Uttarakhand
एक और संविधान की जरूरत
आज भारत रत्न डॉ भीमराव अंबेडकर जी का जन्म दिन है। देश अपने श्रद्धा सुमन अर्पित कर उंन्हे सम्मान दे रहा है। संविधान के बनते समय क्या परिश्थिति रही होगी यह तो नही मालूम लेकिन विश्व का सबसे बड़ा संविधान लिखने वाले बाबा साहब अगर आज हमारे बीच होते तो बहुत दुखी होते। बाबा साहेब ने शायद स्वप्न में भी न सोचा होगा की उनका यह प्यार देश उनके बनाये संविधान का ऐसा हश्र करेगा कि संविधान मजाक बनकर रह जायेगा। न चुनाव आयोग का सम्मान है न दूसरी संवैधानिक संस्थाओं की चिंता। न सुप्रीम कोर्ट का डर है न राष्ट्रपति के आदेश का मान। संविधान में विद्द्यमान कमजोरियों का फायदा उठाकर 90 प्रतिशत अपराधी छूट जा रहे है। सजा पाते है वो जिन्हें या तो राजनीतिक संरक्षण प्राप्त नही है या फिर बचाव करते थक कर समर्पण कर देते है। शीघ्रता में कई देशों का संविधान एकत्र कर बने संविधान को हमने अंगीकार तो कर लिया लेकिन इस बात पर हमारे नेता गण विचार नही कर सके कि यह लंबा संविधान दरसल हमारे देश की विभिन्नता को देखते हुए उपयुक्त ही नही था। वास्तव में हमारे नेता गण माननीय बाबा साहेब से लेकर नेहरू, गांधी जी, पटेल यहां तक कि मोहमद अली जिन्ना जिनको हम इसलिये सम्मान देकर सिर माथे बिठा रहे थे क्योंकि उन्होंने आगे आकर हमे आज़ादी दिलाई थी। लेकिन अंग्रेज़ चले गए और जाते जाते हमारे कुछ नेताओं की रगों में ऐसा जहर भर गए जिसका असर आज तक देखने को मिल रहा है। शहीद भगत सिंह ने किसी सिखिस्तान या असफाक ने पाकिस्तान या फिर नेता सुभाष चंद बोस ने बंगाल बनाने के लिये अपनी कुर्बानी नही दी थी। फिर ऐसा क्या हुआ कि जात पात और धर्म का भेदभाव किये बिना दुश्मनों और आँकर्ताओ से लोहा लेने वाले भारतीय छोटी छोटी जातियों और धर्म में बांटकर एक दूसरे के खून के प्यासे हो गए।दरसल आज़ादी के नायक तो वो लोग है जिन्होंने बिना लालच अपनी कुर्बानियां दी। नेताओ को आज़ादी के साथ ऐसा जहर पिलाया गया कि सत्ता के लालच में देश के निर्दोष नागरिकों को साम्प्रदायिकता की आग में झोंक दिया गया। इस देश के कर्णधारो ने उस समय और फिर लगातार जाति और धर्म की राजनीति न कि होती तो यह देश आज़ादी के 70 वर्षों बाद भी गरीबी की मार नही झेल रहा होता। और अब तो इस ओछी राजनीति ने सारी हदें पार कर दी हैं। सरे आम देशद्रोही गतिविधियों को अंजाम दिया जा रहा है। लोकतांत्रिक मूल्य तो कहीं गुम हो गए लगते है। नए नए जिन्ना और जयचंद पैदा हो रहे है और अपराधी शासन की बागडोर छीनने के लिये जीतोड़ प्रयास कर रहे हैं। शुक्र है ईश्वर का बाबा भीमराव अंबेडकर सही समय पर ईश्वर के पास चले गए वरना शायद पुनः एक नही बहुत से संविधान लिखने पड़ते।अब तो फिर किसी महान सम्राट की आवश्यकता है जो एक भारत का एक संविधान लिखकर भगवान राम के देश को वासुदेव कुटुम्बकम और सर्वे संतु निरामया की राह पर लेकर चल निकले।
लेखकः- ललित मोहन शर्मा