को उग्र आंदोलन किया जाएगा। इस अवसर पर डॉक्टर बाणी भूषण भट्ट,डॉक्टर प्रकाश चंद्र जोशी, डॉक्टर से नारायण भट्ट डॉक्टर शैलेंद्र डंगवाल डा दीपशिखा डॉक्टर प्रदीप आदि असंख्य सदस्य उपस्थित रहे।