पर्यटन के लिये पर्यावरणीय शुचिता जरूरीः स्वामी चिदानन्द सरस्वती
ऋषिकेश। आज पूरी दुनिया एक अभूतपूर्व वायरस के कारण वैश्विक स्तर पर स्वास्थ्य, सामाजिक और आर्थिक समस्याओं का सामना कर रही है। कोविड-19 महामारी के कारण पूरे विश्व का पर्यटन जैसे थम सा गया है, पर्यटन के माध्यम चाहे जमीनी हो, जलीय हो या हवाई सभी प्रभावित हुये है। भारत में प्रतिवर्ष 25 जनवरी को राष्ट्रीय पर्यटन दिवस मनाया जाता है। हमारे देश में 38 यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल हैं जिनमें 30 सांस्कृतिक और 7 प्राकृतिक गुणों से युक्त हैं तथा भारत के पास दुनिया के सात अजूबों में से एक है-ताज महल, इसके अलावा भी भारत के पास अनेक ऐसे स्थल है जो पर्यटन के साथ-साथ मानसिक शान्ति देने वाले हैं। वास्तव में भारत पर्यटन की दृष्टि से समृद्ध राष्ट्र है।
राष्ट्रीय पर्यटन दिवस के अवसर पर परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि भारत में कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक हर क्षेत्र अपनी विशिष्टता, विविधता और अद्भुत संस्कृति के लिये प्रसिद्ध है। भारत का रेगिस्तान, सदानीरा नदियों, हरे-भरे वन, द्वीप, पर्वत, पठार व झरने आदि अनेक प्राकृतिक विशिष्टायें एवं विशेषतायें न केवल पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करती हैं बल्कि यह मन को शान्ति देने वाली भी है। हमारे पास अनेक मनमोहक सांस्कृतिक और प्राकृतिक विविधता से युक्त ऐतिहासिक विरासते है जिसे सुरक्षित रखना हमारा कर्तव्य है। स्वामी ने कहा कि भारत का पर्यटन अपनी पारंपरिक सीमाओं से बाहर निकल कर आयुर्वेद, ध्यान और योग के रूप में विस्तार ले रहा है परन्तु भारत के पास और भी अनेक नई संभावनायें और अवसर है। उन्होंने कहा कि दुनिया में कहीं भी व किसी भी राष्ट्र की नदी और पर्वत श्रृंखला ने जनमानस को अपनी ओर इतना आकर्षित और प्रभावित नहीं किया है जितना माँ गंगा और हिमालय ने किया है। गंगा और हिमालय ने भारत को एक उत्कृष्ट पहचान प्रदान की और हमें आध्यात्मिक रूप से समृद्ध किया है। भारत के पास वेद और गीता का जो ज्ञान है उसके अध्ययन केन्द्र खोले जाये, उसका गायन व व्याख्या तथा व्यावहारिक स्तर पर उन दिव्य ग्रंथों की व्याख्या के केन्द्र खोले जाये तो वह भी पर्यटन के लिये उत्कृष्ट योगदान होगा तथा उन ग्रंथों में जो ज्ञान है वह भी विश्वव्यापी होगा। स्वामी ने कहा कि भारत के पास अपनी सांस्कृतिक समृद्धि, ऐतिहासिक धरोहर, विविधता में एकता की संस्कृति, दिव्य आध्यात्मिक परंपरायें और विशिष्टतायें है जो हमारे पर्यटन को समृद्ध करती है हमें केवल पर्यावरणीय शुचिता बनाये रखने पर विशेष ध्यान देना होगा और इसके लिये सभी की भागीदारी सुनिश्चित करनी होगी।